ऑकस समझौता: न्यूजीलैंड को परमाणु-निरोध कूटनीति तेज करनी होगी

Ocus Agreement

नए समझौते में रणनीतिक प्राथमिकताएं बदलने के पीछे मुख्य बात है परमाणु खतरे की जो कि बढ़ता जा रहा है। इसका उद्देश्य चीन को रोकने और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ाने पर है। चीन पहले ही चेतावनी दे चुका है कि ऑकस के कारण ऑस्ट्रेलिया परमाणु संघर्ष की स्थिति में निशाने पर आ सकता है।

 हैमिल्टन। (द कन्वरसेशन) अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया (ऑकस) के बीच हाल ही में सामने आए सुरक्षा समझौते का न्यूजीलैंड भले हिस्सा न हो, लेकिन यह निश्चित रूप से इसके राजनयिक और रणनीतिक प्रभावों एवं घटनाक्रम से बच नहीं सकता है। अमेरिका और ब्रिटेन इस साझेदारी के तहत ऑस्ट्रेलिया को परमाणु ऊर्जा से संचालित पनडुब्बी क्षमता प्रदान करेंगे। अमेरिका क्षेत्र में सैन्य ठिकानों संबंधी अधिक अधिकार प्राप्त करना चाह रहा है। उन्हें क्षेत्र के परमाणुकरण को ले कर आसियान देशों की आशंकाओं को भी दूर करना है। ऑकस समझौते को लेकर चीन और रूस दोनों ने ही नकारात्मक प्रतिक्रिया की है। वहीं ऑस्ट्रेलिया के साथ पनडुब्बी समझौता रद्द होने के कारण फ्रांस भी खुद को ठगा पा रहा और आहत है।

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नए समझौते में रणनीतिक प्राथमिकताएं बदलने के पीछे मुख्य बात है परमाणु खतरे की जो कि बढ़ता जा रहा है। इसका उद्देश्य चीन को रोकने और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ाने पर है। चीन पहले ही चेतावनी दे चुका है कि ऑकस के कारण ऑस्ट्रेलिया परमाणु संघर्ष की स्थिति में निशाने पर आ सकता है। न्यूजीलैंड का परमाणु मुक्त दर्जा इसे संभावित लक्ष्य बनाने से बचाता है। वह फाइव आइज इंटेलिजेंस नेटवर्क का अभिन्न हिस्सा है। लेकिन यह बात उसे परमाणु संघर्ष में संभावित निशाना बना सकती है या नहीं, यह बात केवल उसके संभावित शत्रु ही बता सकते हैं। परमाणु विनाश की आशंका सच्चाई के बेहद करीब है। डूम्सडे क्लॉक के अनुसार दुनिया में 13,100 परमाणु हथियार हैं, इनमें से 1,550 अमेरिका और रूस द्वारा हाई अलर्ट पर रखे गए हैं जिसका मतलब है कि आदेश पर 15 मिनट में दागे जा सकते हैं। इनके अलावा उनके पास हजारों अन्य परमाणु हथियार भी हैं।

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परमाणु हथियार सम्पन्न अन्य देश हैं फ्रांस, ब्रिटेन, इजराइल, भारत, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान और चीन और अनुमान है कि उनके पास करीब 1000 परमाणु हथियार हैं। इनमें से ज्यादातर परमाणु हथियार उस अमेरिकी बम से कहीं अधिक प्रभावशाली हैं जिसने 1945 में हिरोशिमा को तबाह कर दिया था। अमेरिका, रूस और चीन द्वारा नई पीढ़ी की हाइपरसोनिक मिसाइल के विकास में निवेश करने से हथियार प्राप्त करने की नई दौड़ शुरू होने का भय भी है। न्यूजीलैंड 1980 के दशक में परमाणु मुक्त हो गया था और उसने इस नीति को आगे बढ़ाने के लिए बहुत मेहनत की तथा निरस्त्रीकरण के प्रयास किए। 2017 में 122 देशों ने परमाणु हथियार पर रोक संबंधी संयुक्त राष्ट्र की संधि पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन परमाणु सम्पन्न नौ देशों ने इसे खारिज कर दिया।

अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने हस्ताक्षर करने वाले देशों से यहां तक कहा कि उन्होंने ‘एक रणनीतिक गलती’ की है। न्यूजीलैंड को अपनी परमाणु-मुक्त नीति को बनाए रखने और बढ़ावा देने के साथ-साथ विशेष रूप से अपने क्षेत्र में तनाव और जोखिम को कम करने के बारे में भी व्यावहारिक होना चाहिए। ऑकस समझौते से बाहर होना और चीन के साथ उसके अच्छे संबंध होना एक अच्छी शुरुआत है। 2019 के आतंकवादी हमले के बाद जेसिंडा अर्डन और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ‘क्राइस्टचर्च कॉल’ पहल शुरू की थी जिसने दिखाया कि न्यूजीलैंड और फ्रांस अच्छी तरह से सहयोग कर सकते हैं।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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