हिन्दी में बच्चों के लिए साहित्य कम लिखा जा रहा हैः स्वयं प्रकाश
बाल साहित्य के लिए इस बार साहित्य अकादमी का पुरस्कार पाने वाले वरिष्ठ कहानीकार स्वयं प्रकाश का कहना है कि हिन्दी में बच्चों के लिए लिखने को दूसरे दर्जे का काम समझा जाता है।
बाल साहित्य के लिए इस बार साहित्य अकादमी का पुरस्कार पाने वाले वरिष्ठ कहानीकार स्वयं प्रकाश का कहना है कि हिन्दी में बच्चों के लिए लिखने को दूसरे दर्जे का काम समझा जाता है। उन्होंने कहा कि आज बच्चों के लिए ऐसा लेखन होना चाहिए जो भविष्य के बारे में बताए और वैज्ञानिक समझ पैदा करने में सहायक हो। स्वयं प्रकाश को उनके बाल कहानी संग्रह 'प्यारे भाई रामसहाय' के लिए साहित्य अकादमी का वर्ष 2017 का बाल साहित्य पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गयी है। उन्हें यह पुरस्कार इस वर्ष 14 नवंबर को बाल दिवस के अवसर पर दिया जाएगा। इसके तहत लेखक को 50 हजार रूपये और ताम्र पत्र भेंट किया जाता है।
हिन्दी के प्रतिष्ठित कहानीकार स्वयं प्रकाश ने कहा, 'मैं पिछले तीन-चार साल से बच्चों के लिए ही लिख रहा हूं। भोपाल से एक बाल विज्ञान पत्रिका निकलती है 'चकमक'। मैं उसी के लिए रख रहा हूं। मैंने तय किया है कि मैं बच्चों के लिए ही लिखूंगा।' उन्होंने कहा, 'मेरा आग्रह है कि हिन्दी के हर लेखक को बच्चों के लिए अवश्य कुछ न कुछ लिखना चाहिए।' बांग्ला सहित कई भारतीय भाषाओं की तुलना में हिन्दी में बाल साहित्य कम लिखे जाने का कारण पूछने पर स्वयं प्रकाश ने कहा, 'सही बात है। हिन्दी में बच्चों के लिए लिखने को दूसरे दर्जे का काम समझा जाता है। आप बच्चों के लिए नहीं लिखेंगे तो वे अंग्रेजी में पढ़ेंगे और बाद में आप बड़ों के लिए पाठक कहां से लाएंगे।' यह पूछे जाने पर कि हाल में जेके रोलिंग द्वारा लिखी गयी हैरी पाटर श्रृंखला की पुस्तकें विश्वभर में काफी लोकप्रिय हुईं, किन्तु हिन्दी में इस तरह का रोचक किशोर साहित्य क्यों नहीं रचा जा रहा, उन्होंने कहा, 'हर लेखक को बच्चों के लिए कुछ न कुछ जरूर लिखना चाहिए। समर्थ लोग हैं। लिख क्यों नहीं रहे हैं। साथ ही ऐसे लेखन को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। यह कोई दूसरे दर्जे का काम नहीं है।'
स्वयं प्रकाश मानते हैं कि बच्चों के लिए लिखना एक चुनौती है। उन्होंने कहा, 'ये एक चुनौती है। असल में बच्चे भी अब दूसरी तरह के हैं। पहले जैसे नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि वे हाथी-भालू से बहल जाएं। आज के बच्चों की मांग अलग तरह की है। उसको समझना जरूरी है।' यह पूछे जाने पर कि आज के समय में बच्चों की रुचि किताबों से ज्यादा वीडियो और मोबाइल गेम में बढ़ती जा रही है, ऐसे में बाल साहित्य की क्या प्रासंगिकता है, उन्होंने कहा, 'कॉमिक्स की तरफ लौटना तो पाषाण युग की तरफ लौटना है जब हमारे पास शब्द नहीं थे। भाषा नहीं थी। साथ ही यह सब कल्पना शक्ति को सीमित करते हैं, इसमें कोई शक नहीं है।'
बाल साहित्य को लेकर स्वयं प्रकाश की एक अपनी खास समझ है। वह कहते हैं, 'आप उसको (बच्चे को) पुराने जमाने की कहानियां मत बताइये। आप उसे नये जमाने की, भविष्य की कहानी बताइये। यह काम थोड़ा कठिन है, लेकिन करना पड़ेगा।' उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान में मां अपने बच्चों को झूलना सुनाती हैं। उर्दू में बहुत अच्छे झूलने लिखे जा रहे हैं। आज जरा अपने यहां नजर डालिए। 20-25 साल की माताएं अपने बच्चों को क्या सुनाकर सुलाती हैं। वे सिनेमा के गीत गाती हैं।' स्वयं प्रकाश का मानना है कि इंटरनेट बाल साहित्य के लिए कोई चुनौती नहीं है। असली बात है कि आपकी भाषा में बाल साहित्य रचा जाए। उन्होंने कहा कि हिन्दी में ऐसी पत्रिकाएं होनी चाहिए जो बच्चों की वैज्ञानिक समझ विकसित करने में मदद कर सकें। हिन्दी कहानियों के लिए इससे पहले भी स्वयं प्रकाश को राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार, वनमाली स्मृति पुरस्कार, सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार एवं पहल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
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