स्वर्ग में विकास का धुआं (व्यंग्य)

The smoke of development in heaven
संतोष उत्सुक । Nov 15 2017 1:12PM

भगवान को कल रात दुनिया के अनगिनत पंगे निबटाते बहुत देर हो गई। नींद भी देर से आई, थकावट के कारण आज सुबह थोड़ा लेट उठना चाहते थे, मगर पत्नी आई बोली उठिए श्रीमानजी हमारे घर के आसपास काला धुंआ फैला हुआ है।

भगवान को कल रात दुनिया के अनगिनत पंगे निबटाते बहुत देर हो गई। नींद भी देर से आई, थकावट के कारण आज सुबह थोड़ा लेट उठना चाहते थे, मगर पत्नी आई बोली उठिए श्रीमानजी हमारे घर के आसपास काला धुंआ फैला हुआ है जिसके कारण आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ़ है और आंखों से पानी भी निकलने वाला है। न जाने कैसा धुआं है कोई सेवक भी इसे हटा नहीं पा रहा। भगवान ने आंखें खोली तो बुलेट ट्रेन की रफ़्तार से उनमें भी घुस गया ढीठ धुआं, फिर भी मुस्कुराते हुए उठे, बोले- प्रिय आप अपना मन मैला न करें मैं पता करता हूं। उनके पर्यावरण सचिव ने सूचित किया कि धुआं भारतवासियों ने दे रखा है। हवन कर अपने अपने स्थानीय व राष्ट्रीय देवताओं को पटा रहे हैं कि बारिश करें ताकि फसल बो सकेँ। विदेशी कम्पनियों के ब्रांडेंड महंगे बीज बो रखे हैं। सम्बंधित सरकारी कारिंदों को उनका हिस्सा ईमानदारी से सही प्रतिशत में ससम्मान दिया है। कुछ धुआं ऐसे क्षेत्रवासी कर रहे हैं जहां बारिश कभी नहीं होती या कभीकभार या ख्वाबों में होती थी और अब वहां बाढ़ आ गई है, वहां से यह हवनपुकार आ रही है कि इतना जल न बरसाएं।

नाश्ते के साथ पत्नी ने व्यंग्य मुस्कान भी परोसते हुए पूछा आप सब कुछ समझते हुए भी जानना चाहते हैं, काम करने की आपकी इस नई शैली का क्या रहस्य है। भगवान बोले, करोड़ों बरस से संसार  संभाल रहा हूं कभी ज्यादा परेशानी नहीं हुई मगर अब यह मानव महागुरु हो गया है, अपने तौर तरीकों से मुझे भी चकित, भ्रमित व चित करना चाहता है इसलिए मैंने भी उसका, क्या कहते हैं ह्यूमन स्टायल अपना लिया है। भारतवासी हर क्रियाकलाप के लिए पूजा को सुरक्षा कवच मानने लगे हैं कि खून, बेईमानी करो या बलात्कार, चोरी अपहरण यानी कोई भी कुकर्म करो, बस कुछ किलोमीटर नंगे पांव चल मंदिर में महंगे उपहार या ढेर से रूपए भेंट करो और सब कुछ सैट यानी हर कचरा साफ। वे समझते हैं पूजा में ज्यादा से ज्यादा धन लगाने से उन्हें पुण्य मिलेगा ही। यह धुआं भी ऐसी ही पूजा है कि हवन का धुआं इधर और बारिश या कम जल उधर। हालांकि वे अपना स्वार्थ साधने के लिए पारम्परिक व सांस्कृतकि तरीके इस्तेमाल करते हैं। मगर सादगी, पवित्रता व ईमानदारी अब मानव द्वारा की जा रही पूजा में कदापि नहीं रही क्योंकि पूजा हृदय से की जाती है दिखावे में लिपटे स्वार्थ से नहीं। पत्नी ने कहा अच्छा अब यह धुआं तो हटवाइए। मैंने संदेश भिजवा दिया है प्रबन्ध शुरू हो चुका है आप चिंता न करें, भगवान बोले।

ताज़ा फलों का ताज़ा रस पीते हुए भगवान कहने लगे मानव को प्रकृति के अनाधिकृत प्रयोग व छेड़छाड़ के परिणाम तो भुगतने ही पड़ेंगे। सृष्टि का नियम है जो बोओगे वही काटोगे और इस नियम को लाख पूजाओं के बाद भी, मैं भी संशोधित नहीं कर सकता। भारतवासी भूल चुके हैं कि विकास और विनाश की एक ही राशि है। अनियंत्रित विकास से विनाश का मार्ग प्रशस्त होता है और विनाश उन्हें दिखता नहीं। देश में पर्यावरण के नाम पर यह भारतवासी विज्ञापन, भाषण व बातचीत खूब करते हैं कानून बनाते व प्रस्ताव पास करते हैं। भारत में पर्यावरण संरक्षण हेतु दो सौ कानून हैं और अचरज भरी खबर यह है कि प्रदूषण फैलाने के लिए पिछले दिनों ही देश को विश्व स्तर पर प्रथम पायदान पर रखा गया है। वे व्यवहारिक स्तर पर करते कुछ नहीं मगर अधिक करने का डंका खूब बजाते हैं। पर्यावरण के नाम पर खूब धन लुटाते और लूटते हैं और यह समझते हैं कि मुझे पता नहीं। यह धुआं पूजा के हवन का नहीं वास्तव में विकास का धुआं है जो हमारे जीवन में भी प्रवेश कर गया है।

पत्नी ने बताया, मेरी पर्यावरण सचिव ने सूचना भेजी है कि कई वर्ष पहले यूनेस्को नाम की अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ने पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए संसार में कई अरब वृक्ष रोपने का प्रस्ताव पारित किया था। इसमें से भारत में कितने लगे होंगे? भगवान को बिना प्रयास ज़ोर से हंसी आ गई, हंसते हंसते चेहरे पर गम्भीर भाव उभरे, बोले वृक्ष तो वास्तव में कम पर समाचार पत्रों में ज्यादा लगाए होंगे। जितना धन आया होगा मिलजुल कर भारतीय भाईचारे की प्रसिद्ध परम्परा व अनुशासन के अंतर्गत हजम कर लिया होगा और त्रुटिरहित रिपोर्ट भेज दी होगी कि सभी वृक्ष लहलहा रहे हैं। मगर जब बारिश नहीं होगी तो धुआं मुझे देंगे। अब तो विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कारोबार सुगमता इंडेक्स में ‘न्यू इंडिया’ ने लम्बी छलांग लगाई है, अब वहां विकास ज्यादा रफ़्तार पकड़ने वाला है। ध्यान रहे भारतवर्ष का नया स्वच्छ नाम अब ‘न्यू इंडिया’ है। वाह! भारत का एक और नाम, पत्नी बोली। 

अब मुझे इस मामले में संजीदगी से सोचकर बेहद सख्त कदम उठाने होंगे, भगवान को आज पहली बार परेशान व गुस्से में देखा था उनकी पत्नी ने। धुआं अब वहां नहीं था।

- संतोष उत्सुक

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