सदियों पुरानी प्रथा होने का अर्थ न्यायोचित होना नहींः SC

[email protected] । Jul 26 2016 5:14PM

उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा, ‘‘खेल (जल्लीकट्टू) के सदियों पुरानी होने भर से यह नहीं कहा जा सकता कि यह कानूनी या कानून के तहत अनुमति देने योग्य है।''''

उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि जल्लीकट्टू के महज सदियों पुरानी प्रथा होने के कारण इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की पीठ ने कहा कि अगर विभिन्न पक्ष अदालत को यह आश्वस्त करने में सक्षम हैं कि पहले का फैसला गलत था तो मामले को बड़ी पीठ के पास भेजा जा सकता है। पीठ ने कहा, ‘‘खेल (जल्लीकट्टू) के सदियों पुरानी होने भर से यह नहीं कहा जा सकता कि यह कानूनी या कानून के तहत अनुमति देने योग्य है। सदियों से 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की शादी होती थी। क्या इसका यह मतलब है कि बाल विवाह कानूनी है?’’

उच्चतम न्यायालय ने मामले पर अंतिम सुनवाई की तारीख 30 अगस्त तय की ताकि जल्लीकट्टू की संवैधानिक वैधता पर निर्णय किया जा सके। इसने कहा कि मामले में अंतिम सुनवाई शुरू होने के बाद इसमें कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा। सुनवाई के दौरान तमिलनाडु की तरफ से पेश हुए वकील ने कहा कि जल्लीकट्टू एक खेल है जो सदियों से खेला जा रहा है और यह राज्य में सदियों पुराने सांस्कृतिक क्रियाकलाप को दर्शाता है। उच्चतम न्यायालय ने 21 जनवरी को 2014 के फैसले पर पुनर्विचार करने से इंकार कर दिया था जिसके तहत देश में जल्लीकट्टू के लिए बैलों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

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