सिद्धारमैया भाग्यशाली रहे जो अपना कार्यकाल पूरा कर पाये

Siddaramaiah was fortunate who could complete his term
कमलेश पांडे । May 12 2018 11:36AM

कर्नाटक में 47 सालों तक राज करने वाली राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस एक बार फिर से सत्ता में वापसी के लिए चुनाव मैदान में है, जिसे केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय पार्टी बीजेपी कड़ी टक्कर दे रही है।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री राज्य के वास्तविक मुख्य कार्यकारी अधिकारी होते हैं, लेकिन उनकी स्थिरता का सवाल लोगों के लिए सदैव ही किसी यक्ष प्रश्न से कम नहीं रहा है। भारतीय संविधान के अनुसार, राज्यपाल भले ही राज्य के संवैधानिक प्रधान होते हैं, पर वास्तविक कार्यकारी शक्ति मुख्यमंत्री में ही निहित होती है, जिसकी अस्थिरता से राज्य का विकास और भावी नीतियां प्रभावित होती हैं। अमूमन राज्य विधान सभा चुनाव के बाद राज्यपाल सरकार बनाने के लिए बहुमत प्राप्त पार्टी या गठबंधन के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करते है, जिनका मंत्रिमंडल सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। यदि विधानसभा का उनमें विश्वास बरकरार रहा तो उनका कार्यकाल पांच साल के लिए तय होता है।

वर्ष 1947 में आजादी हासिल करने के बाद से अब तक चौबीस लोग मैसूर (1 नवंबर 1973 से पहले यह राज्य मैसूर के नाम से ही जाना जाता था) और कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे हैं। उनमें से अधिकांश भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के थे। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के. चेंगला राय रेड्डी थे, जबकि सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले मुख्यमंत्री डी. देवराज उर्स थे जिन्होंने 1970 के दशक में सात साल से अधिक समय तक सूबे का दायित्व सफलतापूर्वक निभाया। उनके बाद मौजूदा मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ही ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने पांच वर्षों का अपना शासनकाल निर्विघ्नतापूर्वक निभाया।

बहरहाल, कर्नाटक में 47 सालों तक राज करने वाली राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस एक बार फिर से सत्ता में वापसी के लिए चुनाव मैदान में है, जिसे केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय पार्टी बीजेपी कड़ी टक्कर दे रही है। यही नहीं, सूबे की मजबूत क्षेत्रीय पार्टी और समाजवादी मूल का दल जेडीएस भी इस बार मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहा है, जिससे चुनावी लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है। भले ही अब तक इस राज्य ने 24 मुख्यमंत्री देखे हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि केंद्र की सत्ता गंवा कर टूट चुकी कांग्रेस सूबे की सत्ता में एक बार फिर से लौटेगी या नहीं? यानी कि कर्नाटक का अगला मुख्यमंत्री भी कांग्रेस का होगा या नहीं, इस पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं।

आइये अब यह जानते हैं कि सूबे की स्थापना और दूसरी बार नाम परिवर्तन के बाद से अब तक कौन कौन बना है कर्नाटक का मुख्यमंत्री और कैसी रही है उसकी सियासी पृष्ठभूमि जिसके मद्देनजर जनता उन पर फिदा रही है। आमतौर पर कांग्रेस ने सर्वाधिक, बीजेपी ने लगातार पांच वर्ष तक और समाजवादियों ने छिटपुट तौर पर न केवल कई बार शासन किया, बल्कि देश को अपना एक प्रधानमंत्री भी दिया। कांग्रेस भी इस प्रदेश से राष्ट्रपति दे चुकी है।

कर्नाटक के प्रथम मुख्यमंत्री के. सी. रेड्डी थे जो 25 अक्टूबर 1947 से 30 मार्च 1952 तक इस पद पर रहे। वह कांग्रेस के प्रभावशाली राजनेता थे। इसी पार्टी से दूसरे मुख्यमंत्री के. हनुमंतया बने जिन्होंने 30 मार्च 1952 से 19 अगस्त 1956 तक राज्य की सेवा की। कांग्रेस नेता कादिलाल मंजपा ने तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में 19 अगस्त 1956 से 31 अक्टूबर 1956 तक कर्नाटक के विकास में अपना योगदान दिया। चौथे मुख्यमंत्री के रूप में कांग्रेस नेता एस निजालिंगप्‍पा ने 1 नवम्बर 1956 को पदभार सम्भाल और 16 मई 1958 तक इस पद पर बने रहे। कांग्रेस नेता बीडी जट्टी सूबे के पांचवें मुख्यमंत्री बने और 16 मई 1958 से 9 मार्च 1962 तक लोगों की अहर्निश सेवा की।

राज्य का छठा मुख्यमंत्री कांग्रेस एस आर कांथी बने जो 14 मार्च 1962 से 20 जून 1962 तक अपने पद पर बने रहे। इन्हें लोगों की सेवा का ज्यादा मौका नहीं मिला। कांग्रेस नेता एस निजालिंगप्‍पा 21 जून 1962 को सातवें मुख्यमंत्री बने और 28 मई 1968 तक इस पद को सुशोभित किया। राज्य के आठवें मुख्यमंत्री कांग्रेस नेता वीरेंद्र पाटील बने और 29 मई 1968 से 18 मार्च 1971 तक सफलतापूर्वक राजकाज चलाया। इससे कुछ लोग नाराज हो गए जिसके बाद उन्हें बर्खास्त कर 19 मार्च 1971 को सूबे में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया जो 20 मार्च 1972 तक कायम रहा। उसके बाद कांग्रेस नेता डी देवराज उर्स ने 20 मार्च 1972 को नवें मुख्यमंत्री बने और 31 दिसम्बर 1977 तक राजकाज चलाया। लेकिन 31 दिसम्बर 1977 को राजनैतिक द्वेष वश पुनः राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया जो 28 फरवरी 1978 तक चला। इस दौरान सूबे में चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस नेता डी देवराज उर्स ने 28 फरवरी 1978 को पुनः मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 7 जनवरी 1980 तक इस पद पर बने रहे। उसके बाद कांग्रेस नेता आर गुंडू राव दसवें मुख्यमंत्री बने और 12 जनवरी 1980 से 6 जनवरी1983 तक विधिवत शासन चलाया।

सच कहा जाए तो सन 1983 कर्नाटक के सियासी जीवन का परिवर्तन वर्ष है। इस वर्ष जनता पार्टी के नेतृत्व में समाजवादी नेता रामकृष्ण हेगड़े ने पहली बार न केवल गैरकांग्रेसी सरकार  की नींव रखी। श्री हेगड़े ने ग्यारहवें मुख्यमंत्री के रूप में 10 जनवरी 1983 को सत्ता संभाली और 10 अगस्त 1988 तक इस पद पर बने रहे। एक लोकप्रिय और प्रभावशाली समाजवादी नेता के रूप में उन्होंने कर्नाटक पर अमिट छाप छोड़ी, जबकि ज्यादा दिनों तक मुख्यमंत्री नहीं रहे। जनता पार्टी में हुए नेतृत्व परिवर्तन के बाद पार्टी नेता एसआर बोम्‍मई ने 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर 13 अगस्त 1988 को सत्ता संभाली और 21 अप्रैल 1989 तक इस पद पर बने रहे। तब केंद्र में सत्तारूढ़ राजीव सरकार बोम्मई सरकार से इतनी खार खाए बैठी थी कि 21 अप्रैल 1989 को उसने बोम्मई सरकार को बर्खास्त कर सूबे पर राष्ट्रपति शासन थोप दिया जो 30 नवम्बर 1989 तक चला।

उसके बाद कांग्रेस नेता वीरेंद्र पाटील ने 30 नवम्बर 1989 को तेरहवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिए और  10 अक्टूबर 1990 तक ही शासन कर सके। उनकी सियासी परिस्थिति बदली तो 10 अक्टूबर 1990 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया जो 17 अक्टूबर 1990 तक चला। इसके बाद चौदहवें मुख्यमंत्री के तौर पर कांग्रेस नेता एस बंगारप्‍पा ने 17 अक्टूबर 1990 को शपथ ली और 19 नवम्बर 1992 तक अपने पद पर काबिज रहे। उनके बाद कांग्रेस नेता एम वीरप्‍पा मोइली ने 19 नवंबर 1992 को पन्द्रहवें मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता संभाली और 11 दिसम्बर 1994 तक सफलतापूर्वक शासन किया।

वर्ष 1994 में राज्य में दूसरी बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी और जनता दल नेता एच डी देवेगौड़ा ने 11 दिसम्बर 1994 को सोलहवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और 31.5.1996 तक इस पद पर बने रहे। वह इतने सौभाग्यशाली रहे कि इस पद के बाद उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनने का भी मौका मिला। इससे जनता दल नेता जेएच पटेल की किस्मत खुल गई और सत्रहवें मुख्यमंत्री के तौर पर 31 मई 1996 को उन्होंने सत्ता संभाली और 7 अक्टूबर 1999 तक इस पद पर बने रहे। समाजवादियों का यह दुर्भाग्य रहा कि सत्ता में तो वे पहुंचे लेकिन कभी भी पांच साल तक निष्कंटक राज नहीं कर पाए।

यही वजह है कि कांग्रेस नेता एसएम कृष्‍णा के नेतृत्व में सूबे में कांग्रेसी सत्ता पुनः लौटी और श्री कृष्णा ने अठारहवें मुख्यमंत्री के रूप में 11 अक्टूबर 1999 को सत्ता संभाली और 28 मई 2004 तक इस पद पर काबिज रहे। उनके बाद कांग्रेस नेता धर्म सिंह ने  28 मई 2004 को उन्नीसवें मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता संभाली और 28 जनवरी 2006 तक राज्य पर शासन किया। उनके बाद सूबाई सत्ता एक बार फिर से समाजवादियों के जिम्मे आई और जेडीएस नेता एचडी कुमारास्‍वामी ने बीसवें मुख्यमंत्री के तौर पर 3 फरवरी 2006 को सत्ता संभाली और 8 अक्टूबर 2007 तक इस पद पर बने रहे। जब उनकी सरकार अल्पमत में आ गई तो केंद्र ने 9 अक्टूबर 2007 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जो 11 नवम्बर 2007 तक कायम रहा।

वर्ष 2007 में ही पहली बार कर्नाटक में राष्‍ट्रवादी सरकार भी बनी। बीजेपी नेता बी एस येदियुरप्‍पा ने 21वें मुख्यमंत्री के रूप में 12 नवम्बर 2007 को शपथ ली, लेकिन बहुमत नहीं मिल पाने के कारण 19 नवम्बर 2007 को त्यागपत्र दे दिया। जिसके बाद सूबे में 20 नवम्बर 2007 को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया जो 27 मई 2008 तक चला। इस बीच हुए विधान सभा चुनावों में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिली और बी एस येदियुरप्‍पा दूसरी बार 30 मई 2008 को सूबे के मुख्यमंत्री बने और दलगत मतभेद के चलते 31 जुलाई 2011 तक ही इस पद पर कायम रह सके। उनके बाद बीजेपी नेता डीवी सदांनद गौड़ा ने 4 अगस्त 2011 को बाइसवें मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता संभाली और 12 जुलाई 2012 तक इस पद पर बने रहे। भाजपा नेता गौड़ा के कार्यकाल में एक बार फिर बीजेपी का अंदरूनी मतभेद गहराया, जिसके बाद बीजेपी नेता जगदीश शेट्टार ने तेइसवें मुख्यमंत्री के तौर पर 12 जुलाई 2012 राज्य का राजकाज सम्भाला और 12 मई 2013 तक अपने पद पर बने रहे।

बीजेपी नेता शेट्टार के नेतृत्व में हुए कर्नाटक विस चुनावों में बीजेपी की शर्मनाक पराजय हुई, क्योंकि महज पांच साल के सत्ताकाल में बीजेपी ने तीन मुख्यमंत्री दिए जिससे प्रशासनिक विरोधाभास गहराया और भ्रष्टाचार बढ़ा। सूबे में एक बार फिर कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला और समाजवादी मूल के कांग्रेसी नेता सिद्धारमैया ने 13 मई 2013 को राज्य के 24वें मुख्यमंत्री के तौर पर कर्नाटक की सत्ता संभाली और पांच वर्षों तक निष्कंटक राज करने वाले सूबे के दूसरे कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। बता दें कि किसी भी गैर कांग्रेसी नेता को लगातार पांच साल तक कर्नाटक की सत्ता में बने रहने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है।

-कमलेश पांडे

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