जिंदगी की विडंबना (कविता)
हर किसी की जिंदगी कई विडंबनाओं से भरी रहती है। जिंदगी इसी को तो कहते हैं। जिंदगी में कहीं गम है तो कहीं खुशियां है। जिंदगी में उतार-चढ़ाव तो आते रहते हैं। बावजूद इसके हर कोई अपनी जिंदगी को बेफिक्र होकर जीना चाहता है। इस कविता में कवि ने जिंदगी की विडंबनाओं का जिक्र किया है।
हर किसी की जिंदगी कई विडंबनाओं से भरी रहती है। जिंदगी इसी को तो कहते हैं। जिंदगी में कहीं गम है तो कहीं खुशियां है। जिंदगी में उतार-चढ़ाव तो आते रहते हैं। बावजूद इसके हर कोई अपनी जिंदगी को बेफिक्र होकर जीना चाहता है। इस कविता में कवि ने जिंदगी की विडंबनाओं का जिक्र किया है।
चाक मिट्टी के भरोसे चल रही है जिंदगी।
आज कच्ची मृत्तिका सम गल रही है जिंदगी।1
अब हुनर की कद्र तक होती नहीं इस देश में,
स्वार्थ की भट्ठी में अब तो जल रही है जिंदगी।2
स्वप्न कुछ देखे मनुज ने वह नहीं पूरे हुए,
बस बुझी शक्लों पे' कालिख मल रही है जिंदगी।3
हर धनी को जगत में उपलब्ध संसाधन सभी,
बस गरीबों को निरंतर छल रही है जिंदगी।4
अब हुनर की कद्र तक होती नहीं इस देश में,
स्वार्थ की भट्ठी में अब तो जल रही है जिंदगी।5
स्वप्न कुछ देखे मनुज ने वह नहीं पूरे हुए,
बस बुझी शक्लों पे' कालिख मल रही है जिंदगी।6
हर धनी को जगत में उपलब्ध संसाधन सभी,
बस गरीबों को निरंतर छल रही है जिंदगी।7
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी,
नोएडा/ उन्नाव
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