चंद्रशेखर आजाद रावण को अखिलेश दे सकते हैं एक सीट! जानिए दोनों के गठबंधन का बीएसपी पर होगा क्या असर
सियासी हलकों में यह कहा जाता है कि चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी का पश्चिमी यूपी के बॉर्डर से लगते जिलों में अच्छा प्रभाव है। इन जिलों में सहारनपुर, बिजनौर, बुलंदशहर और हाथरस जिलों का नाम लिया जाता है जहां रावण की पार्टी की पकड़ है।
उत्तर प्रदेश में चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही सीयासी पारा हर रोज चढ़ता जा रहा है। बीजेपी नेताओं में भगदड़ मची हुई है, वह बीजेपी का दामन छोड़ सपा का हाथ पकड़ रहे हैं। इसी बीच खबर आ रही है कि चंद्रशेखर आजाद रावण और अखिलेश यादव की भी एक मीटिंग चल रही है। माना जा रहा है कि अखिलेश यादव चंद्रशेखर रावण को एक सीट दे सकते हैं। ये सीट सहारनपुर की हो सकती है। यहां पर भीम आर्मी सबसे ज्यादा प्रभावशाली मानी जाती है। अगर अखिलेश यादव का गठबंधन चंद्रशेखर आजाद रावण के पार्टी के साथ होता है तो ये मायावती के जाटव वोटरों को सबसे ज्यादा मुतासिर करेगा।
सियासी हलकों में यह कहा जाता है कि चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी का पश्चिमी यूपी के बॉर्डर से लगते जिलों में अच्छा प्रभाव है। इन जिलों में सहारनपुर, बिजनौर, बुलंदशहर और हाथरस जिलों का नाम लिया जाता है जहां रावण की पार्टी की पकड़ है।
पश्चिमी यूपी में दलित वोटों का मैथमैटिक्स
पश्चिमी यूपी में 86 रिजर्व सीटें हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि अगर इन सीटों पर दलितों के साथ कोई एक वर्ग मिल जाए तो किसी भी पार्टी के हिस्से में एक बड़ा वोट बैंक आ जाता है। अगर अतीत में झांक कर देखे तो 2007 विधानसभा चुनाव में मायावती ने 86 में से 61 रिजर्व सीटों को जीतकर सत्ता हासिल की थी। 2012 में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा ने भी पश्चिमी यूपी की 86 रिजर्व सीटों में से 58 सीटें जीती और सरकार बनाई। वहीं अगर बात 2017 विधानसभा चुनाव की करें तो बीजेपी 86 में से 69 सीटें जीतकर सत्ता पर काबिज हुई। इस लिहाज से यह माना जा सकता है कि जो यहां की ज्यादा से ज्यादा रिजर्व सीटें जीतता है वह सियासी दल यूपी की सत्ता पर काबिज हो जाता है।
2017 के उपचुनाव में सपा आरएलडी थे पीछे
भीम आर्मी व उसके मुखिया चंद्रशेखर 2017 में सहारनपुर में हुई जातीय हिंसा के बाद चर्चा में आए और अपनी किस्मत सियासत में भी आजमाने उतरे। पिछले साल बुलंदशहर में जो उपचुनाव हुए उसमें आजाद समाज पार्टी ने भी अपना उम्मीदवार उतारा था। आपको यह जानकर और भी हैरानी होगी कि आजाद समाज पार्टी के इस उम्मीदवार ने एसपी और आरएलडी को पीछे छोड़ते हुए नंबर 3 पर जगह बनाई थी। चंद्रशेखर और उनकी पार्टी का दलितों में अच्छा प्रभाव है।
अखिलेश के साथ बन सकती है बात
सूत्रों के मुताबिक अखिलेश के साथ चंद्रशेखर आजाद रावण पहले भी मिल चुके हैं। चंद्रशेखर आजाद रावण ने सार्वजनिक तौर पर यह कहा था कि वह बीएसपी के साथ जुड़ना चाहते हैं। पर मायावती ने किसी भी सियासी दल के साथ गठबंधन से इकांर कर दिया है। दरअसल सियासी जानकारों की माने तो चंद्रशेखर आजाद रावण का उभार मायावती और बसपा के लिए खतरे की घंटी भी है। फिलहाल अखिलेश यादव भी छोटे दलों को जोड़कर चुनाव में अपने जातीय गणित को मजबूत कर रहे हैं। ऐसे में चंद्रशेखर का साथ सपा को दलित व मुस्लिम दोनों वोटों का फायदा दिला सकता है।
चंद्रशेखर दलित वोटरों को लेकर यह भी कहते हैं कि वोटर किसी के गुलाम नहीं है। आजादी के वक्त यह कांग्रेस के साथ रहा। रामविलास पासवान, जगजीवन राम, कांशी राम और बहन जी के साथ भी दलित वोटर रहा। वह कहते हैं दलितों को हमेशा लड़ने वाला नेता पसंद आता है। चंद्रशेखर आजाद रावण बहुजन समाज को सर्वोपरि मानते हैं।
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