चले गए वो भी साथ छोड़कर (कविता)

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कवयित्री प्रतिभा तिवारी की ओर से नववर्ष पर रची गयी कविता ''चले गये वो भी साथ छोड़कर'' में दर्शाया गया है कि किस तरह से पूरा साल अचानक से खत्म हो जाता है और नया साल दबे पांव आ जाता है।

चले गए वो भी साथ छोड़कर 

उम्मीद भी नहीं कर सकते 

वो एक बार भी देख ले मुड़कर

जब तक थे साथ हमारे

हमें उनके कीमत का एहसास ना था 

उन्हीं वक्त के लिए 

वक्त हमारे पास ना था 

यूं ही पल, दिन, सप्ताह, महीने 

साल बीत जाता है और

दबे पांव नया साल आ जाता है 

फिर क्या नए साल के पहले दिन

जश्न, उल्लास, उत्साह

खुशी से लोग बदहवास 

आप सभी के लिए 

ये साल हो बहुत खास

वक्त अपने कदम पीछे नहीं लेता 

एक भी पल दुबारा साथ 

जीने नहीं देता 

तो जी भरके जी लो 

हर एक पल 

कीमत सिर्फ आज की होती है 

वापस नहीं आता 

बीता हुआ कल 

आज ने हम सभी को परखा है 

"कल किसने देखा है

मेरे हाथों में तो

बस आज की ही रेखा है"।  

       

-प्रतिभा तिवारी

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