1984 दंगा: सज्जन कुमार कैसे बने विलेन, पढ़ें मामले से जुड़ा पूरा घटनाक्रम
निचली अदालत ने आरोपी के तौर पर नामजद किये गये कुमार, बलवान खोखर, महेंद्र यादव, कैप्टन भागमल, गिरिधर लाल, कृष्ण खोखर, दिवंगत महासिंह और संतोष रानी के खिलाफ समन जारी किया।
नयी दिल्ली। 1984 के सिख विरोधी दंगे के जिस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दोषी ठहराया और उन्हें ताउम्र कैद की सजा सुनायी, उसका घटनाक्रम इस प्रकार है:।
Delhi High Court: Sajjan Kumar shall not from this moment till his surrender leave the NCT of Delhi and shall immediately provide to the CBI the address and mobile number(s) where he can be contacted. (file pic) pic.twitter.com/BkNQrejNNC
— ANI (@ANI) December 17, 2018
31 अक्टूबर, 1984: तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके निवास पर उनके दो अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी।
1-2 नवंबर, 1984: दिल्ली छावनी के राजनगर में भीड़ ने पांच सिखों की हत्या की।
मई, 2000: दंगे से जुड़े मामलों की जांच के लिए जी टी नानावटी आयोग गठित किया गया।
दिसंबर, 2002: सत्र अदालत ने एक मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को बरी कर दिया।
24 अक्टूबर, 2005: सीबीआई ने जी टी नानावटी आयोग की सिफारिश पर एक अन्य मामला दर्ज किया।
1 फरवरी, 2010: निचली अदालत ने आरोपी के तौर पर नामजद किये गये कुमार, बलवान खोखर, महेंद्र यादव, कैप्टन भागमल, गिरिधर लाल, कृष्ण खोखर, दिवंगत महासिंह और संतोष रानी के खिलाफ समन जारी किया।
24 मई 2010: निचली अदालत ने छह आरोपियों के खिलाफ हत्या, डकैती, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की शरारत, दो समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने, आपराधिक साजिश एवं भादसं की अन्य धाराओं के तहत आरोप तय किया।
30 मई, 2013: अदालत ने कुमार को बरी किया तथा बलवान खोखर, लाल, भागमल को हत्या के अपराध में एवं यादव, कृष्ण खोखर को दंगा फैलाने के अपराध में दोषी ठहराया।
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9 मई, 2013: अदालत ने खोखर, भागमल और लाल को उम्रकैद तथा यादव एवं कृष्ण खोखर को तीन साल की कैद की सजा सुनायी।
19 जुलाई, 2013: सीबीआई ने कुमार को बरी किये जाने के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
22 जुलाई, 2013: उच्च न्यायालय ने सीबीआई की अर्जी पर कुमार को नोटिस जारी किया।
29 अक्टूबर, 2018: उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रखा।
17 दिसंबर 2018: उच्च न्यायालय ने कुमार को दोषी ठहराया और ताउम्र कैद की सजा सुनायी। उसने खोखर, भागमल और लाल को सुनायी गयी उम्रकैद की सजा भी सही ठहरायी तथा यादव एवं कृष्ण खोखर की कैद की सजा बढ़ाकर दस साल कर दी।
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