गोवा में पार्टी के लिए तारणहार बने अमित शाह और नितिन गडकरी

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[email protected] । Mar 19 2019 6:30PM

सोमवार सुबह तक इन तीनों नामों को लेकर कई दौर की बातचीत हुई पर वे सब बेनतीजा ही रहीं। समय तेजी से बीत रहा था और अब कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा पेश करके भाजपा की पेशानी पर और बल डाल दिये।

पणजी। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद सत्ता की कुंजी भाजपा को दोबारा मिलने की कहानी में पर्दे के पीछे के नायक द्वय भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी रहे हैं। घटनाक्रम से अवगत सूत्रों ने यह जानकारी दी। पार्टी सूत्रों ने मंगलवार को बताया कि नयी सरकार के गठन में अवरोध उभर आये थे। भाजपा के सहयोगी दलों के अड़ियल रवैये से गतिरोध बनता दिखता रहा था। इन सहयोगी दलों की कोशिश थी कि अधिक से अधिक फायदा हासिल कर लिया जाए। पर अंतत: इन दो वरिष्ठ नेताओं ने अपने तजुर्बे और कौशल से मैदान मार ही लिया। पार्टी सूत्रों ने मंगलवार को यह जानकारी दी। गौरतलब है कि साल 2017 में जब भाजपा विधानसभा चुनावों में बहुमत पाने से पिछड़ गई तो ऐसे कठिन समय में गडकरी तारणहार बन कर यहां पहुंचे और इस तटीय राज्य में छोटे दलों को अपने पाले में करने में सफल रहे। उनकी इसी सूझबूझ की वजह से भाजपा की सरकार बनी और पार्रिकर के सिर पर नेतृत्व का सेहरा बंधा। 

पार्टी सूत्रों ने कहा कि भाजपा ने पहले ही भांप लिया था कि पर्रिकर के चले जाने से राज्य में संकट उभरेगा ही। इसकी वजह यह थी कि छोटे दलों के साथ हुआ गठबंधन इस बात पर ही टिका था कि पर्रिकर सरकार के खिवैया बनें। अग्नाशय के कैंसर से जूझ रहे पर्रिकर ने जब रविवार को अंतिम श्वांस ली तो भगवा पार्टी तुरंत ही सक्रिय हो गई। उधर सहयोगी महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के विधायक बैठक करने के लिए एकत्र होने लगे थे। भाजपा के दूसरे सहयोगी दल गोवा फारवर्ड पार्टी (जीएफपी) के विजय सरदेसाई अपने पार्टी के सदस्यों के साथ और निर्दलीय विधायकों ने भी बैठक शुरू कर दी। जब यह तय हो गया कि नेतृत्व बदला जायेगा तो भाजपा ने राज्य की सियासी नब्ज को पहचानने वाले गडकरी को भेजा। उनसे कहा गया कि वे राज्य में पार्टी की निजामत बने रहने के लिए हर दांव तैयार रखें। सूत्रों ने बताया कि गडकरी सरकार का समर्थन कर रहे हर एक विधायक से बात करने में पूरी रात व्यस्त रहे लेकिन मतैक्य नहीं उभर पा रहा था। दरअसल बात यह थी कि भाजपा प्रमोद सावंत के नाम को आगे बढ़ाना चाह रही थी पर एमजीपी के सुदीन धावलिकर ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपना नाम आगे सरका कर समस्या खड़ी कर दी। मामला काबू से बाहर होता उस समय नजर आया जब जीएफपी और अन्य लोगों ने मुख्यमंत्री पद के लिए विश्वजीत राणे का नाम उछाल दिया।

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सोमवार सुबह तक इन तीनों नामों को लेकर कई दौर की बातचीत हुई पर वे सब बेनतीजा ही रहीं। समय तेजी से बीत रहा था और अब कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा पेश करके भाजपा की पेशानी पर और बल डाल दिये। अब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बातचीत की बागडोर संभाली और अपने विधायकों और एमजीपी विधायकों के साथ एक होटल में बैठक की और उसके बाद राज्य में कमल एक बार फिर खिलना तय हो गया। सभी दल इस बात पर सहमत हो गये कि सावंत ही नए मुख्यमंत्री और सरदेसाई एवं धावलिकर उपमुख्यमंत्री होंगे। भाजपा को उम्मीद थी कि सावंत रात नौ बजे शपथ ले लेंगे लेकिन अंतिम समय में गाड़ी एक फिर खटक गई। गडकरी ने ऐसे संकट में बातचीत की कमान संभाली और साझा न्यूनतम कार्यक्रम और सत्ता में भागीदारी पर सहयोगी दलों को रिझा कर ही माने। और अंतत: रात डेढ़ बजे भाजपा के नेतृत्व वाला गठबंधन राजभवन की ओर रवाना हो गया जहां उन्होंने राज्यपाल के सामने सरकार बनाने का दावा पेश किया और कुछ मिनटों बाद सावंत और 11 मंत्रियों को शपथ दिला कर सारे घटनाक्रमों का पटाक्षेप कर दिया गया। 

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