वंचितों और आदिवासियों की आवाज थीं महाश्वेता देवी

[email protected] । Jul 29 2016 2:35PM

महाश्वेता ने उपन्यासों और कहानियों में सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पूरी ईमानदारी से और लेखक के तौर पर पूरी शिद्दत के साथ समाज के हाशिए पर रहने वाले वंचितों की दयनीय अवस्था का चित्रण किया।

साहित्य के जरिए समाज के दबे, कुचले, वंचित, आदिवासी और दलित समुदायों की आवाज उठाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता और महान लेखिका महाश्वेता देवी ने अपने उपन्यासों और कहानियों में एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पूरी ईमानदारी से और एक लेखक के तौर पर पूरी शिद्दत के साथ समाज के हाशिए पर रहने वाले इन वंचितों की दयनीय अवस्था का चित्रण किया और उनके कल्याण की आकांक्षा की। उनके इसी महती कार्य के लिए उन्हें पद्मविभूषण, मैगासायसाय, साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनकी सभी रचनाओं में चाहें वे ‘हजार चौरासीर मां’ हो या ‘अरण्येर अधिकार’, ‘झांसीर रानी’ हो या ‘अग्निगर्भा', ‘रूदाली’ हो या ‘सिधु कन्हुर डाके’.. दलितों के जीवन और उनके हालात की झांकी मिलती है। उनकी बहुत सी रचनाओं के आधार पर फिल्में भी बनाई गईं। गोविंद निहलानी ने 1998 में ‘हजार चौरासी की मां’ बनाई जिसमें एक ऐसी मां का भावनात्मक संघर्ष दिखाया गया है जो नक्सल आंदोलन में अपने बेटे के शामिल होने की वजह नहीं समझ पाती है। 1993 में कल्पना लाजमी ने उनके उपन्यास ‘रूदाली’ पर इसी नाम से फिल्म बनाई। इतना ही नहीं इतालवी निर्देशक इतालो स्पिनेली ने उनकी लघु कहानी ‘चोली के पीछे’ पर ‘गंगूर’ नाम से कई भाषाओं में फिल्म बनाई। लेखक और पत्रकार की भूमिका निभाने के अलावा महाश्वेता देवी ने आदिवासियों और ग्रामीण क्षेत्रों के अपनी ही भूमि से बेदखल किए गए लोगों को संगठित होने में मदद की ताकि वे अपने और अपने इलाकों के विकास का काम कर सकें। इसके लिए उन्होंने बहुत से संगठनों की स्थापना की।

अपने गृहनगर में एक सेलीब्रिटी की हैसियत रखने वालीं महाश्वेता देवी वास्तविक जीवन में बेहद सादगीपसंद थीं। ढाका में एक मध्यवर्गीय परिवार में 1926 को जन्मीं महाश्वेता के पिता मनीष घटक एक सुविख्यात कवि और चाचा रित्विक घटक प्रख्यात फिल्मकार थे। घटक को भारत में समानांतर सिनेमा का स्तंभ माना जाता है। उन्होंने रविंद्रनाथ ठाकुर के शिक्षण संस्थान शांतिनिकेतन में शिक्षा प्राप्त की और प्रसिद्ध नाटककार बिजोन भट्टाचार्य से उनका विवाह हुआ। बिजोन इंडियन पीपल्स थियेटर एसोसिएशन (इप्टा) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। महाश्वेता देवी के पुत्र नबरूण भी एक प्रख्यात कवि और उपन्यासकार थे और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित थे। उनका 2014 में निधन हो गया था।

अपने जीवनकाल में महाश्वेता देवी ने न सिर्फ एक महाविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की व्याख्याता के तौर पर काम किया बल्कि विभिन्न समाचार पत्रों में ग्रामीण भारत के लोगों के सामने पेश समस्याओं के विषय में आलेख भी लिखे। एक व्याख्यान में उन्होंने बताया था कि साहित्य सृजन हो या समाचार पत्रों, पत्रिकाओं के लिए लेखन या किसी भी तरह का रचनात्मक कर्म, इन सबके पीछे उनका सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर प्राप्त अनुभव काम करता है। उन्होंने बंगाल, बिहार और उड़ीसा के आदिवासी समुदायों और ग्रामीणों के अलिखित इतिहास पर गहन अनुसंधान किया और उन्हें ही अपनी रचनाओं का विषय बनाया।

साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत उनकी ऐतिहासिक गल्प रचना ‘अरण्येर अधिकार’ आदिवासी नेता बिरसा मुंडा के जीवन और उनके संघर्ष तथा उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ मुंडा समुदाय के विद्रोह की गाथा कहती है। उनकी रचना ‘अग्निगर्भा’ में चार लंबी कहानियां हैं जो नक्सलबाड़ी आदिवासी विद्रोह की पृष्ठभूमि में लिखी गई हैं। इसी तरह उनके उपन्यास ‘बीश एकुश’ में नक्सलबाड़ी आंदोलन की कुछ अनकही कहानियां हैं। उनकी अन्य रचनाएं ‘चोटी मुंडा ओ तार तीर’ (1979) ‘सुभाग बसंत' (1980) और ‘सिधु कन्हूर डाके’ (1981) हैं।

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