21 सितंबर को श्रीलंका में चुनाव, राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने चला कौन सा दांव, क्या कर पाएंगे वापसी?
राजपक्षे ने 75 वर्षीय विक्रमसिंघे से समर्थन वापस ले लिया, जो सबसे पुरानी पार्टी, यूनाइटेड नेशनल पार्टी के नेता होने के बावजूद एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। मंत्रियों को बर्खास्त करने का निर्णय एक महागठबंधन के रूप में आया पीपुल्स यूनाइटेड फ्रीडम एलायंस - का गठन प्रधान मंत्री दिनेश गुणवर्धने की अध्यक्षता में किया गया था।
श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने गुरुवार को अपनी सरकार से चार कनिष्ठ मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया, जिसे 21 सितंबर के राष्ट्रपति चुनावों से पहले राजपक्षे समर्थकों के सफाए के रूप में देखा जा रहा है। राष्ट्रपति कार्यालय के एक बयान में कहा गया है कि यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 47 (3) द्वारा उन्हें दिए गए अधिकार के तहत किया गया था। बर्खास्त किए गए मंत्रियों में बंदरगाह और विमानन सेवा राज्य मंत्री प्रेमलाल जयशेखर, बिजली और ऊर्जा राज्य मंत्री इंडिका अनुरुद्ध, कृषि राज्य मंत्री मोहन प्रियदर्शन डी सिल्वा और राजमार्ग राज्य मंत्री सिरिपाला गमलाथ शामिल हैं।
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राजपक्षे ने 75 वर्षीय विक्रमसिंघे से समर्थन वापस ले लिया, जो सबसे पुरानी पार्टी, यूनाइटेड नेशनल पार्टी के नेता होने के बावजूद एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। मंत्रियों को बर्खास्त करने का निर्णय एक महागठबंधन के रूप में आया पीपुल्स यूनाइटेड फ्रीडम एलायंस - का गठन प्रधान मंत्री दिनेश गुणवर्धने की अध्यक्षता में किया गया था।
श्रीलंका की आबादी लगभग 2.2 करोड़ है जिनमें से 1.7 करोड़ लोग मताधिकार का इस्तेमाल करने के लिए पात्र हैं। इस चुनाव में उम्मीदवारों की बात करें तो कुल 38 प्रत्याशी मैदान में हैं। विक्रमसिंघे की पार्टी ‘यूनाइटेड नेशनल पार्टी’ दो फाड़ होने के कारण कमजोर हो गई है। ऐसे में वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, करों में की गई वृद्धि समेत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से सहायता प्राप्त करने के बदले में उठाए गए कठोर कदम के कारण लोग विक्रमसिंघे से नाखुश हैं, लेकिन ईंधन, रसोई गैस, दवाइयों और भोजन जैसी आवश्यक वस्तुओं के संकट को काफी हद तक कम करने में मिली सफलता को लेकर वह जीत की आस लगा रहे हैं।
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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वह एक मजबूत दावेदार हैं। ऐसा इसीलिए भी क्योंकि अपने प्रतिद्वंद्वियों के विपरीत, उनके संबंध ऐसे व्यापारिक और राजनीतिक अभिजात वर्ग से नहीं है जिनके इशारे पर देश की सत्ता में हलचल देखी जाती है। विक्रमसिंघे को सजीथ प्रेमदासा भी कड़ी चुनौती दे रहे हैं जो पूर्व राष्ट्रपति एवं विक्रमसिंघे की पार्टी से अलग होकर बने दल ‘यूनाइटेड पीपुल्स पावर’ के नेता हैं।
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