गणतन्त्री संकल्पों का परिणाम प्रतीक्षारत है

poem on republic day
संजय तिवारी । Jan 25 2018 7:17PM

लेखक संजय तिवारी के द्वारा गणतंत्र दिवस पर रचित यह कविता उनके मन के भावों को तो प्रकट करती ही है साथ ही देश के हालात को भी बयां करती है।

लेखक संजय तिवारी के द्वारा गणतंत्र दिवस पर रचित यह कविता उनके मन के भावों को तो प्रकट करती ही है साथ ही देश के हालात को भी बयां करती है।

किस प्रवाह के चिंतन से भारत का भाग्य जगेगा?

किस गाथा के वंदन से सबका आभार लगेगा?

किस इतिहास को साक्षी कर हम राष्ट्र गीत गाएंगे?

किस योद्धा के आलिंगन में युद्ध जीत पाएंगे?

किसे भुलाकर आजादी अपनो से हुई विरत है?

संविधान में सपनों का संग्राम प्रतीक्षारत है।

 

सरोकार सावन की रिमझिम जब फुहार बन जाते

संस्कार से जीवन के सौरभ सारे मुस्काते

नदियाँ, झील, समंदर, पंछी सब हिलमिल कर गाते

मानव से मानव के रिश्ते पुष्प पल्लवित पाते

नहीं हुआ यह, आँखों में ही सपने क्षत-विक्षत हैं

शौर्य-समर की गाथा लेकर शाम प्रतीक्षारत है।

 

भारत के भावी की खातिर जिनके रहे समर्पण

कुछ सुहाग थे, कुछ राखी थी, कुछ गोदी का अर्पण

हंसते हंसते चूमे थे जिनकी खातिर वे फांसी

बलिदानों में ही दिखती थी उनको शिव की काशी

सत्ताओं के खेल खेल ये कैसे किये युगत हैं?

भारत की भोली भाली आवाम प्रतीक्षारत है।

 

कसमें खाते, वादे करते, ध्वज फहराते रहते

राष्ट्रवंदना के स्वर भी ये अक्सर गाते रहते

सड़कों से संसद तक जाकर बड़ी कहानी कहते

जन मन देवता बता कर, प्रखर क्रान्ति सी बहते

लेकिन इस दोहरे चरित्र की माया बड़ी पिरत है

गणतन्त्री संकल्पों का परिणाम प्रतीक्षारत है।

 

-संजय तिवारी

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़