फेसबुक: उठते सवाल, राजनीतिक बवाल और बार-बार माफी मांगने की आदत

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अभिनय आकाश । Sep 5 2020 9:31PM

फेसबुक भाजपाई है कि कांग्रेसी। दरअसल, फेसबुक का सीधा सा मतलब है मुनाफा और धंधा। राजनीतिक पार्टियां फेसबुक को विज्ञापन देती हैं या अपने पेज को फेसबुक से प्रमोट करवाती हैं। बदले में फेसबुक पैसा लेता है। फेसबुक और विवाद का नाता नया नहीं है। अक्सर अलग-अलग विवाद सामने आते रहते हैं।

गलती करना इंसान का एक अवगुण है, कितनी ही सावधानी बरतें लेकिन कहीं ना कहीं कोई त्रुटि हो ही जाती है। लेकिन त्रुटि के बाद माफी मांगना, इंसानियत का श्रेष्ठ गुण है। "सॉरी", ये एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल आप और हम न जाने कितनी ही बार करते हैं। लेकिन इसे बोलिए तभी जब सच में महसूस हो। एक बहुत ही मशहूर कहावत है कि अगर कोई काम एक या दो बार किया जाता है, तो उसे गलती कहा जाता है। लेकिन अगर वही बात बार-बार दोहराई जाती है तो इसे कौन सी संज्ञा दी जाए ये आप खुद ही तय कर सकते हैं लेकिन इसे गलती तो कतई नहीं कहा जा सकता है। चेहरे की किताब यानी फेसबुक जिसके जरिए हम दोस्तों से जुड़े रिश्तेदारों से जुड़े। एक ऐसा सोशल मीडिया प्लेटफार्म जहां आप पोस्ट या फोटोज डालकर ये बता सकते हैं कि क्या कर रहे हैं, क्या सोच रहे हैं। इसके सबसे ज्यादा यूजर भारत में हैं। फेसबुक के जरिए हमें दोस्तों का रिश्तेदारों का और खबरों का भी हाल पता चलता है। ये तो चेहरे की किताब की मोटा-माटी बात हो गई। लेकिन आज बात इससे आगे की करेंगे क्योंकि फेसबुक भी इन सबसे बहुत आगे निकल गया है। 

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''यह मेरी गलती थी और मैं क्षमा चाहता हूं। मैंने फेसबुक शुरू किया, मैं इसे चलाता हूं, और यहां जो कुछ भी होता है उसके लिए मैं ही जिम्मेदार हूं।'' साल 2018 में फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों के सामने माफीनामे को तब प्रस्तुत किया था जब उन्हें यह बताने के लिए बुलाया गया था कि कैसे कैम्ब्रिज एनालिटिका जैसी एक तीसरी पार्टी ने अमेरिकियों के साइकोमेट्रिक विश्लेषण को अंजाम देने के लिए संभवतः 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान मतदाताओं को डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में प्रभावित करने के लिए फेसबुक के पांच करोड़ उपयोगकर्ताओं की व्यक्तिगत जानकारियों का दुरुपयोग किया था। वर्तमान में भारत में फेसबुक को लेकर देश की दो सबसे बड़ी पार्टी आपस में भिड़ी है। ये लड़ाई फेसबुक पर नहीं फेसबुक को लेकर है और ये झगड़ा आपको लेकर है, आपके विचार को कैप्चर करने को लेकर है आपके दिमाग को बदलने को लेकर है। 

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कहां से हुई शुरुआत

14 अगस्त 2020 को अमेरिका के अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल में एक लेख छपा। रिपोर्ट में फेसबुक की निष्‍पक्षता पर सवाल उठाए गए थे। WSJ ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि फेसबुक ने बीजेपी नेताओं के 'हेट स्‍पीच' वाली पोस्‍ट्स के खिलाफ ऐक्‍शन लेने में 'जान-बूझकर' कोताही बरती। यह उस विस्‍तृत योजना का हिस्‍सा था जिसके तहत फेसबुक ने बीजेपी और कट्टरपंथी हिंदुओं को 'फेवर' किया। राहुल गांधी ने इसी रिपोर्ट का हवाला देते हुए ट्वीट में किया कि भाजपा और आरएसएस भारत में फेसबुक और व्हाट्सएप को नियंत्रित करते हैं। वे इसके माध्यम से फर्जी खबरें और नफरत फैलाते हैं और इसका इस्तेमाल मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए करते हैं।

रिपोर्ट में दावा किया गया था कि फेसबुक इंडिया की पब्लिक पॉलिसी डायरेक्‍टर अंखी दास ने स्‍टाफ से कहा कि 'बीजेपी नेताओं की पोस्‍ट्स हटाने से देश में कंपनी के कारोबार पर असर पड़ेगा।' रिपोर्ट में टी राजा सिंह की एक पोस्‍ट का हवाला दिया गया था जिसमें कथित रूप से अल्‍पसंख्‍यकों के खिलाफ हिंसा की वकालत की गई थी। WSJ रिपोर्ट के अनुसार, फेसबुक के इंटरनल स्‍टाफ ने तय किया था कि 'खतरनाक व्‍यक्तियों और संस्‍थाओं' वाली पॉलिसी के तहत राजा को बैन कर देना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं किया गया क्योंकि फेसबुक की पालिसी हेड अंखी दास के कहने पर कर्रवाई नहीं हुई। लेख के मुताबिक बीजेपी के तीन और नेताओं पर फेसबुक के हिसाब से कार्रवाई होनी चाहिए थी लेकिन नहीं हुई। कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने फेसबुक के सीईओ को चिट्ठी लिखकर जांच स्तरीय टीम बनाकर जांच करने की मांग की। कांग्रेस ने फेसबुक की पालिसी हेड पर सवाल भी उठाए। शशि थरूर सूचना तकनीकी मामलों पर संसद की स्थायी समिति के चेयरमैन हैं और उन्होंने फेसबुक को समन भेजा।

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रविशंकर प्रसाद की चिट्ठी

देश के सूचना तकनीकी प्रसार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग को चिट्ठी लिखकर फेसबुक इंडिया के मैनेजमेंट को लेकर चिंताएं जताई। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि फेसबुक के कई कर्मचारी ऑन रिकॉर्ड देश के प्रधानमंत्री और कई दूसरे वरिष्ठ मंत्रियों के खिलाफ गालियां देते हैं। इनमें से कई लोग कंपनी में ऊंचे पदों पर बैठे हैं। वे ऐसी देशविरोधी पोस्ट को प्रमोट करते हैं।  साल 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले फेसबुक इंडिया प्रबंधन ने दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थकों के पेज डिलीट कर दिए। यही नहीं उनकी पहुंच (रिच) भी कम कर दी। इसके खिलाफ फेसबुक को कई मेल लिखे गए लेकिन कोई जवाब नहीं आया। 

ये तो हो गई आरोप-प्रत्यारोप की बात। ऐसे में आपको कंन्फूयजन ये हो गई होगी कि फेसबुक भाजपाई है कि कांग्रेसी। दरअसल, फेसबुक का सीधा सा मतलब है मुनाफा और धंधा। राजनीतिक पार्टियां फेसबुक को विज्ञापन देती हैं या अपने पेज को फेसबुक से प्रमोट करवाती हैं। बदले में फेसबुक पैसा लेता है। पार्टियों के लिए फेसबुक या दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफार्म प्रचार का जरिया हैं। 

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फेसबुक और विवाद का नाता नया नहीं है। अक्सर अलग-अलग विवाद सामने आते रहते हैं। इन विवादों की वजह से सोशल मीडिया के दिग्गज प्लैटफॉर्म को कई बार माफी मांगनी पड़ी है। 

माफी नं 1- 

साल 2006-  न्यूज फीड में बदलाव

साल 2006 में फेसबुक की तरफ से न्यूज फीड और मिनी फीड में बदलाव किए गए थे। जुकरबर्ग ने खुद कहा, ‘इस फीचर को इसलिए बनाया गया था ताकि यूजर्स अपनी जानकारी अपने दोस्तों से साझा कर सकें। 

क्या था मामला

2006 में फेसबुक ने कई यूजर्स के प्राइवेट पोस्ट्स को बिना उनकी जानकारी के दूसरों के साथ साझा कर दिए। इसपर भी संस्थापक जुकरबर्ग को माफी मांगनी पड़ी थी। तब फेसबुक एक नया सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म बन ही रहा था।

माफी नं 2- 

साल 2007

साल 2007 में फेसबुक ने एक नए फीचर का परीक्षण किया था जिसका नाम बीकन रखा गया था। इसके चलते कई यूजर्स के निजी पोस्ट बिना उनकी जानकारी के सार्वजनिक हो गए थे। यूजर्स की भारी नाराजगी के बाद फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने एक पत्र लिखकर माफी सबसे माफी मांगी थी।

माफी नं 3- 

साल 2010: यूजर्स की सूचना विज्ञापनदाताओं को देने पर

हमारा इरादा आपको बहुत सारे नियंत्रण देना था लेकिन वे आप में से बहुत से नहीं चाहते हैं। हम चूक गए।

क्या था मामला

फेसबुक पर आरोप लगा था कि बिना यूजर्स की जानकारी के उनकी सूचना विज्ञापनदाताओं को शेयर की गईं। जुकरबर्ग इसी का जवाब दे रहे थे। 24 मार्च 2010 को मार्क जुकरबर्ग ने वॉशिंगटन पोस्ट में लिखा कि फेसबुक एक रूम के प्रॉजेक्ट से लाखों लोगों को जोड़ने वाले सोशल नेटवर्क के रूप में विकसित हुआ है।

माफी नं 4- 

2012: यूजर्स के न्यूज फीड को मैनिप्युलेट करने पर

2012 में फेसबुक ने अपने करीब 7 लाख यूजर्स के न्यूज फीड को मैनिप्युलेट किया, जबकि यूजर्स को इसकी जानकारी तक नहीं थी। ऐसे यूजर्स को अपने फ्रेंड्स की पॉजिटिव फीड्स कम मिलने लगीं।

माफी नं 5- 

साल 2018- पिक्चर पर लगा प्रतिबंध

साल 2018 में फेसबुक ने एक यूजर को एक फोटो पोस्ट करने से रोक दिया था। फेसबुक ने इसके पीछे तर्क दिया था कि संबंधित फोटो पोर्नोग्राफिक फोटो है, जिस कारण उसे पोस्ट नहीं किया जा सकता। लेकिन बाद में फेसबुक ने फोटो को पोस्ट करने की इजाजत भी दे दी, साथ ही यूजर से माफी भी मांगी।

माफी नं 6- 

साल 2018- शूटिंग वीआर गेम

साल 2018 में फेसबुक ने अपनी वीआर गेम बुलेट ट्रेन का डेमो पोस्ट किया था। गेम को लेकर इसलिए विवाद शुरू हो गया क्योंकि ये गेम फ्लोरिडा के स्कूल में हुई गोलीबारी के बाद आया था। फेसबुक ने बाद में इस गेम को बढ़ावा देने के लिए माफी भी मांगी और बाद में इसे हटा भी दिया।

माफी नं 7- 

साल 2018- कैम्ब्रिज एनालिटिका स्कैंडल 

 मार्क जुकरबर्ग ने 21 मार्च को कैम्ब्रिज एनालिटिका स्कैंडल मामले में गलती स्वीकार करते हुए कहा कि यह विश्वासघात का मामला है। जुकरबर्ग ने फेसबुक पोस्ट कर कहा, "मैं कैंब्रिज एनालिटिका को लेकर अपनी बात रखना चाहता हूं। हम इस दिशा में समस्याओं से निपटने के लिए जरूरी कदम उठा लिए हैं।

क्या था मामला

आरोप ये था कि 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान मतदाताओं को डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में प्रभावित करने के लिए फेसबुक के पांच करोड़ उपयोगकर्ताओं की व्यक्तिगत जानकारियों का दुरुपयोग किया था।

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साल 2017 में जर्मनी की संसद ने एक ऐतिहासिक कानून पारित कर इंटरनेट कंपनियों को उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अवैध, नस्लीय, निंदनीय सामग्री के लिये जवाबदेह ठहराने वाला कानून पारित किया है। उन्हें एक निश्चित समयावधि में आपत्तिजनक सामग्री को हटाना होगा अन्यथा उन पर 50 मिलियन यूरो तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह कानून लोकतांत्रिक देशों में अब तक का संभवतः सबसे कठोर कानून है। इंटरनेट कंपनियों ने इस कानून को अभिव्यक्ति की वैध स्वतंत्रता के लिये संभावित खतरा बताते हुए चिंता व्यक्त की है। लेकिन जर्मनी के न्याय मंत्री ने यह कहकर इसका प्रतिवाद किया कि "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वहाँ समाप्त होती है, जहाँ आपराधिक कानून शुरू होता है।

क्या कहते हैं संबंधित कानून?

सोशल मीडिया पर दुर्व्यवहार और हेट स्पीच की समस्या सर्वव्यापी है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। अब हटाई जा चुकी सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66ए ने ऐसी सामग्री को शेयर करना एक दंडात्मक अपराध बना दिया था, जो पूर्णतः भड़काऊ या खतरनाक प्रवृत्ति वाली या ऐसी जानकारी वाली थी  जिसके बारे में विदित हो कि यह झूठी है|  इसके तहत दुविधा, असुविधा, खतरे, रुकावट, अपमान, चोट, आपराधिक धमकी, शत्रुता, घृणा या द्वेषभाव के कारण लगातार शेयर की जाने वाली सामग्री को रखा गया था। दोष सिद्ध होने पर इस धारा के तहत तीन साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान था| 

लेकिन लागू होने के बाद जब कुछ मामलों में इसका दुरुपयोग होने की बात सामने आई तो इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई| मार्च 2015 में  सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 66ए को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया| जब यह धारा लागू थी तो इसमें व्यक्ति की छानबीन की जाती थी, सोशल नेटवर्क की नहीं।

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 कंटेंट मॉडरेशन यानी सामग्री परिनियमन कैसे काम करता है?

 फेसबुक पर दिखने वाले अधिकांश कंटेंट यानी फेसबुक सामग्रियों को एल्गोरिदम मेथड से वर्गीकृत कर उन्हें केटेगरी वाइज चिह्नित किया जाता है अगर कंटेंट कंपनी के नियमों का उल्लंघन करते है। यानी  की इस प्लेटफार्म पर उपलब्ध कंटेंट पर फेसबुक की पैनी नजर रहती है ताकि उसके मापदंडों के विपरीत या प्रतिकूल कंटेंट फेसबुक की नजर से बच नही पाए। फेसबुक यूज़र्स इन कंटेंट को मैन्युअली चिन्हित कर सकते हैं जो दुनिया भर के रजिस्टर्ड कार्यालयों में बैठे सामग्री मध्यस्थों यानी कंटेंट मोडेटर्स को निर्देशित करता है। कंपनी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में कंपनी ने अभद्र भाषा या भड़काऊ वक्तव्य के लिए 20 मिलियन पोस्ट्स को नष्ट किया है। उपयोगकर्ता द्वारा रिपोर्ट किए जाने से पहले ही मोटे तौर पर 16 मिलियन पोस्ट्स को एल्गोरिदम प्रोसेस से ही मिटा दिया गया। शेष 4 मिलियन को रजिस्टर्ड कंटेंट मोडेटरों तथा अन्य फेसबुक कार्यालयों के कंटेंट टीमों को निरीक्षण के लिए भेज दिया गया। कंटेंट की गुणवत्ता और संवेदनशीलता की सुरक्षा के  लिए एक स्ट्रेटेजिक रिस्पांस टीम गठित है जो कानूनी समेत विभिन्न स्थानीय टीमों से संपर्क कर कंटेंट की प्रवृत्ति को एक तय प्रक्रिया के तहत चेक करती है। जानकार और सूत्रों की मानें तो लोक नीति यानी पब्लिक पॉलिसी की इसमें बड़ी भूमिका होती है।  संवेदनशील मुद्दों पर बहुत ही सख्त निगरानी की जाती है। जोखिम भरे विषय जैसे राजनीतिक मसलों से जुड़े विषयों पर पैनी नजर होती है। डिपार्टमेंटल टीमों के स्तर तक जिन मुद्दों का निपटारा नहीं हो पाता तो उन्हें सीनियर अधिकारियों और शायद मार्क जुकरबर्ग तक भी पहुंचाया जाता है। अभी हाल ही में,  यानी फरवरी माह में दिल्ली दंगों को  गति देने वाले पोस्टों को डेंजरस इंडिविजुअल्स एंड आर्गेनाईजेशन पॉलिसी के तहत सख्त करवाई का सामना करना पड़ा और ग्लोबली बैन भी किया गया। 

बहरहाल, फेसबुक को लेकर समय-समय पर उठते सवाल, उनकी कंटेंट मॉडरेशन की दलीलों और कई बार गलती के लिए सार्वजनिक माफी के बीच जारी है जंग देश की दो प्रमुख पार्टियों के बीच। और इस जंग के दौरान दुनियाभर के 250 करोड़ और करीब 24 करोड़ भारतीय विश्व की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर दोस्तों, रिश्तेदारों को हैल्लो, हे, हाय कहकर टेक्सट कर रहे होंगे। फोटोज डाल रहे होंगे और अपनी बात पोस्ट के माध्यम से व्यक्त कर रहे होंगे। फेसबुक के जरिये ये बता रहे होंगे कि वो क्या कर रहे हैं, क्या सोच रहे हैं। ये कमबख्त, पूछता भी यही रहता है।- अभिनय आकाश

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