2021 के चुनावी नतीजे तैयार करेंगे 2022 की पिच, पार्टियों के स्ट्राइक रेट पर भी दिखेगा असर

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अंकित सिंह । Mar 22 2021 5:20PM

यह राज्य है उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा। इस साल होने वाले चुनाव में सिर्फ असम में ही भाजपा की सरकार है। वहीं, अगले साल जिन राज्यों में चुनाव होने है उनमें सिर्फ पंजाब को छोड़कर बाकी राज्यों में भाजपा की सरकार है।

वर्तमान में 1 केंद्र शासित प्रदेश सहित देश के 5 राज्यों में चुनाव हो रहे है। इन चुनावी राज्यों को लेकर चर्चाएं लगातार जारी है। देश में इन राज्यों में हो रहे चुनावी प्रचार का भी शोर है। यह राज्य है- पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी। भले ही इस साल यह चुनाव इन राज्यों में सरकारों की दिशा और दशा तय करेंगे। लेकिन इससे ज्यादा इन चुनावों के नतीजे अगले साल होने वाले चुनावों पर भी असर डालेंगे। 2 मई को आने वाले इन चुनावों के नतीजे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की दिशा और दशा तय करेंगे। 2 मई के बाद से देखें तो अगले साल जिन राज्यों में चुनाव होने है उनके लिए महज 7 से 8 महीने ही बचेंगे। यह राज्य है उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा। इस साल होने वाले चुनाव में सिर्फ असम में ही भाजपा की सरकार है। वहीं, अगले साल जिन राज्यों में चुनाव होने है उनमें सिर्फ पंजाब को छोड़कर बाकी राज्यों में भाजपा की सरकार है। 

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असम में भाजपा सत्ता वापसी की उम्मीद में है जबकि पश्चिम बंगाल में सत्ता हासिल करने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रही है। पुडुचेरी में भी भगवा पार्टी को उम्मीद है कि वह इस बार अच्छा प्रदर्शन कर सकेगी। सबसे ज्यादा चर्चा पश्चिम बंगाल की हो रही है। अगर पश्चिम बंगाल में भाजपा कामयाब हो जाती है तो आने वाले साल में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए वह मनोवैज्ञानिक तौर पर खुद को मजबूत रखेगी। हां, तमिलनाडु और केरल में भाजपा बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं कर रही है। भगवा पार्टी इन दोनों ही राज्यों में अपने मत प्रतिशत में इजाफे की उम्मीद में है। पश्चिम बंगाल की लड़ाई तो भाजपा के लिए ऐसी हो गई है कि यहां अगर वह जीत जाती है तो बाकी राज्यों की हार भी उसके आत्मविश्वास पर कोई असर नहीं डालेगी और वह पूरे जोश और उत्साह के साथ अगले साल के चुनाव के लिए तैयारी कर सकेगी। 

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हालांकि, भाजपा अगर पश्चिम बंगाल में कुछ सीटों से पीछे रह जाती है और असम में चुनावी नतीजे उस के पक्ष में रहते हैं तो भी पार्टी का उत्साह बरकरार रह सकता है। हां, पश्चिम बंगाल के लिए एक मलाल जरूर रहेगा। असम को लेकर भाजपा यह बात कहने में ज्यादा उत्साहित दिखेगी कि उसके लिए anti-incumbency कोई फैक्टर नहीं है। बंगाल और असम के नतीजे भगवा पार्टी के पक्ष में रहते हैं तो उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के मुख्यमंत्री भी आत्मविश्वास से भरे रहेंगे और चुनावी समर के लिए तैयार होंगे। अगर असम और बंगाल में नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं होते तो फिर गेंद विपक्ष के पाले में होगा और इसका असर अगले साल के चुनाव में भी देखने को मिलेगा। पंजाब में भाजपा को बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं है। अब तो वह अकाली दल के साथ गठबंधन का हिस्सा भी नहीं है।

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इस साल हो रहे विधानसभा चुनाव में यह बात भी उभर कर सामने आएगा कि देश में राष्ट्रीय दल बनाम क्षेत्रीय दल के बीच मुकाबला ज्यादा जोरदार रह रहा है या फिर दो राष्ट्रीय दलों के बीच का मुकाबला ज्यादा दमदार दिख रहा है। अगर इस साल के चुनाव में क्षेत्रीय दलों का दबदबा ज्यादा देखा गया तो कांग्रेस के लिए मुश्किल और भी बढ़ सकती हैं। बंगाल में वर्तमान में भी देखे तो भाजपा की सीधी लड़ाई तृणमूल कांग्रेस से हैं। अगर इस साल के चुनाव में क्षेत्रीय दलों का दबदबा रहता है तो अखिलेश यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी और मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी के लिए भी अच्छी खबर होगी। असम में जहां मुकाबला दो राष्ट्रीय दलों के बीच में है वही बंगाल में राष्ट्रीय दल बनाम क्षेत्रीय दल है। तमिलनाडु में दो क्षेत्रीय दलों के बीच मुख्य मुकाबला है। हालांकि दोनों को राष्ट्रीय दलों का समर्थन प्राप्त है। वहीं, केरल के बात करें तो दो राष्ट्रीय दलों के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जा रहा है। 

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