विवाह उम्र के मुद्दे संबंधी स्थायी समिति में 30 पुरुष सांसद, प्रियंका ने सभापति को लिखा पत्र, महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की मांग

Priyanka Chaturvedi
प्रतिरूप फोटो

राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने पत्र ट्वीट करते हुए लिखा कि 31 सदस्यीय संसदीय समिति में 30 पुरुष सांसद है, जो महिलाओं के भाग्य का फैसला करेंगे कि शादी की उम्र 21 तक बढ़ाई जानी चाहिए या नहीं। मैंने राज्यसभा सभापति को पत्र लिखकर एक से अधिक महिला सदस्यों को समिति में शामिल किए जाने का अनुरोध किया है।

मुंबई। राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में पेश हुए बाल विवाह निषेध संशोधन विधेयक को लेकर राज्यसभा सभापति एम वेंकैया नायडू को पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने कहा कि इस विधेयक को संसद की स्थायी समिति को भेजा गया है और इस समिति में महज एक ही महिला संसद सदस्य हैं। 

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आपको बता दें कि शीतकालीन सत्र में सरकार ने लोकसभा में लड़कियों के विवाह की आयु 21 वर्ष करने संबंधी बाल विवाह निषेध संशोधन विधेयक पेश किया था। जिसे व्यापक विचार विमर्श के लिए संसद की स्थायी समिति को भेज दिया गया। इस विधेयक में लड़कियों के विवाह की न्यूनतम कानूनी आयु को 18 साल से बढ़ाकर पुरुषों के बराबर 21 साल करने का प्रस्ताव है।

प्रियंका चतुर्वेदी ने पत्र ट्वीट करते हुए लिखा कि 31 सदस्यीय संसदीय समिति में 30 पुरुष सांसद हैं, जो महिलाओं के भाग्य का फैसला करेंगे कि शादी की उम्र 21 तक बढ़ाई जानी चाहिए या नहीं। मैंने राज्यसभा सभापति को पत्र लिखकर एक से अधिक महिला सदस्यों को समिति में शामिल किए जाने का अनुरोध किया है।

प्रियंका चतुर्वेदी ने पत्र में लिखा कि यह निराशाजनक है कि महिलाओं और भारतीय समाज से संबंधित एक विधेयक पर एक समिति में विचार-विमर्श किया जाएगा, जहां प्रतिनिधित्व अत्यधिक विषम है। इसलिए मैं आपसे यह सुनिश्चित करने का अनुरोध करती हूं कि महिलाओं के मुद्दों से संबंधित विधेयकों पर चर्चा में महिलाओं का अधिक प्रतिनिधित्व और भागीदारी होनी चाहिए। 

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उन्होंने कहा कि यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि सभी हितधारकों के हितों को ध्यान में रखा जाए और सभी की आवाज, विशेषकर महिलाओं की आवाज को समिति द्वारा सुना और समझा जाए। उन्होंने अंत में लिखा कि मैं इस संबंध में एक उपयुक्त और उपयोगी कार्रवाई की आशा करती हूं।

गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने लोकसभा में भारी हंगामे के बीच में यह विधेयक पेश किया था। इस दौरान उन्होंने कहा था कि जो लोग सदन में उनकी सीट के आगे शोर-शराबा कर रहे हैं, एक तरह से महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करने का प्रयास है। उन्होंने कहा था कि सभी धर्म, जाति एवं समुदाय में महिलाओं को विवाह की दृष्टि से समानता का अधिकार मिलना चाहिए। लड़कियों और लड़कों के विवाह की आयु एक समान 21 वर्ष होनी चाहिए। ऐसे आंकड़े सामने आए है कि 15 से 18 वर्ष की 7 फीसदी बेटियों ने गर्भ धारण किया और 18 वर्ष से कम आयु की 23 फीसदी लड़कियों का विवाह कर दिया गया। 

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विधेयक का मसौदा क्या कहता है ?

विधेयक के मसौदे के अनुसार भारतीय क्रिश्चियन विवाह अधिनियम 1872,विशेष विवाह अधिनियम 1954, पारसी विवाह और विवाह विच्छेद अधिनियम 1936, मुस्लिम (स्वीय) विधि लागू होना अधिनियम 1937, विवाह विच्छेद अधिनियम 1954, हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 और विदेशी विवाह अधिनियम 1969 आदि में पुरूषों और महिलाओं के लिये विवाह की एक समान न्यूनतम आयु का प्रावधान नहीं है। इसके अनुसार, संविधान मूल अधिकारों के एक भाग के रूप में लैंगिक समानता की गारंटी देता है और लिंग के आधार पर भेदभाव को निषिद्ध करने की गारंटी देता है। इसलिए वर्तमान विधियां पर्याप्त रूप से पुरूषों और महिलाओं के बीच विवाह योग्य आयु की लैंगिक समानता के संवैधानिक जनादेश को पर्याप्त रूप से सुनिश्चित नहीं करता है।

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