अमेरिका के दबाव में चेक नाके खत्म कर बड़े बेस में लौट रही है अफगान सेना
अमेरिका इन हमलों, रहने की व्यवस्था और इन नाकों पर तैनात सैनिकों को महीनों तक वेतन नहीं मिलने जैसे हालातों का हवाला देकर लंबे समय से इन्हें बंद करने का अनुरोध कर रहा था।
मैदान शार। वर्षों तक चेक नाकों पर तालिबान हमलों में हजारों सैनिकों को खोने के बाद अफगानिस्तान की सेना अंतत: अमेरिका के दबाव में अब अपने चेक नाकों को बंद कर सेना को बड़े-बड़े बेस में भेज रही है। गौरतलब है कि अफगानिस्तान के सुदूर इलाकों में बने सेना के चेक नाकों पर अक्सर तालिबान हमले होते हैं जिनमें बड़ी संख्या में सैनिक मारे जाते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं इन नाकों पर सैनिकों के रहने की व्यवस्था भी बहुत खराब है। सोने के लिए कंटेनरों में जगह बनायी गई है और कई बार तो उन्हें बिना भोजन-पानी के भी रहना पड़ता है। अमेरिका इन हमलों, रहने की व्यवस्था और इन नाकों पर तैनात सैनिकों को महीनों तक वेतन नहीं मिलने जैसे हालातों का हवाला देकर लंबे समय से इन्हें बंद करने का अनुरोध कर रहा था।
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काबुल के पास पाक्तिया प्रांत के अमेरिकी बेस में अफगान सेना के जनरल ददन लवांग ने कहा कि चेक नाके असफल रणनीति हैं। हमारी योजना सैनिकों को अभियानों पर भेजने की है, हम तालिबान के घर में घुसकर लड़ना चाहते हैं। यूं चेक नाकों पर बेहद खराब हालात में रोज-रोज जीने की कोशिश करना नहीं चाहते। लवांग ने कहा कि 100 में से 50 सैनिक चेक नाकों पर मारे जाते हैं। 2014 से अभी तक हमने सैकड़ों-हजारों सैनिकों की जान गंवायी है। हालांकि अफगानिस्तान में चेक नाकों को बंद करना लंबे राजनीतिक बहस का हिस्सा है।
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अफगान सरकार में शामिल छोटे-छोटे और स्थानीय गुटों का मानना है कि सेना का काला-लाल-हरा झंडा ही इन सुदूर इलाकों में भान कराता है कि क्षेत्र सरकारी नियंत्रण में है। ऐसे में इन चेक नाकों को बंद करना उनके लिए उचित कदम नहीं था। वहीं, दूसरी ओर अफगानिस्तान में नाटो मिशन का नेतृत्व कर रहे जनरल स्कॉट मिलर का कहना है कि चेक नाकों को बंद करना अफगान सेना के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हालिया बैठक में मिलर ने अमेरिकी सैन्य अधिकारियों से कहा कि अभियानों के दौरान लोग (सैनिक) नहीं मरते, वे तालिबान को मार कर आते हैं। उन्होंने कहा कि आप मेरी रणनीतिक प्राथमिकताओं के बारे में जानना चाहते हैं? चेक नाकों की बात करिए।
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