डिजिटल इंडिया में कर्ज़ (व्यंग्य)

Loan in digital india
संतोष उत्सुक । Jul 17 2018 3:41PM

करोड़ों का क़र्ज़ हज़म कर डकार भी न लेने वाले भगौड़े काबू नहीं आ रहे। यह ‘प्रसिद्ध’ लोग, कभी दुनिया पर राज करने वालों के देश में आराम से रह रहे हैं। इधर देश में बैंकों का एनपीए बढ़ता जा रहा है।

करोड़ों का क़र्ज़ हज़म कर डकार भी न लेने वाले भगौड़े काबू नहीं आ रहे। यह ‘प्रसिद्ध’ लोग, कभी दुनिया पर राज करने वालों के देश में आराम से रह रहे हैं। इधर देश में बैंकों का एनपीए बढ़ता जा रहा है। एक ज़माना था जब खाते बहियों पर हाथ से तमाम काम और काम तमाम होता था। काले खातों को सफ़ेद न दिखाकर हरा या ब्राउन दिखा दिया जाता था। अब तो डिजिटल इंडिया है यानी न्यु इंडिया यानी पारदर्शी इंडिया, कम से कम बैंक खातों का तो कुछ छिपा नहीं सकते।

न्यु इंडिया सरकार ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है मगर विदेशों के क़ानून की नाक के नीचे से इन ‘प्रसिद्ध’ लोगों को निकालना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। यह ‘महान’ लोग काबू आएंगे या नहीं, कब काबू आएंगे इस सम्बन्ध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कोई ज्योतिषी ज़रूर बता सकता है। सरकार इनसे मदद ले सकती है। मेरा पुराना क़र्ज़ अभी अदा नहीं हुआ और इधर दसियों बंदे मेरी अच्छी सामाजिक साख के कारण मुझे क़र्ज़ में फंसाने में लगे हैं। बहुत दिन बाद कल किसी ज़रूरी काम से बैंक जाना हुआ तो युवा ऋण अधिकारी बोले प्लीज़ अंकल पेंशन लोन ले लीजिए, मैंने कहा क़र्ज़ से जितना हो सके बचना चाहिए तो फिर कहने लगा अंकल हाउस लोन लेकर पीजी खोल लीजिए, नो टैक्स फायदा ही फायदा। मुझे समझ आ गया कि आजकल क़र्ज़ लेने वाले सही बंदों की कमी हो गई है।

बैंक से आकर ईमेल चैक करने लगा तो पाया मेरे ईमेल का सदुपयोग मुझे क़र्ज़ में डुबो देने के लिए जोर शोर से किया जा रहा है। रोज़ कोई न कोई अनजान सूत्र मुझे पुकार रहा है। लगता है क़र्ज़ देने वाले मेरे घर के सामने छतरी लगा कर बैठे हैं। क़र्ज़ ले लो.. क़र्ज़ ले लो। मुफ्त क्रेडिट रिपोर्ट तैयार है प्रिय, तीन लाख अठाईस हज़ार का लोन आपका हो सकता है। आज ईमेल आई है, सौ प्रतिशत पेपर लेस लोन आन लाइन। कैश लोन एनी टाइम। दूसरी ईमेल क्रेडिट कार्ड दे रही है। तीसरी ईमेल कहती है लोन एप्लीकेशन आपके इंतज़ार में है। चौथी लिखती है आपकी लोन एप्लीकेशन के सन्दर्भ में.... अरे भाई हमने कब दी लोन एप्लीकेशन? पांचवीं के अनुसार आपका फ्री बचत खाता स्वीकृत हो सकता है।

आप अगर ईमेल की मास्टर लिस्ट से बाहर होना चाहें तो कारण बताना होगा। ऐसी अनचाही दर्जनों ईमेल्स डिलीट कर चुका हूँ। फिर कोई न कोई भेज देता है। क्या यह डिजिटल इंडिया का रहन सहन है जो मेरी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन किया जा रहा है। मेरा ईमेल नगरपालिका का आम का पेड़ हो गया है। जो चाहे आम लपक कर मुफ्त में चटनी बना ले। दुःख इस बात का है जिनसे कोई ईमेल की उम्मीद रहती है वहां पतझड़ का मौसम हमेशा उगा रहता है। जिन चीज़ों के बारे में जानना नहीं चाहता उनके बारे में ज़बर्दस्ती बताया जा रहा है।

यह भी कटु आर्थिक सत्य है कि कर्ज़ देना-लेना आसान है वसूलना-चुकाना बहुत मुश्किल। ईमानदार लोग तो कर्ज़ लेकर परेशान छटपटाते रहते हैं और किसानों को परिस्थितिवश मज़बूरन आत्महत्या तक करनी पड़ती है। समझदार सरकारें मानवीय दृष्टिकोण अपना कर, अपने प्रिय वोटर के लिए समुचित राजनीति से भरी राष्ट्रीय स्कीम बनाकर ‘ग़रीबों’ के कर्ज़ माफ़ कर देती है। तत्परता इतनी कि एक रुपया माफ़ करने का चैक भी मंत्रीजी के हाथों थमाया जाता है। मुझे याद है मेरे मित्र बैंक शाखा प्रबंधक ने जब एक महिला ऋणी को क़र्ज़ न चुकाने के कारण वकील का रजिस्टर्ड नोटिस भेजा तो उसके पिता बैंक आकर बिफरने  लगे। बोले आपको शर्म नहीं आई आपने एक लड़की को नोटिस भेज दिया। मेरे सहकर्मी ने कहा जनाब उनके नाम पर क़र्ज़ भी तो आपने ही लिया। क्यूँ लिया कर्ज़ ? उनके पल्ले तब पड़ा जब कहा अभी तो नोटिस है बैंक कोर्ट केस लगाकर आपका घर बेचने वाला है। क्या वातावरण में माल्या और नीरव का प्रभाव फ़ैल रहा है। क्या डिजिटल इंडिया में भी कर्ज़ वसूलना मुश्किल हो चला है।

-संतोष उत्सुक

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