ज़िंदगी की फेस वैल्यू (व्यंग्य)

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लाभ हानि से लबरेज़ इस बेवफा दुनिया में कोई भी अपना व्यवसाय हानि उठाने के लिए तो नहीं करेगा। कुछ भी कर अपनी फेस वैल्यू बढानी पड़ेगी। मुख्य व्यवसाय के साथ दूसरे छोटे मोटे काम भी करने पड़ेंगे। विकास के मौसम में करोड़ों के मोबाइल समाज सेवा के लिए ही बेचे जा रहे हैं।

यह बात बार बार सच साबित होती रहती है कि विदेशियों की सोच हमारी जैसी प्रगतिशील हो ही नहीं सकती। इतनी मेहनत के बाद जब दुनिया की अद्वितीय किताब ‘फेसबुक’ महाप्रसिद्ध हो गई, करोड़ों लोगों की जीवन रेखा बन गई, हमारे बच्चों, समाज, अभिभावकों, नेताओं, व्यवसायियों और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का अरबों खरबों का वारा न्यारा हो लिया, अब उस किताब का अपना बंदा कह रहा है कि इस किताब की वजह से समाज और लोकतंत्र का नुकसान हो रहा है। मुझे पूरा विश्वास है कि उन्हें वाकई समझ नहीं आया कि अब तो ज़माना फेस वैल्यू का है। फेस से जुड़ा मेकअप, प्रभाव, मुस्कराहट व हावभाव नुकसान कैसे कर सकते हैं। 

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लाभ हानि से लबरेज़ इस बेवफा दुनिया में कोई भी अपना व्यवसाय हानि उठाने के लिए तो नहीं करेगा। कुछ भी कर अपनी फेस वैल्यू बढानी पड़ेगी। मुख्य व्यवसाय के साथ दूसरे छोटे मोटे काम भी करने पड़ेंगे। विकास के मौसम में करोड़ों के मोबाइल समाज सेवा के लिए ही बेचे जा रहे हैं। यूटयूब ने दिन रात ज़िंदगी को भक्त बना दिया है। बच्चों, जवानों में ही नहीं कब्र में लटकी टांगों में भी महंगा पेट्रोल भर दिया है। ऐसे नेक काम करने वालों को क्यूं मानना चाहिए कि उन्होंने अपने चाहने वालों के हितों की अनदेखी की। वक़्त के व्यवसायियों ने तो कब का मान लिया था कि यह सब मानसिक स्वास्थ्य सुधारने के लिए है। विज्ञापन होती जा रही ज़िंदगी यही कहती है।

वह किताब ही क्या जो इंसानी आदतें, दिलचस्पियां व रास्ते न बदल दें। नई फेसवैल्यू ने तो पुराने रिश्तों का नवीनीकरण कर दिया है। नए पाठ पढ़ा दिए, बचपन का सामान्य ज्ञान महका दिया, अपनी उम्र से बड़े मसले निबटाने का प्रशिक्षण दिया। दोस्ती की नई परिभाषा गढ़नी सिखा दी। लोकतंत्र को इतना विकसित, मज़बूत और स्वतंत्र बना दिया, बिना अस्त्रशस्त्र सिर्फ ज़बान से लड़ना सिखा दिया। यह सब तो आजकल के हिसाब से ज़रूरी चीजें हैं। प्रतिस्पर्द्धा में थोड़ा भेदभाव, झूठ व आपसी नफरत तो उग ही जाती है, आखिर यह भी तो इंसानी प्रवृतियां हैं और हमेशा रही हैं। मुनाफ़ा और साम्राज्य बढ़ाने के लिए इतना तो करना ही पड़ता है। घाटा कोई नहीं उठाना चाहता। 

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इंसान को तो हमेशा से मार्ग दर्शन की ज़रूरत रही है जो उसकी जीवन दशा बदल दे, उसकी सोच, विचार, आचरण व भावनाएं प्रभावित कर दे और सबसे महत्वपूर्ण उसकी फेसवैल्यू लिफ्ट करा दे। ऐसा होता रहे तो इंसान अपने स्वार्थों बारे सोचेगा और ऐसे लोगों का साथ भी दे पाएगा जो विकसित समाज चाहते हैं। फेसबुक कभी फेसऑफ भी हो जाए तो दुनिया नुकसान उठाना सीखने के साथ साथ परम्पराओं के निमित सामाजिक होना भी पुन सीख जाएगी जो उसकी ज़िंदगी का असली मूल्य बन जाएगा।

- संतोष उत्सुक 

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