मानवता और दुनिया की भलाई के लिए है आत्मनिर्भर भारत अभियान: नरेन्द्र मोदी
स्वामी चिदभवानंद तमिलनाडु के तिरूचिरापल्ली स्थित श्री रामकृष्ण तपोवन आश्रम के संस्थापक हैं। उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में 186 पुस्तकें लिखी हैं। भगवत् गीता पर मीमांसा उनकी प्रमुख कृतियों में शामिल है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पूरी दुनिया कोविड-19 की चुनौती का सामना कर रही है और इसका सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर भी दूरगामी प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा कि ऐसी परिस्थिति में गीता के दिखाए रास्ते और अहम हो जाते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘पिछले दिनों जब दुनिया को दवाइयों की जरूरत पड़ी तब भारत ने इसकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास किया। हमारे वैज्ञानिकों ने कम से कम समय में टीके का इजाद किया और अब भारत दुनिया को टीके पहुंचा रहा है।’’ इसे आत्मनिर्भर भारत का बेहतर उदाहरण बताते हुए उन्होंने कहा कि 130 करोड़ भारतीयों ने देश को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प ले लिया है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि ई-बुक्स युवाओं में विशेष रूप से लोकप्रिय हो रही हैं और ई-भगवत् गीता अधिक से अधिक युवाओं को गीता के महान विचार से जोड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘‘गीता हमें सोचने पर मजबूर करती है। यह हमें सवाल करने के लिए प्रेरित करती है। यह हमें चर्चा के लिए प्रोत्साहित करती है।’’The Gita makes us think. It inspires us to question. It encourages debate and keeps our minds open. Anybody who is inspired by Gita will always be compassionate by nature and democratic in temperament: PM Modi at launch of kindle version of Swami Chidbhavananda's Bhagavad Gita pic.twitter.com/NHsXVdXtBC
— ANI (@ANI) March 11, 2021
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युवाओं को गीता का अध्ययन करने का आह्वान करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भगवत् गीता पूरी तरह व्यवहारिक ज्ञान पर आधारित है। उन्होंने कहा, ‘‘गीता की शोभा उसकी गहराई, विविधता और लचीलेपन में है। आचार्य विनोबा भावे ने गीता को माता के रूप में वर्णित किया है। महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, महाकवि सुब्रमण्यम भारती जैसे महान लोग गीता से प्रेरित थे।’’ इस समारोह का आयोजन स्वामी चिदभवानंद की भगवत् गीता की पांच लाख प्रतियों की बिक्री के अवसर पर किया गया था। स्वामी चिदभवानंद तमिलनाडु के तिरूचिरापल्ली स्थित श्री रामकृष्ण तपोवन आश्रम के संस्थापक हैं। उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में 186 पुस्तकें लिखी हैं। भगवत् गीता पर मीमांसा उनकी प्रमुख कृतियों में शामिल है। तमिल में गीता पर उनकी टिप्पणी 1951 में और अंग्रेजी में 1965 में प्रकाशित हुई थी। इस पुस्तक का तेलुगू, उड़िया और जर्मन तथा जापानी भाषाओं में भी अनुवाद किया जा चुका है।
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