काबुल में सबसे बड़ी अफगान शांति बैठक के लिए जुटे हजारों लोग
शांति समझौते के संभावित शर्तों को तय करने के उद्देश्य से दुर्लभ ‘‘लोया जिरगा’’ का आयोजन किया गया, जिसमें हिस्सा लेने के लिये 3,000 से अधिक लोगों को आमंत्रित किया गया था।
काबुल। तालिबान के साथ शांति समझौते को आगे बढ़ाने की दिशा में अफगानिस्तान तथा अमेरिका के प्रयासों पर चर्चा के लिये काबुल में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच आयोजित शांति बैठक में हिस्सा लेने के लिये समूचे देश से हजारों नेता और अधिकारी जुटे। शांति समझौते के संभावित शर्तों को तय करने के उद्देश्य से दुर्लभ ‘‘लोया जिरगा’’ का आयोजन किया गया, जिसमें हिस्सा लेने के लिये 3,000 से अधिक लोगों को आमंत्रित किया गया था।
Afghanistan's president hosts grand council to agree on common agenda for peace talks with the Taliban. By @Kathygannon. https://t.co/ShBp6LevXU
— The Associated Press (@AP) April 29, 2019
लोया जिरगा पश्तो भाषा के शब्द हैं और इनका मतलब है महापरिषद। सैकड़ों साल पुरानी यह संस्था इस्लामी शूरा या सलाहकार परिषद जैसे सिद्धांत पर काम करने वाली आधुनिक अफगानिस्तान के इतिहास में सबसे बड़ी संस्था है। अब तक कबीलों के आपसी झगड़े सुलझाने, सामाजिक सुधारों पर विचार करने और नये संविधान को मंजूरी देने के लिये इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है। अफगानिस्तान में स्थायी संघर्षविराम के वास्ते अमेरिकी सेना को वापस बुलाने और तालिबान के विभिन्न संकल्पों पर चर्चा के उद्देश्य से अमेरिका एवं तालिबान के बीच चल रही वार्ता को लेकर लोया जिरगा बुलायी गयी है।
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इन वार्ताओं से अब तक राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार को दूर रखा गया है क्योंकि तालिबान उसे अमेरिका की कठपुतली मानता है। बातचीत के शुरू होने पर गनी ने कहा की तालिबान के साथ बातचीत के लिये हम मुख्य विषय को रेखांकित करना है। हम आप सभी से स्पष्ट सलाह चाहते हैं। हाल में 2013 में जिरगा का आयोजन किया गया था जब अफगान अधिकारियों ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के बने रहने की इजाजत वाले सुरक्षा समझौते को लागू किया था जबकि 2014 में अमेरिकी सैनिकों की वापसी की योजना थी।
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