रोक दें क्या वक्त को हम? या अगली मुलाकात हो...

Stop time Or plan next meeting

इक रात हो, तू साथ हो। अपने साथी से मुलाकात के ख्वाबों को लेकर संजोयी गयी यह कविता मुंबई के शायर समूह गुल्ज़ारियत की ओर से लिखी गयी है। आप भी जरा गौर फरमाएं...

इक रात हो, तू साथ हो। अपने साथी से मुलाकात के ख्वाबों को लेकर संजोयी गयी यह कविता मुंबई के शायर समूह गुल्ज़ारियत की ओर से लिखी गयी है। आप भी जरा गौर फरमाएं...

इक रात हो,

तू साथ हो,

कुछ तबादला-ए-ख़्यालात हो.

इक बज़्म हो,

वो नज़्म हो,

समाईन बस महताब हो.

 

न खत लिखें,

न होंठ बोलें,

चुप्पी में ही बात हो.

नज़रें झुकाकर,

नाखुन चबाकर,

ज़ाहिर हर जज़्बात हो.

 

जाने का जब वक्त आए,

आँसू पलकें ही पी जाएं,

कंपकंपाते होंठों में बस,

एक ही सवाल हो,

 

रोक दें क्या वक्त को हम?

या अगली मुलाकात हो…..

- टीम गुलज़ारियत

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