अटल एक हैं और एक ही रहेंगे, ना हार मानी है ना हार मानेंगे

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अंकित सिंह । Aug 16 2018 1:30PM

आज जननेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भले ही जिंदगी और मौत के बीच की जंग लड़ रहे हैं पर भारतीय राजनीति के वो ऐसे राजनेता है जिनका स्थान ले पाना किसी के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।

आज जननेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भले ही जिंदगी और मौत के बीच की जंग लड़ रहे हैं पर भारतीय राजनीति के वो ऐसे राजनेता है जिनका स्थान ले पाना किसी के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। पत्रकारिता के जरिए राजनीति में एंट्री लेने वाले वाजपेयी जी धीरे-धीरे हर दिल अजीज़ बन गए। तथाकथित सेक्यूलरों के बीच अछूत मानी जाने वाली RSS के वो पहले ऐसे प्रचारक थे जो देश की सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे। इतना ही नहीं वो भारतीय राजनीति के ऐसे पहले शख्स थे जो गैर कांग्रेसी होने के बाद भी अपने 5 पांच साल के कार्यकाल को प्रधानमंत्री के तौर पर पूरा किया था। आज भाजपा को आंख दिखाने वाली पार्टियां उस वक्त उनके साथ थी जैसे कि TMC, BJD, NC, TDP आदि। 

वाजपेयी जी एक बार ही नहीं बल्क 3 बार प्रधानमंत्री के रूप में इस देश की सेवा की है। देश के पहले गैस कांग्रेसी सरकार में वो विदेश मंत्री जैसे पद को संभाला जिसका नेतृत्व मोरारजी देसाई कर रहे थे। उसके अलावा जब 1991 में नरसिम्हा राव की कांग्रेस की सरकार बनी तो उन्होंने वाजपेयी जी UN में भारत का प्रतिनिधि बना कर भेजा। नरसिम्हा राव, HD देवगौड़ा, IK गुजराल जैसे गैर कांग्रेसी नेता भी वाजपेयी जी को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।  

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