लालू को जेल भेजने वाले नेता से बीजेपी ने बिहार में क्यों किया किनारा

sushil Modi
अभिनय आकाश । Nov 18 2020 9:51AM

बिहार में समकालीन राजनीति के बारे में कहा जाता है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को अगर चुनावी ज़मीन पर शिकस्त देने वाले नीतीश कुमार हैं तो उन्हें तथ्य और दस्तावेजों के ज़रिए शिकस्त देने वाले सुशील कुमार मोदी।

लोकसभा चुनाव 2014 में करीब दो साल का वक्त शेष था, बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के चेहरे के रूप में पार्टी के भीतर से ही कई धरों के द्वारा गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को लेकर स्वर उठ रहे थे जिसमें बिहार के कुछ नेताओं की आवाजे भी शामिल थी। गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे सरीखे नेता खुलकर नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाने के पक्ष में माहौल बना रहे थे। तमाम उठती आवाजों के बीच बिहार बीजेपी के बड़े नेता ने सितंबर 2012 में एक अखबार को दिए इंटरव्यू में दो टूक कहा- नीतीश में एक बेहतर प्रधानमंत्री बनने की सभी खूबियां हैं। बीजेपी के इस नेता के बयान से से एनडीए में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर सियासी पारा एक बार फिर गरम हो गया। भाजपा के कई नेताओं ने इसे पार्टी के खिलाफ की गई बयानबाजी बताया। बीजेपी को बार-बार इस मुद्दे पर सफाई देनी पड़ी। साथ ही उसी नेता पर बिहार में जदयू का छोटा भाई बनाए रखने की कोशिश के भी आरोप लगे। वो नाम है बिहार के डिप्टी सीएम रहे सुशील कुमार मोदी। हालांकि तब राजनीतिक परिस्थितियां अलग थीं, सो भाजपा ने इस मसले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। लेकिन बीजेपी 74 सीटों के साथ जेडीयू से बड़ी पार्टी बन कर उभरी और साथ ही नीतीश का कद कमजोर हुआ तो उनके डिप्टी का नपना भी तय ही था। वह हो गया। अपने प्रोफाइल से डिप्टी सीएम पद जिक्र भी खत्म कर दिया. सुशील मोदी ने ट्विटर पर ही गुस्से का इजहार कर दिया - "...कार्यकर्ता का पद तो कोई छीन नहीं सकता!" जुलाई, 2017 से चार साल पहले की अवधि को छोड़ दें तो नीतीश कुमार और सुशील मोदी एक दूसरे के साथ साये की तरह बने रहे और जब भी दोनों में से किसी पर भी कोई राजनीतिक मुश्किल आयी, एक दूसरे को जी जान से बढ़ कर बचाव करते रहे। यहां तक कि नीतीश कुमार के महागठबंधन का मुख्यमंत्री बनने के बाद भी सुशील मोदी उनके साथ मकर संक्रांति पर निजी रिश्तों की दुहाई देकर दही-च्यूड़ा और खिचड़ी खाते रहे। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार और सुशील मोदी 'नीकु और सुमो' की जोड़ी के रूप में मशहूर रहे हैं। 

लालू राज को खत्म करने में नीतीश संग बराबर की भूमिका में रहे सुमो 

बिहार में समकालीन राजनीति के बारे में कहा जाता है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को अगर चुनावी ज़मीन पर शिकस्त देने वाले नीतीश कुमार हैं तो उन्हें तथ्य और दस्तावेजों के ज़रिए शिकस्त देने वाले सुशील कुमार मोदी। नीतीश, मोदी और लालू -सत्तर के दशक में छात्र आंदोलन से उभरे चेहरे, जिनके इर्द-गिर्द आज भी बिहार की राजनीति बुनी हुई है। दिलचस्प है कि सुशील कुमार मोदी ने तो लालू यादव के साथ छात्र राजनीति शुरू की, लेकिन लालू प्रसाद यादव को जेल पहुंचाने में भी अहम भूमिका निभाई।

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सुशील कुमार मोदी का जन्म 5 जनवरी 1952 को पटना में हुआ था। पटना विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान सुशील मोदी छात्र राजनीति में सक्रिय थे। 1962 में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य बने। भारतीय जनता पार्टी के सिद्धांतकार और संघ विचारक रहे केएन गोविंदाचार्य को सुशील कुमार मोदी का मेंटर माना जाता है। 1974 में जय प्रकाश नारायण के आह्वान पर छात्र आंदोलन में कूद पड़े। 1983–86 के बीच सुशील मोदी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महासचिव रहे। जेपी आंदोलन और आपातकाल के दौरान सुशील मोदी की 5 बार गिरफ्तारी हुई थी। 

अंतर-धार्मिक विवाह का किस्सा जिसमें सीधा सीधा अटल बिहारी पहुंच गए 

राजनीतिक जीवन के अलावा सुशील कुमार मोदी का निजी जीवन भी बेहद दिलचस्प है। उन्होंने जेसिस जार्ज से प्रेम विवाह किया है। जेसिस जार्ज रोमन कैथोलिक ईसाई हैं। बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की मुंबई से दिल्ली लौटते वक्त जेसिस जार्ज से मुलाकात हुई थी। ट्रेन में इतिहास से पीएचडी कर रहीं जेसिस जार्ज एक ट्रिप पर कश्मीर जा रही थीं।  ट्रेन में सुशील कुमार मोदी की जेसिस जार्ज से मुलाकात हुई और धीरे-धीरे दोनों में प्यार हो गया। बिहार के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी की शादी में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी पहुंचे थे। सुशील मोदी ने एक इंटरव्यू में बताया था,’ अटल जी से मेरा ज्यादा परिचय नहीं था। मैंने शादी के लिए अटल जी को पोस्टकार्ड डाल दिया, यह सोचकर नहीं डाला था कि वो शादी में आएंगे।’ सुशील कुमार मोदी ने आगे कहा, ‘मैं तो आश्चर्यचकित हो गया जब अटल जी का जवाब आया कि मैं आपकी शादी में आ रहा हूं। ‘ इतना ही नहीं अटल बिहारी वाजपेयी ने शादी के बाद मंच से सुशील कुमार मोदी को भाजपा में काम करने के लिए आमंत्रित किया था। अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा संघ के बड़े पदाधिकारी नानासाहेब देशमुख, भाऊराव देवरस भी शादी में मौजूद रहे। 

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भागलपुर से जीते लोकसभा चुनाव

6 अप्रैल, 1980 को भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। गठन के बाद से ही बिहार में बीजेपी पर अगड़ी पार्टी होने के आरोप लगने लगे लेकिन उसका आधार वोट शहरी मतदाता, अगड़ी जाति और वैश्य, तीनों ही थे। सुशील कुमार मोदी और नंद किशोर यादव जैसे नेता को गोविंदाचार्य ने प्रमोट किया, जिसके चलते बीजेपी का व्यापक आधार बना। सुशील मोदी 1990 में सक्रिय राजनीति में आए और पटना सेंट्रल विधानसभा सीट से चुने गए। 1995 और 2000 में भी वे विधानसभा पहुंचे। 1996 से 2004 के बीच वे बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे।  2004 में सुशील मोदी ने लोकसभा का चुनाव लड़ा और भागलपुर से विजयी रहे। साल 2005 में उन्होंने संसद सदस्यता से इस्तीफ़ा दिया और विधान परिषद के लिए निर्वाचित होकर उपमुख्यमंत्री बने।

चारा घोटाला में डाली याचिका

पटना हाई कोर्ट में उन्होंने लालू प्रसाद के खिलाफ जनहित याचिका डाली जिसका खुलासा चर्चित चारा घोटाले के रूप में हुआ था। साल 2015 में जेडीयू आरजेडी की सरकार बनने के बाद, सुशील मोदी के निशाने पर फिर से लालू परिवार आया। उन्होंने 4 अप्रैल 2017 से लालू परिवार की बेनामी संपत्ति को लेकर लगातार 44 प्रेस कॉन्फ्रेंस की। नतीजा ये हुआ कि 26 जुलाई 2017 को सरकार गिर गई. नई सरकार 27 जुलाई को बनी जिसमें सुशील कुमार मोदी उपमुख्यमंत्री बने। सुशील मोदी के साथ कोई बड़ा विवाद कभी नहीं जुड़ा। ये ज़रूर हुआ कि उनके परिवार के लोगों की वजह से वे ज़्यादा चर्चा में रहे। साल 2011 राष्ट्रकवि दिनकर के पटना स्थित घर के एक हिस्से पर जबरन कब्जा करने को लेकर उनके भाई महेश मोदी का नाम आया। वहीं साल 2017 में सामने आए सृजन घोटाला में उनकी चचेरी बहन रेखा मोदी का नाम सामने आया। 

जब सुशील मोदी ने BJP के बदले नीतीश का दिया साथ 

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी के अंदर से नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने की मांग उठ रही थी। उधर जेडीयू ने 2012 से ही नीतीश कुमार का नाम एनडीए के पीएम कैंडिडेट के रूप में उभारना शुरू कर दिया था। गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे जैसे बिहार बीजेपी के धाकड़ चेहरे नीतीश की मुहीम का जोरदार विरोध कर रहे थे। 2012 में ही सुशील मोदी के एक इंटरव्यू ने जिसमें उन्होंने नीतीश को पीएम मटीरियल बता दिया। मार्च 2018 में भागलपुर में भड़की सांप्रदायिक हिंसा में अश्विनी चौबे के पुत्र अर्जित शाश्वत का नाम जुड़ा और उनकी गिरफ्तारी भी हुई। नीतीश सरकार के इस ऐक्शन से बीजेपी में रोष था। उस वक्त सुशील मोदी के कोई भी कड़ा रूख अख्तियार नहीं करने के आरोप लगे थे। संजय पासवान ने 2019 में कहा था कि बिहार में बीजेपी का मुख्यमंत्री बनना चाहिए।  सुशील मोदी यहां भी नीतीश के पक्ष में डट गए। उन्होंने ट्वीट किया, 'नीतीश कुमार बिहार में एनडीए के कैप्टन हैं और 2020 में गले विधानसभा चुनाव के दौरान भी कैप्टन रहेंगे। जब कैप्टन चौका, छक्का जड़ते हुए विरोधियों को पारी दर पारी मात दे रहा हो तो बदलाव का सवाल ही कहां उठता है। हालांकि बाद में सुशील मोदी ने वो ट्वीट डिलीट कर दिया था। 

भाजपा के दायरे में चल रही चर्चाओं के मुताबिक, उपमुख्यमंत्री के रूप में 11 वर्षों से अधिक समय तक बिहार की सत्ता का प्रमुख चेहरा रहे सुशील मोदी को अब राज्यपाल या केंद्र में कोई बड़ी जिम्मेवारी देकर एडजस्ट किया जा सकता है। बताया जाता है कि इन्हें राज्य की राजनीति से अलग करने की पटकथा उसी दिन लिखी गई, जब वे अचानक पिछले सप्ताह दिल्ली गए।- अभिनय आकाश

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