कई हमलों के बाद भी पंजशीर घाटी का बाल भी बांका नहीं कर पाया तालिबान

राजधानी काबुल के नजदीक स्थित इसी घाटी में अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह भी छुपे हैं, उन्होंने ट्वीट कर कहा कि मैं कभी भी तालिबान के सामने नहीं झुकूंगा। मैं अपने नायक अहमद शाह मसूद, कमांडर, लीजेंड और गाइड की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा। मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा, जिन्होंने मेरा यकीन किया।
नार्दन अलायंस शुरू से ही तालिबान के खिलाफ जंग करती आई है। ऐसे में अब अमरुल्लाह सालेह अपने कमांडर अहमद शाह मसूद की जगह ले सकते हैं।
पंजशीर को आजतर नहीं जीत सका तालिबान
तालिबान ने जुलाई में अफगानिस्तान के प्रांतो पर हमले किए, बताया जा रहा है कि अफगान नेशनल आर्मी के जवानों के बीच यह खबर फैलाई गई कि मिलिट्री के शीर्ष कमांडरों ने तालिबान के साथ समझौता कर लिया है।
सही जानकारी न होने और असलहों की कमी के कारण सैनिक तालिबान के आगे झुक गए, लेकिन पंजशीर एकमात्र ऐसा प्रांत है जो तालिबान के कब्जे से बाहर है।
सोवियत सेना को भी मुंह की खानी पड़ी
उत्तर-मध्य अफगानिस्तान की इस घाटी पर 1970 के दशक में सोवियत संघ या और 1990 के दशक में तालिबान ने कई हमले किए, लेकिन उऩ्हें जीत नहीं मिली। इस इलाके के कमांडर अहमद शाह मसूद को शेर-ए-पंजशीर कहा जाता है। इस घाटी की भगौलिक बनावट ऐसी है कि यहां बाहरी नहीं घुस सकते। ऊंचे पहाड़ों से घिरे इस इलाके में बीच में मैदानी भाग है।
अफगान में हीरो हैं मसूद
1990 के दशक में अहमद शाह मसूद ने तालिबान से संघर्ष किया, जिससे यहां उनकी काफी इज्जत है। भारत से भी उनकी अच्छी दोस्ती थी, अहमद शाह मसूद तालिबानी हमले में बुरी तरह घायल हुए थे, तब भारत ने ही उन्हें एयरलिफ्ट कर ताजिकिस्तान के फर्कहोर एयरबेस पर इलाज कराया था। यह भारत का पहला विदेशी सैन्य बेस भी है। इसे खासकर नार्दन अलायंस की मदद के लिए ही भारत ने स्थापित किया था।