राहुल गांधी के निजी विदेशी दौरे क्या कांग्रेस की सियासत को पहुँचा रहे हैं?

 Rahul Gandhi

लेकिन क्या राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में आने के बाद कुछ भी निजी रह जाता है शायद नहीं। लेकिन कांग्रेस और राहुल गांधी इस बात को समझने में बार-बार नाकाम हो रहे हैं क्या? यह सवाल तो पूछा जाना चाहिए। सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में कदम रखने के बाद कुछ भी निजी नहीं रह जाता।

राजनीतिक गलियारों में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर जहां एक तरफ सियासी पारा चढ़ता जा रहा है। तमाम पार्टियां हर वह दांव पेच आजमाने में लगी है जो उन्हें इन चुनावों में एक बार फिर सत्ता दिला सकता है। ऐसे वक्त में कांग्रेस नेता राहुल गांधी का नया साल मनाने के लिए विदेश चले जाना सवाल तो खड़ा करता ही है। वैसे यह पहली बार नहीं हुआ है जब राहुल अहम मौकों पर विदेश यात्रा पर निकल गए हो। अतीत में कई ऐसे महत्वपूर्ण मौके आए जब राहुल गांधी विदेशी यात्रा पर थे। खैर राहुल गांधी के विदेश जाने पर कांग्रेस को उनका बचाव तो करना ही था, कांग्रेस ने किया भी ऐसा ही। कांग्रेस की तरफ से ट्वीट कर कहा गया राहुल गांधी संक्षिप्त निजी दौरे पर हैं। बीजेपी और उनके मीडिया मित्रों को अनावश्यक अफवाह नहीं चलानी चाहिए। आपको बता दें कि, राहुल गांधी के छुट्टियों पर जाने को लेकर कांग्रेस पहले भी इसी तरह बचाव करती रही है। जब राहुल गांधी के इस दौरे को लेकर विवाद उपजा तो पार्टी के नेता यही कहते नजर आए कि, यह राहुल गांधी का निजी दौरा है और इस पर सियासत नहीं होनी चाहिए।

 लेकिन क्या राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में आने के बाद कुछ भी निजी रह जाता है शायद नहीं। लेकिन कांग्रेस और राहुल गांधी इस बात को समझने में बार-बार नाकाम हो रहे हैं क्या? यह सवाल तो पूछा जाना चाहिए। सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में कदम रखने के बाद कुछ भी निजी नहीं रह जाता। किसी भी पार्टी के नेता क्या कदम उठाते हैं इस पर सबकी नजर रहती है। अगर राजनीति में सबकी नजर नहीं रहती तो, 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद गृह मंत्री शिवराज पाटिल के बार-बार सूट बदलने को लेकर विवाद नहीं होना चाहिए था। शिवराज पाटिल भी तब यही तर्क देते थे कि, व्यक्ति कब कहां कौन से कपड़े पहनेगा यह उसका निजी मामला है। उनके इस तर्क का भी कोई असर नहीं पड़ा।

 राहुल के दौरे से, कांग्रेस को होता नुकसान

 दरअसल अहम मौकों पर जब पार्टी का कोई नेता विदेश छुट्टियां मनाने चला जाए, तो इससे उसकी छवि को तो नुकसान पहुंचता ही है। यह बात पार्टी पर भी असर डालती है। क्योंकि हम सब जानते हैं की सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में नेता जो कुछ भी करते हैं उससे जनधारणा बनती है। ऐसे में राहुल गांधी का चुनाव के मौके पर यूं छुट्टी पर चले जाने से बहुत हद तक यह मुमकिन है कि, लोग यह मान लें कि राहुल गांधी चुनावों को लेकर संजीदा नहीं है। जब लोगों के मन में यह धारणा आ जाती है तो लोग तुलना दूसरे दलों के नेताओं के साथ करना शुरू कर देते हैं जो 24 घंटे और हफ्तों के सातों दिन जनता के कामों में मशरूफ होते हैं।

 शिवानंद तिवारी ने भी उठाया था सवाल

 राहुल गांधी की छुट्टियों को लेकर बिहार में कांग्रेस की सहयोगी राजद के नेता शिवानंद तिवारी ने भी कहा था कि, जब बिहार में चुनाव जोरों पर था तो राहुल गांधी प्रियंका गांधी के घर शिमला में पिकनिक मना रहे थे। क्या ऐसे कोई पार्टी चलाई जा सकती है? उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी राहुल गांधी से उम्र में बड़े हैं लेकिन उन्होंने राहुल गांधी से ज्यादा रैलियां की। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा था कि, राहुल गांधी ने बस 3 रैलियां क्यों की? यह दिखाता है कि बिहार इलेक्शन को लेकर कांग्रेस गंभीर नहीं थी। शिवानंद तिवारी का यह बयान इस लिहाज से भी बहुत अहम था कि बिहार में कांग्रेस राजद की सहयोगी है। और ऐसा बयान अपनी ही सहयोगी पार्टी की ओर से आया है, तो सोचिए विरोधी पार्टी का इस पर रुक क्या हो सकता है।

 कांग्रेस के नेता हमेशा राहुल गांधी के बचाव में यह कहते हैं कि, जिन लोगों को राहुल गांधी का विरोध करना है वह तो विरोध करेंगे ही। चाहे राहुल गांधी छुट्टियों पर जाएं या ना जाएं। लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस को यह समझना होगा कि राजनीतिक जीवन में कुछ भी निजी नहीं होता। राजनीतिक जीवन में आपके उठाए हर एक कदम से आप के पक्ष या आपके खिलाफ में एक जनधारणा बनती है। आखिर में यह बताने की जरूरत किसी को भी नहीं है कि, राजनीति में अगर सबसे अहम कुछ है तो वह है जनधारणा। जनधारणा ही सियासत में निर्णायक साबित होती है।

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