पाकिस्तान चुनाव में चरमपंथी, प्रतिबंधित समूहों को एक भी सीट नही

Extremist, banned groups draw blank in pak election
[email protected] । Jul 28 2018 7:57PM

पाकिस्तानी मतदाताओं ने हाल में हुए देश के आम चुनाव में मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद समर्थित अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक सहित सभी चरमपंथी एवं प्रतिबंधित समूहों को सिरे से नकार दिया।

इस्लामाबाद। पाकिस्तानी मतदाताओं ने हाल में हुए देश के आम चुनाव में मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद समर्थित अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक सहित सभी चरमपंथी एवं प्रतिबंधित समूहों को सिरे से नकार दिया। पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने आम चुनाव के अंतिम नतीजे घोषित कर दिए जिनके अनुसार अल्लाह-ओ-अकबर पार्टी के सारे उम्मीदवार चुनाव हार गए।

चुनाव नतीजों से पता चलता है कि पार्टी के उम्मीदवारों को कुल मिलाकर महज 1,71,441 वोट मिले जबकि देश में 10 करोड़ से ज्यादा पंजीकृत मतदाता हैं और चुनाव में 50 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ यानि पांच करोड़ से ज्यादा वोट डाले गए। इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ने 270 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 116 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी।

एक और चरमपंथी पार्टी तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) ने नेशनल एसेंबली की 150 और प्रांतीय सभाओं की 100 से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। उसके उम्मीदवारों को 21,91,679 वोट मिले। हालांकि उसके दो उम्मीदवार सिंध की प्रांतीय सभा में निर्वाचित होने में सफल रहे। नरमपंथी इस्लाम का प्रचार कर रहे दलों ने मुत्तहिदा मजलिस-ए-अमाल पाकिस्तान (एमएमएपी) के तत्वाधान में चुनाव लड़ा था।

उन्हें नेशनल असेंबली में कुल 13 सीटें मिलीं और 25,30,452 वोट मिले। कुल वोटों के लिहाज से एमएमएपी पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी है जबकि टीएलपी छठे स्थान पर रही। चुनाव आयोग के नतीजे के अनुसार जमायत उलेमा-ए-इस्लाम सामी (जेयूआई-एस) को महज 24,559 वोट मिले। चुनाव लड़ने वाले दूसरे धार्मिक दलों का प्रदर्शन खराब रहा। चुनाव आयोग ने बताया कि तहरीक-ए-लब्बैक इस्लाम को 68,022, मजलिस-ए-वहदात-ए-मुस्लिमीन पाकिस्तान को 9,606, सुन्नी इत्तेहाद काउंसिल को 5,939 वोट मिले।

चरमपंथियों से सीधे सीधे जुड़े सैकड़ों लोगों के चुनाव प्रचार करने को लेकर पाकिस्तान को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया, मानवाधिकार समूहों एवं नेताओं की आलोचना का सामना करना पड़ा था। पाकिस्तान के मतदाताओं ने चरमपंथी या प्रतिबंधित समूहों से जुड़े उम्मीदवारों को खारिज करते हुए मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा बनने की उनकी कोशिशें नाकाम कर दीं।

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