सरकार की कोशिशें रहीं नाकाम, लोकसभा, विधानसभा चुनाव एक साथ नहीं होंगे

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लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की सरकार की कोशिशें रंग लाती नहीं दिख रही हैं क्योंकि मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने यह साफ कर दिया है कि निकट भविष्य में एक साथ चुनाव कराये जाने की कोई संभावना नहीं है।

लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की सरकार की कोशिशें रंग लाती नहीं दिख रही हैं क्योंकि मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने यह साफ कर दिया है कि निकट भविष्य में एक साथ चुनाव कराये जाने की कोई संभावना नहीं है। दरअसल एक साथ चुनाव की अटकलों को इस माह के शुरू में तब बल मिला था जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने विधि आयोग के न्यायमूर्ति बलवीर चौहान को खत लिखते हुए एक देश-एक चुनाव मुद्दे पर पार्टी का समर्थन दोहराया। उन्होंने अपने पत्र में कहा था कि हर समय कहीं ना कहीं चुनाव होते रहने से आचार संहिता लग जाती है जिससे विकास कार्यों पर असर पड़ता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक साथ चुनाव कराये जाने के पक्षधर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस सहित विपक्ष ने इसका विरोध करते हुए इसे संघवाद की भावना के खिलाफ बताया है। विधि आयोग ने इस मुद्दे पर सभी पार्टियों से चर्चा भी की लेकिन अब तक कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका है।

इस बीच, अब जब मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ओपी रावत ने निकट भविष्य में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की संभावना से साफ इंकार कर दिया है तो सभी अटकलें खत्म हो गयी हैं। रावत ने कहा कि दोनों चुनाव एक साथ कराने के लिए कानूनी ढांचा स्थापित किए जाने की जरूरत है।

हाल के दिनों में ऐसी भी अटकलें थीं कि इस साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में निर्धारित विधानसभा चुनावों को टाला जा सकता है तथा उन्हें अगले साल मई-जून में लोकसभा चुनावों के साथ कराया जा सकता है। मिजोरम विधानसभा का कार्यकाल 15 दिसंबर को समाप्त हो रहा है जबकि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान विधानसभाओं का कार्यकाल क्रमश: पांच जनवरी, सात जनवरी और 20 जनवरी, 2019 को पूरा होगा।

रावत ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘कोई संभावना नहीं।’’ उनसे सवाल किया गया था कि क्या लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना संभव है। उनकी टिप्पणी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के उस हालिया बयान की पृष्ठभूमि में है जिसमें उन्होंने दोनों चुनाव एक साथ कराने के लिए सभी पक्षों के बीच ‘‘स्वस्थ और खुली बहस’’ का आह्वान किया था।

रावत ने कहा कि सांसदों को कानून बनाने के लिए कम से कम एक वर्ष लगेंगे। इस प्रक्रिया में समय लगता है। जैसे ही संविधान में संशोधन के लिए विधेयक तैयार होगा, हम (चुनाव आयोग) समझ जाएंगे कि चीजें अब आगे बढ़ रही हैं)। रावत ने कहा कि चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव की तैयारी मतदान की निर्धारित समयसीमा से 14 महीने पहले शुरू कर देता है। उन्होंने कहा कि आयोग के पास सिर्फ 400 कर्मचारी हैं लेकिन 1.11 करोड़ लोगों को चुनाव ड्यूटी पर तैनात करता है।

ईवीएम मशीनों की ‘‘नाकामी’’ की शिकायतों से जुड़े एक प्रश्न पर रावत ने अफसोस जताया कि भारत के कई हिस्सों में ईवीएम प्रणाली के बारे में व्यापक समझ नहीं है। उन्होंने कहा कि नाकामी की दर 0.5 से 0.6 प्रतिशत है और मशीनों की विफलता की ऐसी दर स्वीकार्य है।

एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि चुनावों में नोटा विकल्प का प्रतिशत आमतौर पर 1.2 से 1.4 प्रतिशत के बीच होता है। एक अन्य सवाल के जवाब में रावत ने कहा कि चुनाव आयोग को पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त है।

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