राजनीतिक संकट के कारण श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे पर इस्तीफे का दबाव

Mahinda Rajapaksa
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राजनीतिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे पर एक बार फिर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ गया है। उनके छोटे भाई और राष्ट्रपति गोटबाया द्वारा आपातकाल लागू किए जाने से पहले हुई कैबिनेट की विशेष बैठक में राजपक्षे पर फिर से इस्तीफा देने का दबाव डाला गया।

कोलंबो। राजनीतिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे पर एक बार फिर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ गया है। उनके छोटे भाई और राष्ट्रपति गोटबाया द्वारा आपातकाल लागू किए जाने से पहले हुई कैबिनेट की विशेष बैठक में राजपक्षे पर फिर से इस्तीफा देने का दबाव डाला गया। हालांकि, राजपक्षे इस्तीफे से बार-बार इनकार करते रहे हैं। कैबिनेट की विशेष बैठक शुक्रवार को आयोजित की गई थी। देश में आर्थिक मंदी से निपटने में सरकार की अक्षमता को लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ था, जिससे जनता को अभूतपूर्व कठिनाई हुई है। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने शुक्रवार आधी रात से आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी, जो कि एक महीने में दूसरी बार है। एक सूत्र ने बताया, ‘‘कैबिनेट बैठक के दौरान कुछ ने सुझाव दिया कि प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना चाहिए।

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राष्ट्रपति (गोटबाया राजपक्षे) प्रधानमंत्री के इस्तीफे के साथ राजनीतिक संकट का अंत चाहते हैं।’’ 76 वर्षीय प्रधानमंत्री के समर्थकों ने उन्हें जनता की मांग पर पद पर बने रहने के लिए जोर दिया और कहा कि उनके छोटे भाई राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे (72) के इस्तीफे की मांग अधिक थी। हालांकि, राष्ट्रपति कुछ हफ्तों से चाहते हैं कि सर्वदलीय अंतरिम सरकार बनाने के लिए प्रधानमंत्री इस्तीफा दें। सूत्र के अनुसार, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने कैबिनेट की बैठक में कहा कि अगर उत्तराधिकारी मौजूदा आर्थिक संकट को हल कर सकते हैं तो वह तुरंत इस्तीफा दे देंगे, हालांकि उन्होंने स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि वह इस्तीफा देंगे।

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‘मिरर’ अखबार ने बताया कि प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने राष्ट्रपति की बात सुनी और कहा कि अगर कोई नयी सरकार आर्थिक संकट को हल कर सकती है और तत्काल समाधान ला सकती है, तो वह नयी सरकार को अपनी शुभकामनाएं देंगे। रिपोर्ट में कहा गया है, हालांकि महिंदा राजपक्षे इस्तीफा देंगे या नहीं, इस पर अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन महिंदा राजपक्षे ने पहले इस बात पर जोर दिया है कि अगर कोई अंतरिम सरकार बनती है तो इसके प्रमुख वह होंगे।

कैबिनेट की विशेष बैठक ऐसे समय हुई जब छात्र कार्यकर्ताओं ने बृहस्पतिवार रात से ही संसद की घेराबंदी कर रखी थी। सभी सेवाओं की एक दिन की आंशिक हड़ताल भी थी। छात्रों ने आवश्यक वस्तुओं की कमी की वजह से पैदा हुए आर्थिक संकट से निपटने में सरकार की नाकामी के कारण इस्तीफे की मांग करते हुए परिसर के मुख्य प्रवेश द्वार को अवरुद्ध कर दिया। घटनाओं में नया मोड़ तब आया जब संसद के नए उपाध्यक्ष रंजीत सियाम्बलपतिया ने यह कहते हुए फिर से अपना इस्तीफा दे दिया कि उन्होंने अपना कर्तव्य निभाने के लिए यह निर्णय लिया है। नए उपाध्यक्ष सियाम्बलपतिया का चुनाव बृहस्पतिवार को हुआ था और उन्हें सरकार के समर्थन से चुना गया था। उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी श्रीलंका फ्रीडम पार्टी द्वारा सरकार छोड़ने के फैसले के बाद इस्तीफा दे दिया था।

1948 में ब्रिटेन से आजादी के बाद से श्रीलंका अभूतपूर्व आर्थिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। यह संकट आंशिक रूप से विदेशी मुद्रा की कमी के कारण है, जिसका अर्थ है कि देश मुख्य खाद्य पदार्थों और ईंधन के आयात के लिए भुगतान नहीं कर सकता है। पूरे श्रीलंका में नौ अप्रैल से हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए हैं, आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं और ईंधन, दवाओं और बिजली की आपूर्ति में भारी कमी आई है। बढ़ते दबाव के बावजूद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके बड़े भाई एवं प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया है। संसद में बृहस्पतिवार को उनकी महत्वपूर्ण चुनावी जीत हुई जब उनके उम्मीदवार ने डिप्टी स्पीकर पद की दौड़ में जीत हासिल की।

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