केंद्र को बड़ा झटका, अरुणाचल में कांग्रेस शासन बहाल होगा

[email protected] । Jul 13 2016 5:24PM

उच्चतम न्यायालय ने भाजपा एवं केंद्र को आज बड़ा झटका दिया तथा विधानसभा सत्र को एक महीने पहले बुलाने के राज्यपाल के निर्णय को ‘‘असंवैधानिक’’ बताते हुए खारिज कर दिया।

उच्चतम न्यायालय ने भाजपा एवं केंद्र को आज बड़ा झटका दिया तथा विधानसभा सत्र को एक महीने पहले बुलाने के राज्यपाल के निर्णय को ‘‘असंवैधानिक’’ बताते हुए खारिज कर दिया और अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार की बहाली का आदेश दिया। न्यायालय के आदेश ने नाबाम तुकी की बर्खास्त कांग्रेस सरकार की सत्ता में वापसी का रास्ता साफ कर दिया है और विधानसभा के छठे सत्र की कार्यवाही को 14 जनवरी 2016 से एक महीने पूर्व 16 से 18 दिसंबर 2015 को बुलाए जाने से संबंधित राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा के निर्देश को दरकिनार कर दिया।

न्यायमूर्ति जेएस खेहर की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से लिए गए अपने ऐतिहासिक फैसले में आदेश दिया कि अरुणाचल प्रदेश विधानसभा में 15 दिसंबर, 2015 की यथास्थिति कायम रखी जाए। न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल के नौ दिसंबर, 2015 के आदेश की अनुपालना में अरुणाचल प्रदेश विधानसभा द्वारा उठाए गए सभी कदम एवं फैसले बरकरार रखने योग्य नहीं है। कांग्रेस के 47 में से 21 विधायकों द्वारा तुकी के खिलाफ बगावत करने के बाद मची उथलपुथल के कुछ दिन पश्चात अरुणाचल प्रदेश की नाबाम तुकी नीत सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था। राज्य में 26 जनवरी को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। उच्चतम न्यायालय ने इस वर्ष 20 फरवरी को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था और इससे कुछ पहले ही कांग्रेस के बागी नेता कालिखो पुल ने 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 18 असंतुष्ट विधायकों, दो निर्दलियों के समर्थन और भाजपा के 11 विधायकों के बाहरी समर्थन के साथ अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। न्यायमूर्ति खेहर के अलावा न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एमबी लोकुर, न्यायमूर्ति पीसी घोष और न्यायमूर्ति एनवी रमन इस पीठ में शामिल हैं। न्यायालय का आज का फैसला कांग्रेस के लिए उत्साहजनक है क्योंकि उत्तराखंड के बाद अरुणाचल प्रदेश ऐसा दूसरा राज्य है जहां न्यायालय ने पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस नीत सरकार को बहाल किया है।

तुकी ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह ‘‘ऐतिहासिक’’ था और इस निर्णय ने लोकतंत्र की रक्षा की है तथा न्याय सुनिश्चित किया है। उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय का आज का फैसला ऐतिहासिक है। यह देश में स्वस्थ लोकतंत्र की रक्षा का मार्ग प्रशस्त करता है।’’ अपनी सरकार को बर्खास्त किए जाने से पहले तक तुकी अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।

न्यायमूर्ति खेहर ने विस्तृत मुख्य फैसला सुनाया और क्रियात्मक हिस्सा पढ़ते हुए कहा कि विधानसभा का सत्र 14 जनवरी 2016 से एक महीने पूर्व 16 दिसंबर 2015 को बुलाने संबंधी राज्यपाल का नौ दिसंबर, 2015 का निर्देश संविधान के अनुच्छेद 163 (अनुच्छेद 174 के साथ पढ़ा जाए) का उल्लंघन है और यह खारिज किए जाने लायक है तथा इसे खारिज किया जाता है। पीठ ने कहा, ‘‘दूसरी बात यह है कि 16 से 18 दिसंबर, 2015 को होने वाले अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के छठे सत्र की कार्यवाही के तरीके के बारे में निर्देश देना वाला राज्यपाल का संदेश संविधान के अनुच्छेद 163 (अनुच्छेद 175 के साथ पढ़ा जाए) का उल्लंघन है और इस तरह यह खारिज करने लायक है और इसे खारिज किया जाता है।’’

आगे पीठ ने कहा कि तीसरी बात यह है कि ‘‘राज्यपाल के नौ दिसंबर, 2015 के आदेश की अनुपालना में अरुणाचल प्रदेश विधानसभा द्वारा उठाए गए सभी कदम एवं निर्णय बरकरार रखने योग्य नहीं है और दरकिनार किए जाने लायक हैं और इसलिए इन्हें दरकिनार किया जाता है।’’ पीठ ने कहा कि अंत में ‘‘पहले निर्णय से लेकर तीसरे निर्णय के मद्देनजर 15 दिसंबर 2015 की यथास्थिति बहाल करने का आदेश दिया जाता है।’’ न्यायमूर्ति मिश्रा एवं न्यायमूर्ति लोकुर ने एक अलग एवं समवर्ती निर्णय पढ़ते हुए कहा कि वे न्यायमूर्ति खेहर के विचार से असहमत नहीं हैं और उन्होंने राज्यपाल एवं विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय संबंधी कुछ और टिप्पणियां जोड़ीं।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि राज्यपाल का व्यवहार केवल निष्पक्ष ही नहीं होना चाहिए बल्कि यह स्पष्ट रूप से निष्पक्ष प्रतीत भी होना चाहिए। पीठ ने पूर्व में याचिकाओं के दो अन्य सेट पृथक कर दिए थे जो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने और फिर इसे हटाए जाने, जिसके बाद नयी सरकार का गठन हुआ था, को लेकर दायर की गई थीं। फरवरी में जिस दिन पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा था, उस दिन उसने पुल के नेतृत्व वाली सरकार के ‘‘अवैध’’ शपथ ग्रहण के खिलाफ कांग्रेस की याचिका पर अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि यदि राज्यपाल की कार्रवाई असंवैधानिक पाई जाती है तो वह ‘‘घड़ी को उल्टा घुमा सकती है।’'

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