कालादान परियोजना जिसके जरिए कोलकाता से सीधे जुड़ जाएगा म्यांमार!

Kaladan project
निधि अविनाश । Mar 25 2021 6:04PM

जानकारी के मुताबिक, मिजोरम में भारत-म्यामांर बॉर्डर पर बसा आखिरी गांव जिसे साल 2008 तक काकीचुआ के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में जब कालादान प्रोजेक्ट की शुरूआत भारत और म्यामांर के बीच हुई तब इसका नाम बदलकर जोरिनपुई रख दिया गया।

म्यांमार को भारत के उत्तर-पूर्व से जोड़ने वाली महत्वपूर्ण कलादान परियोजना काफी तेजी से गति पकड़ रही है। आपको बता दें कि यह परियोजना भारत के साउथ-ईस्ट एशिया से जोड़ने का छोटा सा रास्ता बन जाएगा जिससे नए व्यापार को काफी मौके मिलेंगे। इस परियोजना को साल 2031 तक पूरा करने की उम्मीद है। यह नया रूट पूर्वोत्तरों के लिए एक प्रवेश द्वार होगा, जो कोलकाता से मिजोरम की दूरी लगभग एक हजार किलोमीटर कम करेगा और यात्रा के समय को चार गुना कम कर देगा। 

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जानिए कलादान प्रोजेक्ट के बारे में!

जानकारी के मुताबिक, मिजोरम में भारत-म्यामांर बॉर्डर पर बसा आखिरी गांव जिसे साल 2008 तक काकीचुआ के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में जब कालादान प्रोजेक्ट की शुरूआत भारत और म्यामांर के बीच हुई तब इसका नाम बदलकर जोरिनपुई रख दिया गया। जोरिनपुई का मतलब होता है "मिजो की सबसे बड़ी उम्मीद"। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद जोरिनपुई गेट वे ऑफ एशिया बन जाएगा। आपको बता कोलकाता से म्यांमार फिर म्यांमार से मिजोरम तक का रास्ता इस परियोजना के जरिए शुरू होगा जिसमें समुद्र , जमीन और रास्ते तीनों शामिल हैं। 

कलादान परियोजना, एक रणनीति!

कलादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट कोलकाता को मिज़ोरम से म्यांमार में सिटवे बंदरगाह के माध्यम से जोड़ेगी। आपको बता दें कि सिलिगुढ़ी कॉरिडॉर ही अभी एकमात्र ऐसा रास्ता है जिसके जरिए भारत के नॉर्थ ईस्ट के राज्यों तक सड़क के जरिए पहुंचा जा सकता है। अगर यह बॉल्क हो जाता है तो इससे भारत के लिए दिक्कतें पैदा हो सकती है।

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