फिर बसाओ खुशियों का जहां

peom on diwali
सनुज । Oct 18 2017 10:31AM

युवा लेखक सनुज द्वारा रचित कविता ''फिर बसाओ खुशियों का जहां'' में दीवाली त्योहार और उसके सामाजिक संदेश पर सरल शब्दों में प्रकाश डाला गया है।

छाया हो अंधकार जहां
दीप प्रज्जवलित करो वहां
मन के सब द्वेष मिटाकर
सबको फिर हमसफर बनाकर,
फिर बसाओ खुशियों का जहां 
ना जाने कल फिर हों कहां।

दुखी हो जब मन तुम्हारा 

बच्चों में बच्चा बन जाना  

जीवन में खुशियाँ बरसाकर 

चेहरों पर मुस्कान जगाना 

क्या छोटा क्या बड़ा यहां 

ना जाने कल फिर हों कहां। 

 

व्याप्त भ्रष्टाचार से बचकर 

खुद को चंदन सा महका कर 

कोई मिसाल तुम खुद बन जाना 

सबके दिलों पर तुम छा जाना

सच अंतर्मन करता है बयां,

ना जाने कल फिर हों कहां। 

 

दीप अनेक, प्रकाश है एक 

ऐसे हम सब हो जाएं एक

जीवन क्षण भर का है मंजर 

क्यों रखते हो मनों में अंतर

क्या तेरा क्या मेरा यहां

ना जाने कल फिर हों कहां। 

 

इस पर्व प्यार का दीप जलाओ  

एकता का प्रकाश फैलाओ

सोने की चिड़ियां फिर चहकें

ऐसा प्यारा हिन्दुस्तान बनाओ 

कहीं देर ना हो जाये यहां

ना जाने कल फिर हों कहां। 

- सनुज

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