धन विधेयक के रूप में पारित नहीं होना चाहिए था आधार कानून: न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़

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[email protected] । Sep 26 2018 3:57PM

आधार पर बुधवार को फैसला देने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति डी. वाई. चन्द्रचूड़ ने बहुमत से इतर अपने फैसले में कहा कि आधार विधेयक को लोकसभा में धन विधेयक के रूप में पारित नहीं होना चाहिए था।

नयी दिल्ली। आधार पर बुधवार को फैसला देने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति डी. वाई. चन्द्रचूड़ ने बहुमत से इतर अपने फैसले में कहा कि आधार विधेयक को लोकसभा में धन विधेयक के रूप में पारित नहीं होना चाहिए था क्योंकि यह संविधान के साथ धोखा के समान है और निरस्त किये जाने के लायक है। पीठ में शामिल न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने अपना फैसला अलग लिखा है जिसमें उन्होंने बहुमत से अलग अपने विचार व्यक्त किये हैं।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी के बहुमत वाले फैसले को न्यायमूर्ति सीकरी ने पढ़ा। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि आधार कानून को पारित कराने के लिए राज्यसभा को दरकिनार करना एक प्रकार का धोखा है और इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 110 का उल्लंघन करने के लिये निरस्त कर दिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 110 में धन विधेयक के लिए विशेष आधार हैं। आधार कानून उससे आगे चला गया। इस कानून को मौजूदा स्वरूप में संवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने कहा कि महज कानून बना देने से केन्द्र की आधार योजना नहीं बच सकती है। मोबाइल फोन के जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन जाने और उसे आधार से जोड़ने को निजता, स्वतंत्रता, स्वायत्तता के लिए गंभीर खतरा बताते हुए न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़़ ने मोबाइल सेवा प्रदाताओं से कहा कि वे ग्राहकों का आधार डाटा नष्ट कर दें।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि धन शोधन निरोधक अधिनियम नियमावली इस धारणा पर आगे बढ़ती है कि हर खाता धारक धन शोधन करने वाला है। उन्होंने कहा कि यह धारणा कि हर व्यक्ति जो खाता खोलता है वह आतंकवादी या धन शोधन करने वाला है यह काफी कठोर है। उन्होंने कहा कि यूआईडीएआई ने स्वीकार किया है कि वह महत्वपूर्ण सूचनाओं को एकत्र और जमा करता है और यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है। इन आंकड़ों का व्यक्ति की सहमति के बगैर कोई तीसरा पक्ष या निजी कंपनियां दुरूपयोग कर सकती हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि आधार नहीं होने तक सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ नहीं देना नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि आधार योजना अपने अंदर की खामियों को दूर करने में असफल रही है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि निजी कंपनियों को आधार का इस्तेमाल करने की अनुमति देने से प्रोफाइलिंग हो सकती है जिसका इस्तेमाल नागरिकों की राजनैतिक राय को जानने में हो सकता है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि नागरिकों के डाटा का संग्रह किये जाने से नागरिकों की प्रोफाइलिंग हो सकती है। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने कहा कि आंकड़ों की मजबूत सुरक्षा के लिए नियामक प्रणाली मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा कि नागरिकों के डाटा की रक्षा के लिये यूआईडीएआई की कोई सांस्थानिक जवाबदेही नहीं है। 

उन्होंने कहा कि भारत में आधार के बिना जीना अब मुश्किल है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। यदि आधार को प्रत्येक डाटाबेस से जोड़ दिया जाये तो ऐसे में निजता के अधिकार के उल्लंघन की आशंका है। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़़ ने कहा कि संसद को कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन सुरक्षा की गैर मैजूदगी में यह विभिन्न अधिकारों के उल्लंघन का कारण बन सकता है।

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