मैं संस्कृत हूं (कविता)

hindi diwas

संस्कृत के अलावा हिंदी ही एक ऐसी भाषा है, जैसे लिखी जाती है, वैसे ही बोली जाती है। ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उप भाषाएं एवं बोलियां हैं। हिंदी के जिस रूप को राजभाषा स्वीकार किया गया है।

हमारी संविधान सभा ने हिंदी भाषा को 14 सितंबर 1949 के दिन राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। इसलिए हम 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया करते हैं। कवियत्री प्रतिभा तिवारी ने हिंदी दिवस के अवसर पर एक कविता प्रस्तुत की है।

मैं संस्कृत हूं 

मैं कौन हूं, कहां हूं 

कोई नहीं जानता 

अब मुझे अपना कोई नहीं मानता 

मेरी बहन हिंदी 

बधाई हो तेरा दिन है आज

आज तुझे सजाएंगे, संवारेंगे

पहनाएंगे तुझे ताज

देख हर तरफ तेरा अभिनन्दन हो रहा

कहीं तेरे गीत लिखे जा रहे

कहीं लड़ी जा रही

तेरी प्रतिष्ठा की लड़ाई

तो कहीं तेरा वंदन हो रहा

मैं तो मृत सी ही हो गई हूं

तुझे कभी ना कहना पड़े

मैं भी संस्कृत सी ही गई हूं

मुझे गंवारों की कहते थे

तुझे गरीबों की भाषा कहने लगे हैं

अन्य भाषाओं की गुलामी कर

क्या हम पतन की ओर

बढ़ने लगे हैं

जैसे हम विदेशी ब्रांड पहनते हैं

बनाते नहीं हैं

तो हम क्यों उनकी भाषाओं का

बीज बो रहे

आखिर क्यों हम अपना 

मान सम्मान खो रहे

तेरे शब्दों से लोग

अपमानित महसूस करते हैं

तुझे बोलने में लोग 

हिचकिचाते हैं

मैंने खुद को खो दिया

तुझे अपना वर्चस्व बचाना होगा

आज एक ही दिन नहीं

हर पल हर क्षण 

लोगों के मन में बस जाना होगा

शाखों में फूल भले ही 

भिन्न भिन्न भाषाओं के हों

बीज और जड़ें बस हिंदी हो

जरूरत की हर भाषा सभी सीखें

पर हिन्दुस्तान की हर जुबां हिंदी हो

- प्रतिभा तिवारी

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