एक सरकारी बंगले की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू (व्यंग्य)

political humour on government bunglaw
दीपक गिरकर । May 19 2018 2:01PM

रमेश बाबू, हमें सरकारी बंगले से इतना अधिक लगाव हो गया है कि हम सपने में भी सरकारी बंगला खाली करके अन्य बंगले में रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

रमेश बाबू, कोई भी प्राणी सिर्फ़ कुछ दिनों के लिए किसी कुटिया या किसी बंगले में रहता है तो उसका उस जगह से भावनात्मक लगाव हो जाता है। हमें सरकारी बंगले से इतना अधिक लगाव हो गया है कि हम सपने में भी सरकारी बंगला खाली करके अन्य बंगले में रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। वृद्ध लोगों को अपने गाँव के मकान और गाँव की ज़मीन से धागे-दोरे जुड़े हुए होते हैं ठीक इसी तरह हम और हमारे जैसे भूतपूर्व मंत्रियों के भी सरकारी बंगले से धागे-दोरे जुड़े हुए हैं। वैसे हम और हमारे जैसे अधिकांश मंत्री सरकारी बंगले को कुटिया ही कहते हैं और इस कुटिया में हम एक भैंस भी बाँध कर रखते हैं। सरकारी बंगले में भैंस बाँध कर रखने का मज़ा ही कुछ और है। हमारे पिछले जन्मों के अच्छे कर्म के कारण हम इस जन्म में सेवा तो सिर्फ़ कुछ दिनों की करते हैं और सेवा प्रसाद जीवन भर का प्राप्त करते हैं। हम जनप्रतिनिधि `रिटायर` कभी भी नहीं होते हैं। देश का सारा बोझ हमारे जैसे जनप्रतिनिधियों के कंधे पर ही तो होता है। हमें और हमारे जैसे जनप्रतिनिधियों को सरकारी बंगला ही न्यारा लगता है। रमेश बाबू, हम जैसे भूतपूर्व मंत्रियों के लिए तो `बिन सरकारी बंगला सब सून` है।

रमेश बाबू, हमें और हमारे जैसे जनप्रतिनिधियों को सरकारी बंगले दिए जाने का यह कतई मतलब नहीं है कि सरकारी ज़मीन पर हमें और हमारे जैसे जनप्रतिनिधियों को जो कि आज की तारीख में भूतपूर्व हो गये है, पिछले दरवाजे से कब्जा दिलवाया गया है। रमेश बाबू, हम और हमारी जैसी विशिष्ट हस्तियां अपने सरकारी बंगले पद से हटने के बाद भी खाली नहीं करते हैं क्योंकि हम आज मंत्री नहीं हैं लेकिन हम जनप्रतिनिधि तो हैं। हम चुनाव में हार गये लेकिन हमें भी तो जनता ने वोट दिए थे अत: हम भी तो जनप्रतिनिधि ही हैं। हमारा दिमाग़ पंचसितारा सुविधाओं से सुसज्जित सरकारी बंगले में तेजी से चलता है और सरकारी बंगले में हम अपने आप को तरोताजा महसूस करते हैं। जिस बाहर के हॉल में हम जनता से मिलते हैं वहाँ सोफे, कुर्सियों के अलावा हमारे लिए एक झूला भी लगा हुआ है। उस झूले पर बैठकर हम हलका-हलका झूला लेते हुए जनता की समस्याओं का चुटकियों में निदान कर देते हैं क्योंकि झूले पर बैठकर हमारा दिमाग़ भी झूले के समान तेज़ी से चलता है।

जनता की समस्याओं के निपटान के लिए सरकारी बंगले में रहना हमारी मजबूरी है। सरकारी बंगले के सारे कमरों में एसी लगे रहते हैं और तो और भैंस के कमरे में भी एसी लगा रहता है। भैंस के कमरे में एक म्यूजिक सिस्टम लगा रहता है क्योंकि हम जनप्रतिनिधियों की भैंस जब गाना सुनती है तब ही दूध देती है। जाहिर है कि सरकारी बंगला है तो बिजली का बिल भी सरकार ही भरती है और बंगले के गेट पर गार्ड भी सरकारी ही होता है। हमारी सुरक्षा की जवाबदारी भी तो सरकार की ही है यदि हम सरकारी बंगला खाली करके अपने निजी बंगले में रहने चले जाएँगे तो हम जनता को भूलकर अपने और अपने परिवार के बारे में ही विचार करेंगे।

एक चुटकी सिंदूर की कीमत भी तुम्हें नहीं मालूम थी रमेश बाबू, तुम क्या जानो सरकारी बंगले की कीमत। रमेशबाबू, तुम तो रंगहीन, गंधहीन, रसहीन और भावनाहीन हो। तुम्हारी प्रेमिका एक चुटकी सिंदूर के लिए तरसती रही लेकिन तुम्हारा दिल नहीं पिघला था क्योंकि अपने मित्रों से एक चुटकी सिंदूर की कीमत सुनकर रमेश बाबू तुम घोड़ी के समान बिदक गये थे और जीवन भर कुंआरे ही रहे। अकेलेपन के कारण तुम्हारी सोच और तुम्हारा दृष्टिकोण संकुचित हो गया है। महीने में एकाध बार हमारे पास आकर हमसे मिल लिया करो, तुम्हें भी आत्मज्ञान प्राप्त हो जाएगा। रमेश बाबू, यह मत भूलो कि सचिवालय में तुम्हारी नियुक्ति हमने ही करवाई थी। तुम तो बेघर हो। तुम बिना छत के अपनी जिंदगी काट रहे हो। तुम अभी तक किराए के मकान में रह रहे हो। उस किराए के मकान को तुमने कभी भी अपना नहीं समझा। इसलिए रमेश बाबू तुम हमारी भावनाओं को समझ नहीं पा रहे हो। तुम सरकारी बंगले की कीमत रूपये-पैसे में आंक रहे हो। रूपये-पैसे तो हाथ का मैल है। वैसे हमने भी तुम्हारे बारे में कुछ सोच रखा है। तुम्हारे रिटायरमेंट से पहले जुगाड़ करके तुम्हें भी एक सरकारी बंगला अलॉट करवा देंगे।

रमेश बाबू, हमारी लालबत्ती तो फ्यूज हो ही चुकी है। अब वर्तमान सरकार हमारी कुटिया के पीछे हाथ धोकर पड़ी है। सरकारी नोटिस का हमारी जैसी वीआईपी हस्तियों पर असर नहीं होता है। वैसे तो हम सरकारी बंगला खाली नहीं करेंगे लेकिन यदि कभी ज़ोर-जबदस्ती से हमारे से सरकारी बंगला खाली करवाया गया तो फिर हम अधिक समय तक जनता की सेवा नहीं कर पाएँगे अर्थात अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाएँगे और हमारी भैंस भी इस सरकारी बंगले के अलावा अन्य स्थान पर या हमारे निजी बंगले में नहीं रह पाएगी। भैंस तो मूक और निरीह प्राणी है इसलिए हम ही स्पष्ट कर देते हैं कि हमारी एवं हमारी भैंस की मृत्यु के पश्चात हमारी एवं हमारी भैंस की आत्मा उसी सरकारी बंगले में भटकती रहेगी। फिर वह सरकारी बंगला किसी के रहने लायक नहीं बचेगा क्योंकि वह सरकारी बंगला भूत बंगला कहलाएगा। हमारे देश की गौरवशाली परंपरा रही है कि प्रभावशाली नेता के निधन के बाद उस सरकारी निवास को जहाँ वह रहता था स्मारक बना दिया जाता है।

रमेश बाबू, विदेशों की और हमारे देश की संस्कृति में ज़मीन-आसमान का अंतर है। विदेश में हर नेता अपना कार्यकाल समाप्त होने पर सरकारी निवास तत्काल खाली कर देते हैं क्योंकि विदेशों में नेता सरकारी कर्मचारी के समान ही अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हैं लेकिन हमारे देश में हम और हमारे जैसे नेता सत्ता में हो या सत्ता से बाहर, जनता की सेवा करना ही अपना परम कर्तव्य समझते हैं।

दीपक गिरकर

(व्यंग्यकार)

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