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भगवान मुरुगन के मंदिरों तक BJP की यात्रा, क्यों हो रहा है विरोध?
- अभिनय आकाश
- नवंबर 19, 2020 15:23
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तमिलनाडु में भाजपा की ‘वेल यात्रा’ से वहाँ की द्रविड़ पार्टियाँ भयभीत हो गई हैं। यहाँ तक कि राजग में उसकी सहयोगी पार्टी एआईएडीएमके ने भी इस मामले में भाजपा के खिलाफ रुख अख्तियार कर लिया है। एआईएडीएमके सरकार ने राज्य में धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए इस रैली की अनुमति देने से इनकार कर दिया है।
बिहार का चुनावी रण में रणवीर बनकर उभरने के बाद भारतीय जनता पार्टी की निगाहे अब तमिलनाडु पर है। दक्षिण के इस राज्य में चुनाव में तो अभी करबी करीब पांच-छह महीने का समय शेष है और सूबे में अगले वर्ष अप्रैल-मई के महीने में चुनाव हो सकते हैं। तमिलनाडु की राजनीति को देखें तो यहां वर्षों से करूणानिधि की डीएमके और एमजीआर की बनाई पार्टी एआईडीएमके जिसकी कमान जयललिता के हाथों में रही। लेकिन इन दोनों नेताओं के निधन के बाद राज्य की राजनीति में बने वैक्युम में देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की कवायद में लगी है। इसी कवायद में से एक है वेत्री वेल यात्रा।
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तमिलनाडु में भाजपा की ‘वेल यात्रा’ से वहाँ की द्रविड़ पार्टियाँ भयभीत हो गई हैं। यहाँ तक कि राजग में उसकी सहयोगी पार्टी एआईएडीएमके ने भी इस मामले में भाजपा के खिलाफ रुख अख्तियार कर लिया है। एआईएडीएमके सरकार ने राज्य में धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए इस रैली की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। पार्टी ने कहा कि ‘भगवा झंडा लहराने वालों द्वारा धार्मिक घृणा फैलाने’ की अनुमति नहीं दी जाएगी।
अपने मुखपत्र नमादु अम्मा के माध्यम से पार्टी ने कहा कि राज्य में जाति-धर्म के आधार पर लोगों को विभाजित करने वाली यात्रा नहीं निकालने दी जाएगी। उसने कहा कि सभी सम्बंधित लोगों को समझ लेना चाहिए कि तमिलनाडु के लोगों ने बार-बार साबित किया है कि द्रविड़ प्रदेश में धर्म मानवता के लिए दिशा-निर्देशक प्रकाश-पुँज हैं, न कि घृणा और विभाजन का माध्यम। उसने कहा कि सही मजहब शांति और प्यार का ही सन्देश देते हैं।
एआईएडीएमके भाजपा की सहयोगी पार्टी है। भाजपा को भरोसा है कि एक माह तक चलने वाली यह धार्मिक यात्रा आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी को खासा राजनीतिक डिविडेंड देगी। भाजपा की यह यात्रा इस बात का भी साफ संकेत है कि शेष भारत में चला मर्यादा पुरूषोत्तम राम का भावनात्मक कार्ड तमिलनाडु में बेअसर है। तमिल राम को भगवान तो मानते हैं, पर उस रूप में नहीं, जिस रूप में वो भगवान मुरूगन को मानते हैं।
पहले भगवान मुरूगन के बारे में बताते हैं। आप सभी जानते है। कि मुरुगन या कार्तिकेय भगवान शिव और पार्वती के दूसरे पुत्र हैं। तमिलनाडु में भगवान कार्तिकेय को भगवान मुरुगन के रूप में पूजा जाता है। ‘मुरुगन’ शब्द बना तमिल शब्द ‘मुरुकन’ से. इसका मतलब होता है ‘युवा’ तमिल साहित्य की सबसे पुरानी किताबों, जैसे ‘तोलकप्पियम’ में भी इनका वर्णन मिलता है। तमिलनाडु में मुरुगन के छह सबसे महत्वपूर्ण निवास स्थान हैं, जिन्हें अरु पदई विदु के नाम से जाना जाता है। यहाँ तमिलनाडु में सिक्कल सिंगारवेलन मंदिर के साथ भारत में सबसे प्रसिद्ध भगवान मुरुगन मंदिरों के बारे में भी बताया गया है।
पलानी मुरुगन मंदिर, डिंडीगुल : पलानी मुरुगन मंदिर पलानी पहाड़ियों पर डिंडीगुल के पलानी शहर में स्थित है। पलानी का पहाड़ी मंदिर भारत में भगवान मुरुगन का सबसे पवित्र मंदिर है।
स्वामीमलाई मुरूगन मंदिर, कुंभकोणम: स्वामीमलाई मुरूगन मंदिर कुंभकोणम के पास एक नदी के किनारे स्वामीमलाई में स्थित है। कुंभकोणम का स्वामीमलाई मंदिर तमिलनाडु में भगवान मुरुगन के छह पवित्र मंदिरों में से एक है।
तिरुचेंदुर मुरुगन मंदिर, तूतीकोरिन: तिरुचेंदुर मुरुगन मंदिर दक्षिण भारत के सबसे बड़े मंदिर परिसरों में से एक है, जो तिरुचेंदूर में समुद्र के किनारे स्थित है। यह तमिलनाडु के चौथे हिंदू मंदिरों में से एक है।
थिरुप्पुरमकुंरम मुरुगन मंदिर, तिरुप्पुरनकुमारम: थिरुप्पुरमुकुमारम मुरुगन मंदिर मदुरई शहर के पास स्थित है और ये मंदिर खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर में भगवान शिव और विष्णु जी की एक साथ मूर्ति राखी हुई है।
थिरुथानी मुरुगन मंदिर, थिरुट्टानी: थिरुथानी मुरुगन मंदिर चेन्नई के पास थिरुट्टनी की पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर तमिल नाडु में भगवान मुरुगन के छह पवित्र मंदिरो में से एक है।
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यात्रा के धार्मिक और राजनीतिक महत्व
भगवान मुरूगन की 6 अधिष्ठानों (निवास) की यात्रा तमिलनाडु का महत्वपूर्ण धार्मिक इवेंट है। खासकर ओबीसी और दलितों में मुरूगन के प्रति अगाध श्रद्धा है। यकीनन इस यात्रा से बीजेपी का द्रविड पार्टियों के साथ विवाद बढ़ेगा। द्रविड पार्टियां भी भाजपा के इस नए ‘यात्रा कार्ड’ से चौकन्नी हो गई हैं। बीजेपी का ये दांव तमिलनाडु में राजनीतिक दृष्टि से कामयाब होता है या नहीं, देखने की बात है। द्रविड राजनीति की दृष्टि से भी भगवान मुरूगन का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि डीएमके के दिग्गज नेता करूणानिधि ने 1982 में मदुराई से थिरूचेंदुर ( मुरूगन मंदिर) तक ऐसा ही लंबा मार्च एआईएडीएमके के तत्कालीन मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन के जमाने में निकाला था। तब उसका मकसद थिरूचेंदूर मंदिर के एक अधिकारी की संदिग्ध मौत पर परिजनों को न्याय दिलाना तथा भगवान मुरूगन के भाले में जड़ा हीरा गायब होने की जांच की मांग करना था। भगवान शिव पुत्र कार्तिकेय जिनका तमिल नाम है मुरूगन न्हें तमिलभूमि का रक्षक भी माना जाता है। तमिलनाडु में हर साल तमिल पंचांग के थाई माह (जनवरी-फरवरी के बीच) में ‘अरूप्पदई वीरू यात्रा’ का आयोजन होता है। इसके तहत भक्त गण लाखों की संख्या में पैदल ही नंगे पैर भगवान मुरूगन के मंदिरों में दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
बीजेपी का यात्रा प्लान
भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह नवंबर 21, 2020 को तमिलनाडु की यात्रा पर हैं, जहाँ भाजपा के नए विस्तार का बिगुल फूँका जाना है। तमिलनाडु में 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं। 1957 से लेकर 2018 तक 61 सालों में 13 विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव जीतने वाले एम करूणानिधि के निधन के बाद ये पहला चुनाव होगा। साथ ही 27 सालों में 6 विधानसभा क्षेत्रों से 9 चुनाव जीतने वाली जयललिता भी इस बार नहीं होंगी। ऐसे में दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के बिना हो रहे इस चुनाव में भाजपा अपनी पैठ बनाने के लिए संघर्ष कर रही है। 6 नवंबर को शुरू हुई यात्रा 6 दिसंबर को खत्म करने का प्लान है। यात्रा में तिरुत्तनी से शुरू होकर तिरुचेंदुर पर खत्म होगी। इस दौरान बीजेपी भगवान मुरुगन के मंदिरों से होकर गुजरेगी। इस दौरान तमिलनाडु बीजेपी के कई नेता यात्रा में मौजूद रहेंगे और लोगों से मिलते और संबोधित करते हुए आगे बढ़ेंगे.इस यात्रा के लिए बाकायदा यूट्यूब कैंपेन और एंथम सॉन्ग भी लॉन्च किया गया है. चूंकि ये पवित्र स्थान पूरे तमिलनाडु में फैले हैं, इस लिहाज से इसे इलेक्शन से पहले माहौल बनाने वाली यात्रा भी कहा जा रहा है।
वेत्रीवेल यात्रा उस रथ यात्रा की तरह ही है जिसे बीजेपी देश के अन्य हिस्सों में समय-समय पर निकालती रही है। तमिलनाडु में भी बीजेपी यह प्रयोग अपना रही है। इस यात्रा के तहत बीजेपी तमिलनाडु के अलग-अलग जिलों और क्षेत्रों में अपना जनसंपर्क तेज करेगी। सत्तारूढ़ एआईएडीएमके सरकार की मनाही के बावजूद बीजेपी यह यात्रा निकाल रही है। सरकार का कहना है कि कोविड महामारी में ऐसी किसी गैदरिंग की इजाजत नहीं दी जा सकती, जबकि बीजेपी इसे भगवान मुरुगन का काम बता कर आगे बढ़ रही है। अमित शाह के दौरे के दौरान वेत्रीवेल यात्रा के और जोर पकड़ने की संभावना है। 6 नवंबर को उत्तरी तमिलनाडु स्थित तिरुतन्नी मंदिर से शुरू हुई यात्रा दक्षिणी तमिलनाडु के तिरुचेंदूर मंदिर में संपन्न होगी।
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एआईएडीएमके क्यों है खिलाफ
तमिलनाडु सरकार इस यात्रा को रोकने के पीछे कोविड 19 की समस्या बता रही है। उसका कहना है कि अब भी तमिनलाडु के कई इलाके कोविड के संकट से बचे हुए हैं। लेकिन अगर इस तरह से लंबी यात्राएं की गईं, तो एक जगह से दूसरी जगह संक्रमण फैलने का खतरा है।
यात्रा के पीछे की राजनीति
पिछले दो बार चुनावी नतीजों पर नजर डालें तो बीजेपी कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई है। उसका वोट शेयर 2014 में 5.56 प्रतिशत रहा वहीं 2019 के चुनाव में वो गिरकर 3.66 प्रतिशत पर आ गया। 2016 के विधानसभा चुनाव में पार्टी 134 सीटों पर लड़ी थी, लेकिन वोट उसे मात्र 2.8 फीसदी ही मिले थे। ऐसे में अपने जनाधार को धार देने के लिए बीजेपी हिंदू वोटों को एकजुट करने का अच्छा मौका देख रही है।
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- अभिनय आकाश
- जनवरी 21, 2021 18:34
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कश्मीर के नेता सज्जाद लोन जिन्हें पीएम मोदी का करीबी भी माना रहा है। कभी फारूक अब्दुल्ला द्वारा उनके पिता पर कश्मीर में बंदूक लाने का जिम्मेदार भी ठहराया जाता है। तो कभी सूबे के राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा लोन को बीजेपी की तरफ से सीएम बनाने की तैयारी की बात भी कह दी जाती है।
पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन जिसमें जम्मू कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियां शामिल हैं वो अब धीरे-धीरे बिखरने लगी हैं। पीपुल्स कांफ्रेंस के चेयरमैन सज्जाद लोन ने गुपकार गठबंधन से अलग होने का एलान कर दिया है। गुपकार घोषणापत्र गठबंधन के घटक दलों में जारी वर्चस्व और कलह के बारे में उल्लेखित करते हुए कहा कि कोई दल एक-दूसरे को देखना नहीं चाहते। जिसके बाद सज्जाद लोन ने गुपकार गठबंधन से अलग होने का फैसला किया। बता दें कि डीडीसी चुनावों के परिणाम आने के बाद महबूबा मुफ्ती भी गुपकार गठबंध से किनारा कर रही हैं। वो गुपकार की किसी बैठक में भी शामिल नहीं हुईं। जिसके बाद सज्जाद लोन का ये बड़ा फैसला आया। ऐसे में आज के विश्वेषण में बात करेंगे जम्मू कश्मीर की और कश्मीर के नेता सज्जाद लोन की। जिन्हें पीएम मोदी का करीबी भी माना रहा है। कभी फारूक अब्दुल्ला द्वारा उनके पिता पर कश्मीर में बंदूक लाने का जिम्मेदार भी ठहराया जाता है। तो कभी सूबे के राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा लोन को बीजेपी की तरफ से सीएम बनाने की तैयारी की बात भी कह दी जाती है। कौन हैं कश्मीर का लोन परिवार जो मुफ्ती का भी करीबी रहा और मोदी का भी।
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सज्जाद लोन को जानने से पहले उनके पिता अब्दुल गनी लोन को जानना बहुत जरूरी है। एक गरीब परिवार में जन्में अब्दुल गनी लोन की चाह शुरू से ही वकील बनने की थी। अपने मकसद में उन्हें कामयाबी भी मिलती है। लेकिन ये उन्हें तो राजनीति में आना था और यही चाह अब्दुल गनी लोन को कांग्रेस के दरवाजे पर लेकर आती है। वो साल 1967 में कांग्रेस से जुड़ते हैं और फिर धीरे-धीरे अपनी सियासत को मजबूत करने की चाह लिए 1978 में जम्मू कश्मीर पीपुल्स काॅन्फ्रेंस का गठन किया। जम्मू कश्मीर में अब्दुल गनी लोन ने राजनीति तब शुरू की जब शेख अब्दुल्ला की लोकप्रियता चरम पर थी। उसी वक्त लोन कश्मीर को और अधिक दिलाने की मांग लिए अब्दुल्ला की सत्ता को चुनौती देने की कोशिश में लग गए। लेकिन शुरुआती दो चुनाव में उन्हें पराजय ही मिलती है। 1983 में 10 वोट से और 1987 को 430 वोटों से। जिसके बाद अब्दुल गनी लोन अलगाववाद के रास्ते पर चल पड़ते हैं। उनके साथ मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के भी लोग साथ आ जाते हैं। अब्दुल गनी लोन कश्मीर को एक स्वतंत्र राज्य के तौर पर देखना चाहते थे। अपनी अलगाववादी कार्यों और बयानों की वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। पूर्व राॅ चीफ एएस दुलत की किताब कश्मीर द वाजपेयी इयर्स के मुताबिक 1992 में जब लोन जेल से बाहर आए तो उनके दिमाग में बस अलगाववादियों का एक संगठन बनाने की बात थी। कश्मीर द वाजपेयी इयर्स के अनुसार लोन इसके लिए आईएसआई से भी सलाह मशवरा किया था। घाटी में 13 जुलाई 1993 को ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस की नींव रखी गई। हुर्रियत कांफ्रेंस का काम पूरी घाटी में अलगाववादी आंदोलन को गति प्रदान करना था। यह एक तरह से घाटी में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के विरोध स्वरूप एकत्रित हुई छोटी पार्टियों का महागठबंधन था। इस महागठबंधन में केवल वही पार्टियां शरीक हुईं जो कश्मीर को वहां के लोगों के अनुसार जनमत संग्रह कराकर एक अलग पहचान दिलाना चाहती थीं। हालांकि इनके मंसूबे पाक को लेकर काफी नरम रहे। ये सभी कई मौकों पर भारत की अपेक्षा पाक से अपनी नजदीकियां दिखाते रहे हैं। 90 के दशक में जब घाटी में आतंकवाद चरम पर था तब इन्होंने खुद को वहां एक राजनैतिक चेहरा बनने की कोशिश की लेकिन लोगों द्वारा इन्हें नकार दिया गया। एपीएचसी की एग्जिक्यूटिव कांउसिल में सात अलग-अलग पार्टियों के सात लोग बतौर सदस्य शामिल हुए। जमात-ए-इस्लामी से सैयद अली शाह गिलानी, आवामी एक्शन कमेटी के मीरवाइज उमर फारूक, पीपुल्स लीग के शेख अब्दुल अजीज, इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन के मौलवी अब्बास अंसारी, मुस्लिम कांफ्रेंस के प्रोफेसर अब्दुल गनी भट, जेकेएलएफ से यासीन मलिक और पीपुल्स कांफ्रेंस के अब्दुल गनी लोन शामिल थे। अब्दुल गनी लोन कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के काफी नजदीक हो जाते हैं। ओल्ड टाउन श्रीनगर की ईदगाह में मीरवाइज मौलवी फारुख की 12वीं मेमोरियल सर्विस में शरीक हुए थे तभी 21 मई 2002 को अब्दुल गनी लोन की आतंकिों द्वारा हत्या कर दी जाती है। जब अब्दुल गनी लोन की हत्या हुई तो उनके पुत्र सज्जाद लोन ने अपने पिता की हत्या में आईएसआई का हाथ होने की बात कही थी। लेकिन बाद में अपनी मां के कहने पर उन्होंने अपने आरोप वापस ले लिए थे। सज्जाद की मां हनीफा का कहना था कि मैंने अपने पति को खोया है और अब अपना बेटा नहीं खोना चाहती। बाद में सज्जाद लोन ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया और अलगाववाद की राजनीति की वकालत शुरू कर दी।
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फारूक ने लोन को कश्मीर में बंदूक लाने का जिम्मेदार ठहराया
नेशनल काॅन्फ्रें, के नेता फारूक अब्दुल्ला ने एक बार अब्दुल गनी लोन को कश्मीर में बंदूक लाने का जिम्मेदार ठहराया था। जिसके पीछे अब्दुल्ला ने इतिहास की एक घटना का हवाला देते हुए कहा कि पूर्व राज्यपाल जगमोहन ने जब उन्हें निलंबित किया था, उस वक्त अब्दुल गनी लोन उनके पास आए थे। उन्होंने कहा था कि वह पाकिस्तान से बंदूक लाएंगे। अब्दुल्ला ने कहा कि उस वक्त मैंने लोन को बहुत समझाया था, लेकिन वह माने नहीं।
मुशर्रफ से कहा- पाकिस्तान के बारे में चिंता करें
कश्मीर द वाजपेयी इयर्स के अनुसार एक बार अब्दुल गनी लोन पाकिस्तान के जनरल परवेज मुशर्रफ से मिले तो उन्होंने गनी लोन से पूछा कि कश्मीर के हालात कैसे हैं तो इस पर लोन ने फट से जवाब देते हुए कहा कि कश्मीर के बारे में चिंता मत कीजिए, पाकिस्तान को देखिए। आपके कट्टरपंथी उसी हाथ को काट लेंगे जो उन्हें खिलाते हैं।
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सज्जाद लोन की कश्मीर की सियासत में एंट्री
सज्जाद लोन कश्मीर की आजादी की बात करते रहे लेकिन पाकिस्तान के बिना और हिन्दुस्तान के साथ। मतलब आसान भाषा में समझें तो कश्मीर की और स्वायतता की मांग। साल 2002 में सज्जाद लोन के खिलाफ अलगाववादी उम्मीदवारों के खिलाफ डमी उम्मीदवार उतारने के आरोप भी लगे। बाद में उन्होंने हुर्रियत से अलग होना शुरू कर दिया। कश्मीर को लेकर सज्जाद हमेशा से मुखर रहे और साल 2006 में उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात भी की। 2008 में अमरनाथ हिंसा के बाद खुद को सज्जाद लोन ने अलगाववाद से अलग कर लिया। साल 2008 और 2009 के दौरान सज्जाद लोन ने विधानसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन दोनों बार ही उन्हें हार का सामना करना पड़ा। साल 2014 में बारामूला में निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए भी उन्हें हार ही मिली। साल 2014 में उनकी पार्टी ने दो सीटों पर जीत दर्ज की और बीजेपी-पीडीपी गठबंधन वाली सरकार में मंत्री बने। बाद में कश्मीर में विधानसभा भंग हो गई थी और सूबे में राष्ट्रपति शासन लग गया था। हाल ही में हुए डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव में जेकेपीसी ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की है। सज्जाद लोन को पीएम मोदी का करीबी भी माना जाता है। पीएम मोदी के कश्मीर दौरे के दौरान वह उनके साथ नजर भी आ चुके हैं। सज्जाद लोन की एक बहन हैं जिनका नाम शबनम लोन है। वह सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं और कश्मीर मुद्दे को लेकर काॅलम लिखती हैं। -अभिनय आकाश
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- अभिनय आकाश
- जनवरी 19, 2021 18:10
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एलेक्सी नवालनी को जर्मनी से मास्को आने पर हिरासत में ले लिया गया है और फिर अदालत ने उन्हें 30 दिन के लिए जेल भेज दिया है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोपियन काउंसिल और ब्रिटेन सहित पश्चिम देशों ने इस मामले को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है।
2011 का साल और दिल्ली के रामलीला मैदान का वो शोर। जब गांधी की टोपी पहले अन्ना हजारे रघुपति राघव राजा राम के बोल के साथ अनशन पर बैठे थे। पूरा देश उस वक्त मैं भी अन्ना तू भी अन्ना अब तो सारा देश है अन्ना के नारे के साथ अन्नामय हो गया था। लेकिन ठीक उसी वक्त दिल्ली से 4195 किलोमीटर दूर रूस में एक संगठन की नींव रखी जा रही थी। नाम- एंटी करप्शन फाउंडेशन। मकसद- रूस की ब्लादिमीर पुतिन सरकार के कथित भ्रष्टाचार को उजागर करना। आज की कहानी है एक ऐसे नेता कि जिसके पोस्टर 2017 में पुतिन विरोधी आंदोलन में दिखे। उसी राजनेता को दो बार जहर देकर मारने की कोशिश की गई और आरोप रूस के राष्ट्रपति पर लगे। वो नेता जिसके इलाज की पेशकश फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों ने की। वो नेता जिसके बारे में अमेरिकी अखबार के एक बार लिखा कि The Man vladimir Putin fears most यानी वो आदमी जिससे ब्लादिमीर पुतिन को सबसे ज्यादा डर लगता है। ये कहानी है पुतिन के खिलाफ प्रदर्शन के लिए 3 बार जेल जाने वाले और चुनाव लड़ने की कोशिश में ईसी द्वारा अयोग्य करार दिए जाने वाले पुतिन विरोधी रूस के सबसे बड़े नेता एलेक्सी नवालनी की।
सबसे पहले बात वर्तमान की करते हैं। एलेक्सी नवालनी को जर्मनी से मास्को आने पर हिरासत में ले लिया गया है और फिर अदालत ने उन्हें 30 दिन के लिए जेल भेज दिया है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका. यूरोपियन काउंसिल और ब्रिटेन सहित पश्चिम देशों ने इस मामले को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है। मास्को कोर्ट द्वारा नवलनी को निलंबित जेल की शर्तों के उल्लंघन का दोषी मानते हुए 15 फरवरी तक जेल में रखने का आदेश दिया। नवालनी को गबन के आरोप में यह सजा सुनाई गई थी और उनके खिलाफ तीन और आपराधिक मामले दर्ज हैं।
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रूस के कई दशकों से राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के जन्मदिन वाले दिन यानी सात अक्टूबर 2017 की बात है। रूस की राजधानी मास्को के पुश्किन स्क्वायर पर सैकड़ों लड़के-लड़कियां इकट्ठे हुए। पुतिन के विरोध वाली तख्तियां हाथों में लिए ये लोग जिसमें लिखा था पुतिन इज ए थीफ, पुतिन को राष्ट्रपति पद से हटाओ। पुतिन और उनकी सरकार के खिलाफ 20 से ज्यादा रूस के शहरों में हो रहा था। उन प्रदर्शनकारियों के पास एक पोस्टर में युवा चेहरे वाला पोस्टर भी लहराया जा रहा था और उसकी जिंदाबाद के नारे भी लगाया जा रहा था।
पेश से वकील एलेक्सी नवालनी का रूस की राजनीति में उभार 2008 से दिखता है । जब वो रूस सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बोलना शुरू करते हैं। राष्ट्रवादी नेता के तौर पर उनकी छवि बन जाती है। सरकारी कांट्रैक्ट में भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाते हैं। ब्लाॅगिंग और यूट्यूब के जरिये इन तमाम मुद्दों को उठाते हुए रूस में लोकप्रिय हो जाते हैं। एलेक्सी ने एंटी करप्शन फाउंडेशन नाम का संगठन बनाया। और इसके जरिये भ्रष्टाचार पर पुतिन सरकार को सीधे ललकारने लगे। आलम ये हुआ कि साल 2012 में अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल ने अपने खबर की शीर्षक में एलेक्सी का परिचय देते हुए एक खबर प्रकाशित की The Man vladimir Putin fears most यानी वो आदमी जिससे ब्लादिमीर पुतिन को सबसे ज्यादा डर लगता है। इस लेख के मुताबिक सरकार के समर्थक टीवी और अखबार एलेक्सी को सीआईए का एजेंट बताते हैं। हिटलर से उसकी तुलना करते हैं। रूस के सरकारी चैनलों पर तो एलेक्सी को दिखाने पर भी पाबंदी है। 2013 में उन्होंने मास्को में मेयर का चुनाव लड़ने का ऐलान किया। वो लड़े लेकिन पुतिन के उम्मीदवार से हार गए। एलेक्सी ने चुनाव में धांधली का इल्जाम लगाया। उसके बाद उनपर कई केस लगाए। एक में एलेक्सी को पांच साल की सजा हुई और दूसरे में साढ़े तीन साल की। कुछ साल जेल में रहने के बाद एलेक्सी नजरबंद कर दिए गए। 2016 में बाहर आए तो फिर प्रदर्शन जारी कर दिया। 2017 में उन्हें पुतिन के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए 3 बार जेल हुई। साल 2017 में ही उन पर हमला हुआ और इस हमले की वजह से एलेक्सी की दाहिनी आंख केमिकल बर्न से प्रभावित हुई। 2018 में रूस के राष्ट्रपति के चुनाव के वक्त एलेक्सी के पुतिन को तगड़ी चुनौती देने के कयास लगाए जा रहे थे। तभी चुनाव आयोग ने एलेक्सी को अयोग्य घोषित कर दिया गय। लेकिन जुलाई 2019 में रूस में विरोध प्रदर्शन का आह्वान करने की वजह से उन्हें 30 दिन की जेल हुई। जेल में ही उनकी तबीयत बिगड़ी और आरोप लगे कि एलेक्सी को जहर देने की कोशिश हुई है। 20 अगस्त 2020 को रूस के साइबेरिया से एक विमान मास्को के लिए उड़ान भरता है।
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विमान के उड़ान भरने के दौरान ही उसमें बैठे पैसेंजर एलेक्सी नवालनी बीमार हो गए। मामला गंभीर हुआ तो प्लेन की इमरजेंसी लैंडिग करनी पड़ी और नवालनी को अस्पताल में भर्ती कराया गया। पता चला कि नवालनी को जहर दिया गया। जिसके बाद शक जताया गया कि एयरपोर्ट पर जिस कैफे में एलेक्सी नवालनी ने चाय पी थी उसमें जहर मिला थ। एलेक्सी की प्रेस सेक्रेटरी ने ट्वीट करके बताया कि एलेक्सी को जहर दिया गया है। लेकिन डक्टर कहते हैं कि एलेक्सी को जहर नहीं दिया गया है। जर्मनी ने तो अपना एक एयर एंबुलेंस भी रूस के साइबेरिया में भेज दिया। जिसके बाद उन्हें जर्मनी लाया गया। जहां वे कोमा में रहे। वहीं जर्मनी ने रूस पर आरोप लगाया कि रूस ने एलेक्सी को नोविचोक नाम का जहर दिया।
वैसे रूस की राजनीति में विरोधियों को जहर देकर मारने जैसे कई तथ्य और रिपोर्ट समय-समय पर सामने आते रहते हैं। विकीपीडिया में भी List of soviet and Russian Assassinations लिखने पर उन नामों का उल्लेख मिलता है जिन्हें कथित तौर पर सत्ता पार्टी द्वारा जहर देकर मारने की कोशिश हुई। साल 2006 में अलेक्जेंडर लिटनिवेनको को रेडियो एक्टिव त्तव पोलोनियम 210 देकर मारने जैसी खबरें स्काई न्यूज की एक रिपोर्ट मं प्रकाशित की गई। वहीं 1978 में जाॅर्जी मार्कोव नाम के लेखक की मौत हो गई, जिसके सालों बाद ये खुलाया हुआ कि रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी ने जहर देकर जाॅर्जी की हत्या करवाई थी।- अभिनय आकाश
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- अभिनय आकाश
- जनवरी 18, 2021 19:04
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व्हाट्सएप की नई पाॅलिसी आने के बाद लोग खफा चल रहे थे और दूसरे प्लेफार्म पर जाना भी शुरू कर दिया। निगेटिव इम्पैक्ट देखकर व्हाट्सएप डैमेज कंट्रोल में जुट गया। ट्वीटर पर पोस्ट डालकर और अखबारों में पूरे पन्ने का विज्ञापन देकर व्हाट्सएप लोगों को समझा रहा है कि आपकी चैट अभी भी सुरक्षित हैं।
पहले निबंध की शुरूआत एक लाइन के जरिये हुआ करती थी ''भारत एक कृषि प्रधान देश है''। मोबाइल क्रांति के बाद से स्थिति थोड़ी बदल सी गई। अब भारत व्हाट्सएप प्रधान देश भी बन चुका है। If you are not paying for it, you become the product ये अंग्रेजी की एक कहावत है। जिसका मतलब है कि अगर आप कोई प्रोडक्ट मुफ्त में ले रहे है तो इसका मतलब है कि आप खुद ही प्रोडक्ट हैं। व्हाट्सएप पर आए एक नोटिफिकेशन से ये बात जरूर साबित हो गई है। पिछले कुछ दिनों में दुनियाभर के करीब दो सौ करोड़ लोगों को व्हाट्सएप पर एक नोटिफिकेशन मिला।
इस नोटिफिकेशन में कहा गया कि 8 फरवरी 2021 तक आपको जो शर्तें लिखीं हैं उसे स्वीकार करना होगा। अगर आप ये शर्तें स्वीकार नहीं करते तो आपका व्हाट्सएप एकाउंट बंद कर दिया जाएगा।
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नोटिफेकेशन की शर्तें क्या थी- व्हाट्सएप आपके डेटा को फेसबुक के साथ शेयर करेगा। जिसके लिया वो ग्रीन बटन के जरिये आपसे एग्री यानी इजाजत की मांग कर रहा है। फेसबुक ही व्हाट्सएप की पैरेंट कंपनी है। डेटा का मतलब है आपका फोन नंबर, आपके कांन्ट्रैक्ट्स और आपको व्हाट्सएप स्टेटस जैसी तमाम जानकारियां। ये डेटा व्हाट्सएप लेकर फेसबुक के साथ शेयर करना चाह रहा है। मतलब व्हाट्सएप आपकी कुछ चीजों की निगरानी करेगा और उसे थर्ड पार्टी के साथ शेयर भी करेगा। व्हाट्सएप ये गौर करगेा कि आप कितनी देर आनलाइन रहते हैं, आनलाइन रहकर क्या करते हैं। कौन सा फोन इस्तेमाल करते हैं और किस तरह के कंटेट व्हाट्सएप पर पसंद करते हैं। क्या सबसे अधिक देखते हैं। सबसे अधिक जो कंटेट आप देखते होंगे वह बेसिक डेटा व्हाट्सएप थर्ड पार्टी यानी फेसबुक, इंस्टाग्राम को शेयर करेगा और फिर उसी से मिलता-जुलता कंटेट आपको दिखाया जाएगा।
दरअसल, व्हाट्सएप पर भेजे गए मैसेज इंड टू इंड इंक्रिप्शन की मदद से स्कियोर होते हैं। मान लीजिए कि दो लोग हैं जिन्होंने एक दूसरे को भेजा हो। जैसे ही आप मैसेज भेजते हैं एक प्रोग्राम आपके मैसेज को एक जटिल कोड में बदल देता है। जिसे मैसेज भेजा गया है उसके फोन में वो कोड जाता है दोबारा मैसेज में बदल जाता है और जिसने वो मैसेज पढ़ा उसे समझ में आ जाता है कि सामने वाले ने मैसेज क्या भेजा। इस दौरान कोई भी मैसेज कहीं भी स्टोर नहीं होता।
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व्हाट्सएप की नई पाॅलिसी आने के बाद लोग खफा चल रहे थे और दूसरे प्लेफार्म पर जाना भी शुरू कर दिया। निगेटिव इम्पैक्ट देखकर व्हाट्सएप डैमेज कंट्रोल में जुट गया। ट्वीटर पर पोस्ट डालकर और अखबारों में पूरे पन्ने का विज्ञापन देकर व्हाट्सएप लोगों को समझा रहा है कि आपकी चैट अभी भी सुरक्षित हैं।
व्हाट्सएप के विज्ञापन के अनुसार उनकी पाॅलिसी में बदलाव आपकी निजी चैट को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करते हैं। ये अपडेट सिर्फ बिजनेस अकाउंट से बात करने को लेकर है और वो भी वैकल्पिक है। आप चाहे तो व्हाट्सएप पर किसी भी बिजनेस से बात न करे और अगर ऐसा करते हैं तो व्हाट्सएप इस बातचीत को फेसबुक से साझा कर सकता है। फिर इसे आपकी जानकारी से जोड़कर आपके हिसाब से विज्ञापन दिखा सकता है। व्हाट्सएप का कहना है कि बाकी सारी चीजें पहले जैसी हैं। व्हाट्सएप ने ट्वीटर और विज्ञापन के जरिये ये बाते भी कहीं। व्हाट्सएप और फेसबुक न तो आपके प्राइवेट मैसेज देख सकता है न ही आपकी काॅल सुन सकते हैं। व्हाट्सएप इस बात रिकाॅर्ड नहीं रखता कि आप किसी चैट या काॅल कर रहे हैं। आप व्हाट्सएप पर जो लोकेशन दूसरे के साथ साझा करते हैं उसे न तो व्हाट्सएप देख सकता है और न ही फेसबुक। व्हाट्सएप आपको फोन में मौजूद कांट्रैक्ट्स को फेसबुक के साथ शेयर नहीं करता है। व्हाट्सएप पर बने हुए ग्रुप प्राइवेट ही रहेंगे।
अब आते हैं प्राइवेट पाॅलिसी पर। व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम तीनों का प्रभुत्व मार्क जुकरबर्ग के पास है। वहीं उसके प्रतियोगी कहे या प्रतिद्वंद्वी गूगल के ही लोकेशन,क्लाउड, ड्राइव, जीमेल, यूट्यूब, गूगल एडसेंस हैं। गूगल को टक्कर देने या उसे पछाड़ने के लिए फेसबुक के द्वारा इस तरह की कवायदों को किया जा रहा है। साल 2009 में जब व्हाट्सएप मार्केट में आई तो उस वक्त किसी को भी टेक्सट मैसेज भेजने के लिए कम से कम एक रुपये की शुल्क देनी होती थी। उस वक्त फ्री मैसेज की सुविधा के साथ व्हाट्सएप आया। जिसकी मैसेज और काॅल को कोई रिकार्ड भी नहीं कर सकता तो प्राइवेसी के मामले में भी सही था। साल 2014 में फेसबुक ने 9 बिलियन डाॅलर में व्हाट्सएप को खरीद लिया। लेकिन जिस प्लानिंग के तहत व्हाट्सएप को फेसबुक ने खरीदा था वो मनचाहा रिजल्ट नहीं मिल पा रहा था। जिसके बाद व्हाट्सएप और फेसबुक का ये पाॅलिसी वाला चक्कर सामने आया।
यूट्यूब में विज्ञापन के जरिये जो भी पैसा आता है वो गूगल एडसेंस के जरिये। फेसबुक की भी चाहत इसी तरह के तरीके को अपनाने की है। मतलब विज्ञापन फेसबुक पर चलेगा लेकिन यूजर को व्हाट्सएप के जरिये लाया जाएगा। यूट्यूब पर कैटेगराइजेशन ज्य़ादा बेहतर है। जिस पर फेसबुक के रिसर्च किया। यूट्यूब ने टाइटल, डिस्क्रिप्शन, टैग, थंबनेल आदि के माध्यम से पहले ही वीडियो से संबंधित सारी जानकारी पा ली। फिर ये डेटा के आधार पर गूगल एड सेंस कौन सा विज्ञापन दिखाना है तय करती है। ऐसी ही कुछ सोच फेसबुक की भी है। आप जो भी व्हाट्सएप पर कर रहे हैं वो इसकी जानकारी फेसबुक को देगा और फिर फेसबुक उसी हिसाब से विज्ञापन दिखाएगा। ताकि फेसबुक का विज्ञापन भी रिलेवेंट हो सके।
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यूजर्स के विरोध पर फैसला टला
व्हाट्सएप के पाॅलिसी अपडेट से जुड़े फैसले के बाद लोग इसका भारी विरोध देखने को मिला। जिसके बाद व्हाट्सएप ने अपनी अपडेट पाॅलिसी को मई तक पोस्टपोन करने का फैसला किया। व्हाट्सएप का कहना है कि इससे यूजर्स को पाॅलिसी को समझने, इससे जुड़े कन्फ्यूजन दूर करने और इसे स्वीकार करने का मौका मिलेगा। कंपनी की तरफ से ब्लाॅग पोस्ट में यह बात कही गई।
व्हाट्सएप की प्राइवेसी पॉलिसी पर हाईकोर्ट
व्हाट्सएप की प्राइवेट पाॅलिसी को लेकर याचिकाकर्ता द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की गई। याचिका में कहा गया कि पाॅलिसी पर सरकार को एक्शम लेना चाहिए। साथ ही याचिकाकर्ता ने इसे निजता का उल्लंघन बताया। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस पर विस्तृत सुनवाई की बात करे हुई कोई नोटिस जारी नहीं किया। इसके साथ ही हाईकोर्टने कहा कि व्हाट्सएप एक प्राइवेट एप है। अगर आपकी निजता प्रभावित हो रही है तो आप इसे डिलीट कर दें। कोर्ट ने कहा क्या आप मैप या ब्राउजर इस्तेमाल करते है? उसमें भी आपका डाटा शेयर किया जाता है।
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गूगल सर्च में व्हाट्सएप यूजर्स के नंबर
तमाम तरह के विवाद चल ही रहे थे कि व्हाट्सएप को लेकर एक और विवाद सामने आया। कहा जा रहा है कि व्हाट्सएप यूजर्स के फोन नंबर इंडेक्सिंग के जरिये गूगल सर्च पर एक्सपोज कर दिए हैं। इससे पहले एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि व्हाट्सएप ग्रुप के लिंक भी गूगल पर सर्च किए गए थे। समाचार एजेंसी आईएएनएस के अनुसार गूगल सर्च में व्हाट्सएप यूजर्स के नंबर देखे गए हैं। गौरतलब है कि व्हाट्सएप को मोबाइल के अलावा लैपटाॅप और कंप्यूटर पर भी चलाया जाता है। यूजर्स के नंबर व्हाट्सएप वेब के जरिये लीक हुए हैं। मतलब साफ है कि अगर आप व्हाट्सएप को कंप्यूटर या लैपटाॅप पर इस्तेमाल करते हैं तो आपका कान्टैक्ट पब्लिकली गूगल सर्च स्क्राॅल में आ सकता है। जिससे यूजर्स के स्पैम और साइबर अटैक जैले जोखिम हो जाते हैं।
कोरोड़ों की संख्या में भारतीय फेसबुक, व्हाट्सएप जैसी प्लेटफार्म्स का यूज करते हैं। अगर ऐसे में अगर ऐसे ही चलता रहा तो लोगों का भरोसा व्हाट्सएप से घटता दिखाई देगा। प्राइवेसी वाले मसले के बाद तो कई लोगों ने व्हाट्सएर छोड़ टेलीग्राम और सिग्नल जैसे एप्स का भी रुख किया था। बीते कुछ दिनों से जो भी हुआ उससे साफ प्रतीत होता है कि यूजर्स ने व्हाट्सएप को ये बता दिया कि आपकी मोनोपाॅली नहीं चलेगी। - अभिनय आकाश
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