क्या है RCEP समझौता, बिना भारत कितना प्रभावी है?

RCEP agreement
अभिनय आकाश । Nov 21 2020 3:31PM

डील के मुताबिक आरईसीपी अगले 20 सालों में कई तरह के सामानों पर टैरिफ खत्म करेगा। इम्पोर्ट एक्सपोर्ट ड्यूटीज हटाई जाएंगी। इसमें बौद्धिक संपदा, दूरसंचार, वित्तीय सेवाएं, ई कामर्स और व्यवसायिक सेवाएं भी शामिल होंगी। मोटा-माटी कहे तो ये डील फ्री ट्रेड एग्रीमेंट का एक विस्तृत स्वरूप मानी जा सकती है।

आरसीईपी पिछले कई दिनों से लोगों के बीच चर्चा का मुद्दा बना हुआ है। ये एक प्रस्तावित फ्री ट्रेड एग्रीमेंट है या व्यापारिक समझौता है। सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम जैसे दस आसियान देशों के अलावा इसमें चीन, भारत, दक्षिण कोरिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी शामिल हैं। भारत ने चीन के साथ व्यापार समझौते वाला समूह (क्षेत्रीय समग्र आर्थिक सहयोग समझौता) जॉइन करने से इनकार कर दिया है। भारत वास्तव में विकसित देशों के साथ कारोबारी समझौते करना चाहता है जिनमें अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे बड़े बाजार शामिल हैं। भारत की कोशिश यह है कि इन बाजारों में भारत के उत्पाद और सेवाएं अन्य देशों की तुलना में प्रतियोगी कीमत जुटा सकते हैं, आसियान देशों में इसकी संभावना कम है। एशिया प्रशांत के 15 देशों ने रीजनल कंप्रिहेंसिव इकनामिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट ज्वाइन कर लिया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 4 नवंबर 2019 को बैंकॉक में आरसीईपी के शिखर सम्मेलन में साफ़ तौर से कहा कि, ‘आरसीईपी का मौजूदा समझौता इसकी बुनियादी भावना को प्रकट नहीं करता न ही ये इस मुद्दे पर पहले तय हुए साझा दिशा-निर्देशों को प्रतिपादित करता है।

सबसे पहले आपको 5 लाइनों में बताते हैं कि क्या है आरईसीपी?

  • आरसीईपी में दस आसियान देश और उनके छह मुक्त व्यापार भागीदार चीन, भारत, जापान, दक्षिण, कोरिया, भारत, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं।
  • अगर आरसीईपी समझौते को अंतिम रूप दे दिया जाता तो यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बन जाता।
  • इसमें दुनिया की करीब आधी आबादी शामिल होती और वैश्विक व्यापार का 40 फीसदी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का करीब 35 फीसदी इस क्षेत्र के दायरे में होता।
  • भारत को छोड़कर आरसीईपी के सभी 15 सदस्य देश शिखर सम्मेलन के दौरान करार को अंतिम रूप देने को लेकर एकमत थे।
  • समझौते को लेकर हालांकि बातचीत 2012 से ही चल रही थी 15 नवंबर 2020 को वियतनाम की राजधानी हनोय में इस पर हस्ताक्षर हुए।

जब आरसीपी की बातचीत चल रही थी तो भारत भी इसमें शामिल था। लेकिन सात साल विभिन्न दौरे की बातचीत चलने के बाद जब चीजें निर्णायक चरण में पहुंचकर ठोस शक्ल लेने लगी तो भारत को एहसास हुआ कि लाख कोशिशों के बावजूद प्रस्तावित समझौते को एक हद से ज्यादा बदला नहीं जा सकता। और अपने अंतिम रूप में यह भारतीय खेती तथा कृषि आधारित उद्योगों को बुरी तरह प्रभावित करेगा। तब भारत सरकार ने कहा था कि 'इससे देश में सस्ते चीनी माल की बाढ़ आ जायेगी और भारत में छोटे स्तर पर निर्माण करने वाले व्यापारियों के लिए उस क़ीमत पर सामान दे पाना मुश्किल होगा, जिससे उनकी परेशानियाँ बढ़ेंगी। अब भारत के बगैर 15 देशों ने ट्रेड डील साइन की है। जिसमें भारत के पक्के दोस्त जापान और आस्ट्रेलिया भी हैं। कुछ विश्लेषक ये कह रहे हैं कि डील से बाहर रहकर भारत ने अपना नुकसान कर दिया है तो दूसरा पक्ष भारत सरकार का है कि डील हमारे हित में नहीं थी तो हमने साइन नहीं किया। ज्यादा सही बात क्या है इसका एमआरआई स्कैन करेंगे। पहले आरसीईपी का मकसद आपको समझाते हैं।

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ट्रेड डील का मकसद क्या है और सदस्य देशों को कैसे फायदा होगा

डील के मुताबिक आरईसीपी अगले 20 सालों में कई तरह के सामानों पर टैरिफ खत्म करेगा। इम्पोर्ट एक्सपोर्ट ड्यूटीज हटाई जाएंगी। इसमें बौद्धिक संपदा, दूरसंचार, वित्तीय सेवाएं, ई कामर्स और व्यवसायिक सेवाएं भी शामिल होंगी। मोटा-माटी कहे तो ये डील फ्री ट्रेड एग्रीमेंट का एक विस्तृत स्वरूप मानी जा सकती है। आरसीईपी के कई सदस्य देशों में पहले से ही फ्री ट्रेड एग्रीमेंट यानी एफटीए हैं। उसके बावजूद भी वो आरसीईपी में अपना फायदा ढूंढ रहे हैं। दो देशों के बीच एफटीए के बावजूद प्रोडक्ट का कोई हिस्सा किसी तीसरे देश से लिया गया है तो टैरिफ छूट नहीं मिलती है। मसलन थाईलैंड और इंडोनेशिया में एफटीए है और थाइलैंड से जो चीज इंडोनेशिया में निर्यात हो रही है उसमें कोई टैरिफ नहीं लगते हैं लेकिन अगर इसमें कोई पार्ट आस्ट्रेलिया का लगा हो तो टैरिफ की ये छूट नहीं मिलेगी। आरसीईपी के सदस्य देशों के बीच अब ऐसी दिक्कते नहीं आएगी क्योंकि वो सब एक बड़े एफटीए का हिस्सा बन गए।

भारत के बिना आरसीईपी

जो लोग भारत के आरसीईपी में शामिल होने के समर्थक हैं, वो ये विचार रखते हैं कि भारत को इस में शामिल होने से फ़ायदा होगा. क्योंकि आज अमेरिका के टीटीपी से अलग होने की वजह से भारत को कोई मुनाफ़ा नहीं हो रहा है। ऐसे में आरसीईपी की मदद से विश्व व्यापार का एक वैकल्पि ढांचा खड़ा होगा। इसका विश्व की सामरिक राजनीतिक व्यवस्था पर भी असर पड़ेगा। बहुत से जानकार ये भी मानते हैं कि चीन का बीआरआई प्रोजेक्ट दुनिया में अपने सामरिक और रणनीतिक प्रभाव को बढ़ाने के लिए बनाया गया है। चीन, सड़कों, रेलवे और बंदरगाहों के विशाल नेटवर्क के माध्यम से दुनिया के एक बड़े हिस्से पर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। भारत के आरसीईपी से हटने का फ़ैसला उस समय आया है जब चीन पर ये आरोप है कि वो आरसीईपी के शिखर सम्मेलन के दौरान इस समझौते पर आख़िरी मुहर लगवाने में जुटा हुआ था। इस बात के निश्चित रूप से व्यापक रणनीतिक आयाम हैं। चीन के लिए ये आर्थिक मक़सद भी है और भौगोलिक प्रभाव बढ़ाने का माध्यम भी। आरसीईपी समझौते पर आख़िरी मुहर के माध्यम से चीन कई लक्ष्य हासिल करना चाहता है।

दूसरी बात ये है कि आरसीईपी के माध्यम से चीन पश्चिमी देशों को ये संदेश भी देना चाहता है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के पास भी आर्थिक शक्ति है। ये बात भारत, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और अमेरिका के आपसी समझौते के संदर्भ में भी कही जा सकती है। क्योंकि इस के तीन सदस्य देश आरसीईपी में शामिल होने के लिए परिचर्चा में भागीदार हैं। इसी के साथ-साथ जापान, सिंगापुर और आसियान भी अब ये मान रहे हैं कि अब एक नयी वैश्विक अर्थव्यवस्था का निर्माण किया जा सकता है।

आरसीईपी से भारत पर क्या पड़ता असर?

इस डील में भागीदार बनने पर भारत में आयात की जाने वाली 80 से 90 फीसदी चीजों पर इंपोर्ट ड्यूटी कम हो जाती। भारतीय इंडस्ट्री में ये भी डर है कि इंपोर्ट ड्यूटी कम होने से भारत के बाजार में विदेशी सामान की भरमार हो जाएगी, खासकर चीन से। ऐसी सूरत में भारत का व्यापार घाटा बढ़ सकता है। भारत का आरसीईपी के अन्य सदस्य देशों के साथ भी व्यापार घाटा लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

कमजोर पड़ सकता था आत्मनिर्भर भारत अभियान

भारत के आरसीईपी से अलग होने के बाद, आरसीईपी की चमक धूमिल हो गई है। आरसीईपी का मुख्य लक्ष्य भारत के विशाल बाज़ार तक पहुंच बनाने का था। बाक़ी दुनिया के लिए भारत की 1.4 अरब की आबादी एक बड़ा बाज़ार है, जिसके नागरिकों की आमदनी पिछले कई वर्षों से 6 से 8 फ़ीसद की दर से बढ़ रही है। इससे भारत को अपनी आबादी के रूप में एक बहुत बड़ा फ़ायदा मिलता है, जिस के पास युवा ग्राहकों की बड़ी तादाद है। और ये ग्राहक दिनों दिन अमीर हो रहा है। इसके अलावा कमज़ोर घरेलू उद्योगों की वजह से आज इस युवा ग्राहकों के बाज़ार की अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पा रही हैं. क्योंकि इनकी अलग-अलग मांगों को घरेलू उद्योग पूरा नहीं कर पा रहे हैं। मौजूदा औद्योगिक उत्पाद बेहद कम है. अकुशल उत्पादन प्रक्रिया और सप्लाई चेन की बाधाएं भारत के उद्योगों को विदेशी मुक़ाबले के लिए तैयार होने से रोक रही हैं। अब जबकि भारत की सरकार देश की अर्थव्यवस्था को 5 ख़रब तक पहुंचाने के लक्ष्य की आकांक्षा रखती है, तो इस मक़सद को पूरा करने के लिए भारत के पास सबसे बड़ी ताक़त इसका अपना उपभोक्ता बाज़ार ही है।

इससे ये सवाल भी पैदा होता है कि जिस कारण से मोदी सरकार ने पिछले साल नवंबर में 'द रीजनल कॉम्प्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप' यानी आरसीईपी वार्ता से बाहर होने का एलान किया था - वो फ़ैसला सही था या नहीं. ये फ़ैसला भारत को आत्मनिर्भर करने और घरेलू बाज़ार को बाहर की दुनिया से सुरक्षित और ज़्यादा मज़बूत बनाने की वजह से लिया गया था। आरसीईपी पर मोदी सरकार का फ़ैसला पीएम मोदी की मज़बूत लीडरशिप दर्शाता है।- अभिनय आकाश

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