यातायात व ड्राइविंग साधने के सही उपाय (व्यंग्य)

right solutions for traffic and driving (satire)
संतोष उत्सुक । Jul 18 2018 4:26PM

किसी भी काम को करने के सही तरीके वही व्यक्ति बता सकता है जिसने वह काम न किया हो। नेता, जिसने गरीबी देखी न हो, मंत्री बनकर गरीबी या गरीब दूर करने के लिए सबसे उपयुक्त योजनाएं बनवा सकता है।

किसी भी काम को करने के सही तरीके वही व्यक्ति बता सकता है जिसने वह काम न किया हो। नेता, जिसने गरीबी देखी न हो, मंत्री बनकर गरीबी या गरीब दूर करने के लिए सबसे उपयुक्त योजनाएं बनवा सकता है। मेरी पत्नी ड्राइव नहीं करती क्यूंकि उन्हें पति रूप में ड्राइवर भी मिला हुआ है। शान बढ़ाऊ भारतीय ट्रैफिक के बीच उन्हें जब जब मेरी ड्राइविंग नहीं जंची, मैंने उनसे गुज़ारिश की कि आप गाइड करें। उन्होंने कार में बैठे बैठे, बाहर तरह तरह की ड्राइविंग शैली का अवलोकन कर ट्रैफिक साधने के कई लाभदायक उपाय सुझाए हैं। वे समझती हैं कि सरकार के पास कभी इतना बजट नहीं होगा कि ज़रूरत के अनुसार ट्रैफिक पुलिसकर्मी भर्ती हो पाएं या चौराहों पर कंप्युटरीकृत चालान का प्रावधान हो। सभी मानते हैं कि जागरूकता रैलियों, प्रतियोगिताओं या प्रवचनों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। अभिभावकों ने बच्चों को दिल खोलकर जमकर बिगाड़ा। पत्नी के समझाए उपाय हैं इसलिए सारे लिखने पड़ेंगे, हो सकता है इनमें से कुछ उपाय कुछ ‘सज्जनों’ को अच्छे न लगें। वैसे भी सबको खुश करना संभव नहीं होता। मात्र पढ़ने से क्या होने वाला है यहां तो सालों बाद हुए न्यायालय के फैसलों को भी वर्षों लागू नहीं होने देते।

उनके अनुसार ज़्यादा लोग पैदल चलना बंद कर दें जब तक कि डॉक्टर पैदल चलने के लिए लिखकर न दे। जो न मानें, उनके लिए बीमा ज़रूरी हो। सड़क के दोनों ओर पाईप की रेलिंग लगवा दें और सड़क के बीच में भी पार्टीशन कर थोड़ी ऊंची दीवार बनवा दें। पहाड़ी गलियों में भी स्कूटर खड़े या चलते रहते हैं, वहां के बाशिंदों को चाहिए कि हमेशा गलियों से न जाकर, मकानों की छतों से आराम से कूदकूद कर जाना शुरू करें। सरकार ऐसे हेलमेट निर्मित करवाए जिनमें बाएं कान की तरफ मोबाइल फोन रखने की सुविधा हो। हेलमेट के अंदर चिप हो और उसकी क्नेक्टिंग चिप चालक की जीभ पर चिपकी रहे। मोबाइल शरीर का अभिन्न अंग जैसा है, इसके निरंतर प्रयोग के लिए जीभ पर चिप लगवा लेना ज़्यादा कष्टकर नहीं माना जाएगा। चिप में मनचाहे स्वाद भी उपलब्ध होने चाहिएं।

टू वहीलर पर तीन या ज़्यादा सवारियां लादने को कानूनी वैधता मिले। शहर की अंदरूनी सड़कों व गलियों में हर दस फुट पर स्पीड ब्रेकर हो। मुख्य सड़कों के खड्डे ठीक न करवाए जाएं क्यूंकि यह स्पीड ब्रेकर का काम करते हैं। स्कूल के बच्चों के लिए दो चाबी वाला हेलमेट बने, जिसकी एक चाबी अभिभावकों के पास रहे दूसरी टीचर के पास। हेलमेट घर में पहनाकर लॉक कर दें तो स्कूल में खुले। सरकार को ड्राइविंग लाइसेंस देने की उम्र बारह साल कर देनी चाहिए।

एक मित्र पुलिस वाले ने बताया था कि ट्रैफिक कानून में महिलाओं के लिए हेलमेट पहनने का कोई प्रावधान अभी तक नहीं है सरकार चाहे तो समाज में बराबरी लाने के लिए पुरुषों के सर से भी हेलमेट हटा दे या फिर महिलाओं के सर पर भी लगवाना शुरू करे। कार में मोबाइल सुनते ही मोबाइल ऑटो लॉक होने का प्रावधान हो। सब गाड़ियों से हॉर्न उतार दिए जाएं। ट्रैफिक जाम की स्थिति में, सड़क पार करने के लिए  कार के बीच ऊपर से निकलने के लिए कोई तकनीक ईज़ाद की जाए। स्कूटर, बाइक बिना हेलमेट पहने स्टार्ट ही न हो। कार ऐसी हो कि कम चौड़ी सड़क, गली या पैदल चलने वाले देखकर स्वत: स्पीड कम कर ले या बंद हो जाए व जिस जगह पर मोड़ने की अनुमति हो वहीं मुड़ सके।

पूजागृहों के पास भीड़ होना हमारे जैसे धार्मिक देश के लिए स्वाभाविक है इसलिए ज़्यादा से ज़्यादा पूजागृहों को कई प्रसिद्ध रैस्टोरेंट्स की तरह ड्राइव थ्रू बना दिया जाए ताकि भक्तजनों को वाहन से नीचे उतरना ही न पड़े वहीं बैठे बैठे प्रसाद इत्यादि अर्पण कर सकें व बाहर निकलते हुए प्रसाद भी ले सकें। मुझे लगा सरकारी स्वीकृति के बाद वाहन निर्माताओं ने यदि सुझाव अपना लिए तो ऐसे मकैनिक भी पैदा हो जाएंगे जो वाहन से इन दुविधाओं को तत्काल निकाल दें। लोग नया वाहन खरीदते ही पहले इस व्यक्ति विशेष को खोजा करेंगे। पत्नी के सुझाव केएचटीएम नहीं हो रहे थे, बोली, पार्किंग शहर से दूर बने, छोटे से बड़े सरकारी अफसर, छुटभइए से बड़बोले नेता सब की गाड़ियां वहीं पार्क हों। सब ज़रूरत व परिस्थिति के अनुसार पैदल चलें ताकि स्वास्थ्य भी ठीक रहे। असमर्थ नागरिकों के लिए शहर में पार्किंग अवश्य हो। मुझे उनके सुझाव देश की सरकारी योजनाओं की तरह लगे जो व्यावहारिक न होकर भी बना दी जाती हैं और देश की जनता उन्हें झेलती रहती है। जैसे अब ट्रैफिक नियम कड़े कर दिए हैं और जुर्माने की राशि बढ़ा दी गई है। कहीं ऐसा तो नहीं कि गलती होने पर ट्रैफिक कर्मियों को दी जाने वाली कुर्बान राशि को प्रोमोशन मिल गया है। बढ़ती यातायात अराजकता के बीच मैंने और अधिक संतुलित दिमाग़, टिकी निगाह व सधे हाथों से ड्राइविंग करना शुरू कर दिया है। मेरे बस में इतना ही था।

-संतोष उत्सुक

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