टैगोर की जयंती पर मिस्र में आयोजित उत्सव का हुआ उद्घाटन
रवींद्र नाथ टैगोर की 155वीं जयंती के अवसर पर भारत की ओर मिस्र में आयोजित पांच दिवसीय सांस्कृतिक उत्सव का आज उद्घाटन हो गया।
काहिरा। रवींद्र नाथ टैगोर की 155वीं जयंती के अवसर पर भारत की ओर मिस्र में आयोजित पांच दिवसीय सांस्कृतिक उत्सव का आज उद्घाटन हो गया। इस उत्सव का उददेश्य साझा सांस्कृतिक जुड़ाव वाले इन दोनों देशों के लोगों के बीच संबंध मजबूत करना है। टैगोर उत्सव का उद्घाटन मिस्र में भारत के राजदूत संजय भट्टाचार्य ने एक चित्रकला प्रदर्शनी के उद्घाटन के साथ किया। इस प्रदर्शनी में मिस्र, भारत और अन्य देशों के कलाकारों की कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है।
आठ से 12 मई तक चलने वाले इस उत्सव का आयोजन काहिरा स्थित भारतीय दूतावास और मौलाना आजाद सेंटर फॉर इंडियन कल्चर द्वारा किया जा रहा है। भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘यह अद्भुत है कि टैगोर की मिस्र यात्रा के 90 साल बाद, उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलने के 100 से भी ज्यादा साल बाद और उनके निधन को 70 से भी ज्यादा साल होने के बाद, हम आज भी टैगोर को याद कर रहे हैं, जश्न मना रहे हैं। देखिए..किस तरह से वह आज भी हमें प्रेरणा दे रहे हैं।’’
आगामी 12 मई तक चलने वाली इस प्रदर्शनी का आयोजन भारतीय दूतावास ने इजिप्शियन कैरीकेचर सोसाइटी के साथ मिलकर किया है। उत्सव में नौ मई को टैगोर की नृत्य नाटिका ‘शापमोचन’ की प्रस्तुति मशहूर शास्त्रीय नर्तकी डोना गांगुली करेंगी। डोना उसी कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) से आती हैं, जो इस महान कवि का गृहनगर रहा है। टैगोर के उपन्यास पर आधारित सत्यजीत रे की फिल्म ‘घरे बेरे’ का प्रदर्शन 10 मई को किया जाएगा। मशहूर रवींद्र संगीत गायक श्रेया गुहाथाकर्ता 11 मई को टैगोर के लिखे गीतों को पेश करेंगी। समारोह 12 मई को समकालीन साहित्य ‘टैगोर, शौकी और महफूज’ विषय पर सम्मेलन के साथ संपन्न होगा। इस सम्मेलन में भारत और मिस्र के विद्वान एवं लेखक मौजूद होंगे। इसका आयोजन सुप्रीम काउंसिल ऑफ कल्चर करेगी। वर्ष 1913 में ‘गीतांजलि’ के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले टैगोर मिस्र के लिए नए नहीं हैं। किशोरावस्था में वह 1878 में मिस्र गए थे और बाद में 1926 में वह एक मशहूर कवि-दार्शनिक के रूप में मिस्र गए। इस दौरान उन्होंने राजा फवाद से मुलाकात की और एलेक्जेंड्रिया एवं काहिरा में विद्वानों के साथ बातचीत की। मिस्र के कवि अहमद शौकी के साथ उनकी दोस्ती विख्यात है और उन्होंने 1932 में अपने मित्र के निधन पर दिल को छू लेने वाला स्तुतिगान लिखा था। टैगोर ने नील नदी और मिस्रवासियों की फलती-फूलती सभ्यता के बीच के खूबसूरत रिश्ते पर भी अपनी लेखनी चलाई।
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