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सिख डॉक्टर भाइयों ने मिसाल पेश की, कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए कटवा दी दाढ़ी
- अनुराग गुप्ता
- मई 9, 2020 14:54
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सिख धर्म में दाढ़ी और सिर के बाल नहीं कटवाए जाते इनका अपना ही महत्व होता है। ऐसे में दोनों भाइयों का इतना कठिन निर्णय लेना सेवा के प्रति अपने जज्बे को दिखाता है।
लॉकडाउन के बीच कनाड़ा के सिख डॉक्टर भाइयों ने एक मिसाल पेश की है। बता दें कि दो सिख भाइयों ने कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाक के लिए अपनी दाढ़ी कटवा दी। दरअसल, संक्रमित व्यक्तियों के इलाज के लिए उन्हें मेडिकल ग्रेड के मास्क पहनना जरूरी था। लेकिन दाढ़ी के साथ-साथ पूरे दिन मास्क पहनना काफी मुश्किल था। ऐसे में सिख भाइयों ने धार्मिक सलाहकारों, परिवार और दोस्तों से बातचीत करने के बाद दाढ़ी कटवाने का निर्णय लिया।
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सिख धर्म में केश का है अपना महत्व
सिख धर्म में दाढ़ी और सिर के बाल नहीं कटवाए जाते इनका अपना ही महत्व होता है। ऐसे में दोनों भाइयों का इतना कठिन निर्णय लेना सेवा के प्रति अपने जज्बे को दिखाता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डॉ. संजीत सिंह सलूजा और उनका भाई डॉ. रंजीत सिंह मैक्गिल यूनिवर्सिटी हेल्थ सेंटर (MUHC) में काम करते हैं।
एमयूएचसी की वेबसाइट पर डॉ. संजीत सिंह सलूजा एक वीडियो पोस्ट किया। जिसमें उन्होंने कहा कि हम काम को छोड़ भी सकते थे लेकिन ऐसे वक्त में जब स्वास्थ्य कर्मी बीमार पड़ रहे हैं तो हम और अधिक बोझ नहीं डालना चाहते थे।
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शपथ के खिलाफ है काम न करना
डॉ. सिंह ने आगे कहा कि हमारा काम न करना डॉक्टर के रूप में ली गई हमारी शपथ खिलाफ है और सेवा के सिद्धांतों के खिलाफ भी। ऐसे में दोनों सिख डॉक्टर भाइयों ने दाढ़ी कटवाने का निर्णय लिया। जब विश्व कोरोना के खिलाफ जंग को जीत लेगा तब डॉ. सिंह जैसे लोगों की तस्वीरें हमें बताएंगी कि मुश्किल हालातों में भी लोगों ने सेवा का अपना भाव नहीं छोड़ा था।
हालांकि, डॉ. सिंह दाढ़ी कटवाने के फैसले से उदास भी हुए। उन्होंने कहा कि यह मेरी पहचान का हिस्सा था। जब सुबह मैं उठने के बाद आईना देखता हूं तो मुझे झटका लगता है। यह मेरे लिए बहुत कठिन फैसला था लेकिन हमने जो जरूरी समझा वो किया।
बता दें कि कनाडा में कोरोना संक्रमितों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। अब तक 66,434 व्यक्ति संक्रमण की चपेट में आ गए और मौत का आंकड़ा 4,569 पहुंच गया है। वहीं, 30,226 मरीज स्वस्थ भी हो चुके हैं।
Sikh doctor makes 'extremely difficult decision' to shave ‘in this time of need’
— Jasleen Singh (@Jasleen67771243) May 6, 2020
For Montreal physician Sanjeet Singh-Saluja, COVID-19 forced him into the difficult position of having to reconcile his medical oath with his religious values
Hats off to you sir 🙏❤️#ProudSikh pic.twitter.com/JViNfBr1oO
(साभार: सोशल मीडिया)
पाकिस्तान के अशांत बलूचिस्तान प्रांत में सड़क किनारे हुए बम धमाके में पांच लोगों की मौत
- प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क
- मार्च 7, 2021 13:17
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पाकिस्तान के अशांत बलूचिस्तान में फिर फटा शक्तिशाली बम फटने से पांच लोगों की मौत हो गई। धमाका टंडोरी इलाके के सिबी कस्बे से 30 किलोमीटर दूर एक स्थान पर हुआ। सिबी के उपायुक्त सैयद जाहिद शाह ने कहा कि धमाके में पांच मजदूरों की मौत हो गई जबकि पांच अन्य घायल हो गए। इनमें सुरक्षा कर्मी भी शामिल है।
क्वेटा । पाकिस्तान के अशांत बलूचिस्तान प्रांत में ट्रक के सड़क किनारे हुए बम धमाके की चपेट में आने से उसमें सवार पांच निर्माण मजदूरों की मौत हो गई और पांच अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। अधिकारियों ने कहा कि शुक्रवार शाम हुए इस बम धमाके की किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली है। धमाका टंडोरी इलाके के सिबी कस्बे से 30 किलोमीटर दूर एक स्थान पर हुआ। सिबी के उपायुक्त सैयद जाहिद शाह ने कहा कि धमाके में पांच मजदूरों की मौत हो गई जबकि पांच अन्य घायल हो गए। इनमें एक सुरक्षा कर्मी भी शामिल है।
‘कोवैक्स’ कार्यक्रम के तहत श्रीलंका को मिला ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका टीका
- प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क
- मार्च 7, 2021 12:23
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‘कोवैक्स’ एक वैश्विक पहल है जिसके तहत आय के स्तर को नजरअंदाज कर सभी देशों को त्वरित और समान रूप से कोविड-19 का टीका देने का प्रयाय किया जा रहा है।
कोलंबो। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के ‘कोवैक्स’ कार्यक्रम के तहत ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका टीके की 2,64,000 खुराकों की पहली खेप रविवार को श्रीलंका पहुंची। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। ‘कोवैक्स’ एक वैश्विक पहल है जिसके तहत आय के स्तर को नजरअंदाज कर सभी देशों को त्वरित और समान रूप से कोविड-19 का टीका देने का प्रयाय किया जा रहा है।
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श्रीलंका की मंत्री डॉ सुदर्शिनी फर्नांडोपुले ने बताया कि कोरोना वायरस टीके की पहली खेप रविवार को श्रीलंका पहुंची। उन्होंने कहा, “कोवैक्स कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य मंत्रालय को आज कोविड-19 टीके की 2,64,000 खुराकें मिलीं।” यूनिसेफ ने एस्ट्राजेनेका टीके की पहली खेप श्रीलंका तक पहुंचाई।
म्यांमा की सैन्य सरकार पर प्रतिबंध लगाने के लिए बढ़ रहा वैश्विक दबाव
- प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क
- मार्च 7, 2021 11:28
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अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर दबाव बढ़ रहा है कि वह म्यांमा की सैन्य सरकार पर और अधिक प्रतिबंध लगाए। कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का मानना है कि दमनकारी सरकार के संसाधनों और उसे मिलने वाले धन के स्रोत में कटौती कर दबाव बनाया जा सकता है।
बैंकाक। म्यांमा में एक फरवरी को हुए सैन्य तख्तापलट के विरोध में बढ़ते जनाक्रोश पर की जा रही हिंसक कार्रवाई के बाद से अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर दबाव बढ़ रहा है कि वह म्यांमा की सैन्य सरकार पर और अधिक प्रतिबंध लगाए। इसके साथ ही कई देश इस बारे में भी विचार कर रहे हैं कि वैश्विक निंदा के आदी हो चुके म्यांमा के सैन्य अधिकारियों को किस प्रकार हटाया जाए। महामारी के कारण पहले से ही आम नागरिकों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है ऐसे में उन्हें नुकसान पहुंचाए बिना म्यांमा की सैन्य सरकार को अपदस्थ करने की चुनौती और बढ़ गई है। फिर भी, कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का मानना है कि दमनकारी सरकार के संसाधनों और उसे मिलने वाले धन के स्रोत में कटौती कर दबाव बनाया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र के विशेष राजनयिक क्रिस्टीन एस. बर्गनर ने शुक्रवार को सुरक्षा परिषद से आग्रह किया था कि सैन्य सरकार के विरुद्ध कार्रवाई की जाए। बर्गनर ने कहा था, “सामूहिक कार्रवाई अनिवार्य है। हम म्यांमा की सेना को कितनी छूट दे सकते हैं?”
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संयुक्त राष्ट्र द्वारा समन्वित कार्रवाई करना कठिन है क्योंकि सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य रूस और चीन इस पर वीटो कर सकते हैं। इसके साथ ही म्यांमा के पड़ोसी देश, उसके सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार और निवेश के स्रोत वाले देश प्रतिबंधों के खिलाफ हैं। शांतिपूर्ण कार्रवाई के भी कुछ प्रयास किए गए हैं जिसके तहत अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा ने म्यांमा की सेना, उनके परिजनों और सैन्य सरकार के अन्य वरिष्ठ नेताओं पर प्रतिबंध और कड़े कर दिए हैं। अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा था कि म्यामां सेंट्रल बैंक में रखी एक अरब डॉलर से अधिक की राशि को निकालने के म्यांमा की सेना के प्रयासों को अवरुद्ध कर दिया गया है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र के विशेष अधिकारी थॉमस एंड्रयूज ने पिछले सप्ताह एक रिपोर्ट में कहा था कि सैन्य सरकार के ज्यादातर आर्थिक हितों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। कुछ देशों ने म्यांमा को दी जाने वाली सहायता पर भी रोक लगा दी है और विश्व बैंक ने कहा है कि उसने भी वित्तपोषण रोक दिया है तथा सहायता कार्यक्रमों की समीक्षा की जा रही है।

