मुक्कमल सी ज़िंदगी कुछ कम क्यूँ है?

Why a little less life?
गुलज़ारियत । Mar 10 2018 4:49PM

मुंबई के शायर समूह गुलज़ारियत की ओर से लिखी गयी यह नज़्म पाठकों को पसंद आयेगी। इसमें बड़े ही अलग अंदाज में जिंदगी से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर नजर डाली गयी है।

मुंबई के शायर समूह गुलज़ारियत की ओर से लिखी गयी यह नज़्म पाठकों को पसंद आयेगी। इसमें बड़े ही अलग अंदाज में जिंदगी से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर नजर डाली गयी है।

कुछ सवाल!

मुक्कमल सी ज़िंदगी कुछ कम क्यूँ है।

महफ़िल में वो आँख नम क्यूँ है।


मुस्तकबिल खड़ा है जब यूँ हाथ खोले

माज़ी से ख़फ़ा इस कदर हम क्यूँ है।


दर्द के हमदर्द बने फिरते थे जो कल तक

इन  नासूर ज़ख़्मों पर आज मरहम क्यूँ है।


सबके हिस्से की दुआएँ माँगी थी जिसने,

आज उसी की झोली गम क्यूँ है।


जिस मरासिम ने अब तक बाँधी है ये डोर

उसके वजूद पर तुझे भरम क्यूँ है।


वाइज़ की बातों में आया था ना तू  कभी

फिर आज इस प्याले में शराब कम क्यूँ है।


नफरत, जिल्लत, रंजिश सब है मगर फिर भी

मुझ में तुम क्यूँ हो तुझ में हम क्यूँ है।

- गुलज़ारियत

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