पत्रकारों का वीजा विवाद पहुंचा सकता है नुकसान: चीनी विद्वान
चीनी विद्वानों ने आज कहा कि भारत की एनएसजी मुहिम में उसका समर्थन नहीं करने के कारण ही उसने चीन से ‘‘बदला’’ लेने के इरादे से ऐसा कदम उठाया है।
बीजिंग। चीन के तीन पत्रकारों की वीजा अवधि बढ़ाने से भारत के इनकार को ‘‘अनुचित’’ बताते हुए चीनी विद्वानों ने आज कहा कि भारत की एनएसजी मुहिम में उसका समर्थन नहीं करने के कारण ही उसने चीन से ‘‘बदला’’ लेने के इरादे से ऐसा कदम उठाया है। उन्होंने कहा कि इससे समग्र द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुंच सकता है। चीनी थिंक टैंक के विद्वानों का हवाला देते हुए सरकारी ‘चाइना डेली’ ने लिखा, ‘‘भारत से तीन चीनी पत्रकारों का निर्वासन बेहद अनुचित है और इससे समग्र भारत-चीन संबंध को नुकसान पहुंच सकता है।’’
चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस में दक्षिण एशियाई अध्ययन पर विशेषज्ञ फू शिआयोकियांग ने समाचार पत्र को बताया, ‘‘एनएसजी (परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह) के लिए भारत की सदस्यता का विरोध करने के कारण ही भारत ने चीन के खिलाफ बदला लेने के इरादे से ऐसा किया है और निर्वासन के लिए यह कोई बहाना नहीं हो सकता।’’ उन्होंने कहा, ‘‘एनएसजी मामले के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराना बेतुका है। यह अच्छी तरह पता है कि एनएसजी की सदस्यता के लिए परमाणु हथियार अप्रसार संधि का अनुमोदन एक आवश्यक योग्यता है और भारत एनपीटी (परमाणु अप्रसर संधि) का सदस्य नहीं है। इसलिए एनएसजी की सीधी सदस्यता की मांग करना अवास्तविक है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि मीडिया और जनता को इस तरह की छोटी मोटी घटनाओं पर गलतफहमी पैदा नहीं करनी चाहिए। मुझे पूरा विश्वास है कि चीन और भारत सरकार इस समस्या के समाधान के लिए निकट भविष्य में रास्ता तलाशने पर काम कर सकते हैं।’’ चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइसेंज में दक्षिण पूर्व एशियाई अध्ययन के एक वरिष्ठ शोधकर्ता जिया दुकियांग ने कहा ‘‘यह कदम (वीजा अवधि नहीं बढ़ाना) एक अनोखा और बेहद अनुचित है।’’ जिया ने कहा, ‘‘मैं समझता हूं कि भारत-चीन संबंध पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने से रोकने के लिए दोनों सरकारों को तर्कसंगत तरीके से इस मुद्दे को अधिक महत्व नहीं देना चाहिए।’’ जिया ने कहा, ‘‘चीन और भारत दोनों ही अहम क्षेत्रीय शक्तियां हैं और ऐसी अपेक्षा की जाती है कि चीन और भारत बातचीत के जरिए अपने मतभेदों को सुलझा सकते हैं ना कि ऐसे अनुचित तरीके से।’’
बहरहाल, अब तक ना तो शिन्हुआ और ना ही चीनी विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया दी है। रिपोर्ट के अनुसार, इस फैसले से बीजिंग में रह रहे भारतीय पत्रकारों के निर्वासन का खतरा भी मंडरा रहा है और चीनी मीडिया में ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या चीन भी भारतीय पत्रकारों के साथ ‘‘जैसे का तैसा’’ रवैया अपनाएगा या नहीं। फिलहाल बीजिंग में भारत के पांच संवाददाता और दो अन्य पत्रकार रह रहे हैं।
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