वायु प्रदूषण को लेकर WHO ने जारी किए नए दिशानिर्देश, लगभग पूरा भारत ही प्रदूषित

WHO new instructions for air pollution
प्रतिरूप फोटो

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ )ने हाल ही में वायु गुणवत्ता के लिए सख्त दिशानिर्देश प्रकाशित किए हैं, जिसके तहत प्रदूषकों के अनुशंसित स्तर को कम कर दिया गया है, जिन्हें मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित माना जा सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ )ने हाल ही में वायु गुणवत्ता के लिए सख्त दिशानिर्देश प्रकाशित किए हैं, जिसके तहत प्रदूषकों के अनुशंसित स्तर को कम कर दिया गया है, जिन्हें मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित माना जा सकता है।पहले के प्रदूषक मापदंड की बात करें तो पीएम 2.5 की सांद्रता, 25 माइक्रोग्राम प्रति 24 घंटे की अवधि में क्यूबिक मीटर को सुरक्षित माना जाता था लेकिन हाल ही में डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि 15 माइक्रोग्राम से अधिक की एकाग्रता मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित नहीं है।

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डब्ल्यूएचओ के 2005 के प्रदूषण मानकों के अनुसार छह सबसे आम वायु प्रदूषक हैं -जिनमें पीएम 2.5 ,PM 10,नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड ,सल्फर डाइऑक्साइड  ,कार्बन मोनोऑक्साइड और ओजोन शामिल हैं। पीएम 2 .5 और पीएम10 माइक्रोन और उससे छोटे आकार के कणों को दर्शाते हैं।( माइक्रोन 1 मीटर का 1000000 का हिस्सा होते हैं) और सबसे आम प्रदूषक और श्वसन रोगों के लिए उत्तरदाई होते हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नए दिशानिर्देशों के अनुसार सुझाव दिया है कि वायु प्रदूषण मानव हेल्थ के लिए पहले की तुलना में कहीं अधिक हानिकारक हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुमानों के मुताबिक हर वर्ष लगभग 70 लाख  लोगों की मौत इन बीमारियों से होती है, जो वायु प्रदूषण का प्रत्यक्ष कारण हैं।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनिया की लगभग 90 पर्सेंट से अधिक आबादी उन क्षेत्रों में निवास करती है, जो 2005 के प्रदूषण मानकों को पूरा नहीं करते। नए वायु गुणवत्ता दिशा निर्देशों के अनुसार लगभग पूरे भारत को वर्ष के अधिकांश समय प्रदूषित क्षेत्र माना गया है। दक्षिण एशिया और मुख्य रूप से भारत दुनिया की सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक हैं, जहां प्रदूषण स्तर अनुशंसित स्तर से कई गुना अधिक है। उदाहरण के लिए ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय शहर दिल्ली की 2020 में पीएम 2.5 की एवरेज सांद्रता अनुशंसित स्तर से 17 गुना अधिक थी, कोलकाता में 9 गुना अधिक, मुंबई में 8 गुना अधिक, तो वहीं चेन्नई में 5 गुना अधिक थी।

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बता दें कि डब्ल्यूएचओ के मानक किसी भी देश के लिए बाध्यकारी नहीं है। यह केवल अनुशंसित मापदंड हैं,जिन्हें वैज्ञानिक अध्ययन द्वारा मूल्यांकन करके मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित माना जा सकता है। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि अगर देश अपने नए वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा करने में सक्षम होते हैं तो पीएम 2.5 से होने वाली 80%  मौतों से बचा जा सकता है। आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर और भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कार्यक्रम की एक संचालन समिति के अध्यक्ष एसएन त्रिपाठी ने कहा कि- हमें देश के स्वास्थ्य डाटा को मजबूत करने की आवश्यकता है और इसके अनुसार वायु गुणवत्ता मानकों को संशोधित करना होगा।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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