रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस में आज की सुनवाई हुई पूरी, जानें प्रमुख बातें

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अभिनय आकाश । Aug 20 2019 6:25PM

अयोध्या केस में अब तक पहले और दूसरे दिन सर्वोच्च अदालत में निर्मोही अखाड़ा और रामलला के वकीलों ने अपने दलील रखी थी। जबकि तीसरे दिन राम लला की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरन ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष दलीलें पेश की थी।

रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले पर सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई हो रही है। उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या मामले में आठवें दिन की सुनवाई शुरू की। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली, पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ‘राम लला विराजमान’ के वकील सी.एस वैद्यनाथन की दलीलें सुननी शुरू की। राम लला विराजमान’ के वकील ने ‘एएसआई’ की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि अयोध्या में मस्जिद का निर्माण करने के लिए हिंदू मंदिर गिराया गया। वरिष्ठ अधिवक्ता सी.एस वैद्यनाथन ने अदालत में कहा कि ‘एएसआई’ की रिपोर्ट में मगरमच्छ और कछुए की आकृतियों का जिक्र है, जिसका मुस्लिम संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली, पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष उन्होंने ‘एएसआई’ की रिपोर्ट से अन्य पुरातात्विक साक्ष्यों का हवाला देते हुए विवादित क्षेत्र में हिन्दू मंदिर होने के दावों को पुख्ता करने की कोशिश की।

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सीएस वैद्यनाथन ने कोर्ट में पाञ्चजन्य के एक रिपोर्टर की रिपोर्ट को पढ़कर कहा कि जब 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया तो जो स्लैब वहां से गिर रही थीं, उनमें संस्कृत भाषा में कुछ लिखा हुआ था। रिपोर्टर ने इसकी तस्वीर भी खींची थी, बाद में पुलिस ने उन स्लैब को जब्त कर लिया था। रामलला के वकील के इस दावे पर जस्टिस बोबडे ने पूछा कि वो स्लैब कहां मिले थे? 

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रामलला के वकील वैद्यनाथन ने कहा- एक मुस्लिम गवाह ने कहा कि हिंदुओं का मानना है कि जन्मस्थान पर भगवान राम का जन्म हुआ और इसलिए उसकी पूजा करते हैं। मुस्लिम गवाह मुहम्मद यसीन ने कहा कि उसने मस्जिद में आखरी बार नमाज़ पढ़ी। उसने पढ़ते समय देखा था कि उन पत्थरों पर कमल और दूसरी तस्वीर है। जिस पर जस्टिस बोबडे ने पूछा कि वह गवाह शिया था या सुन्नी?वैद्यनाथन ने जवाब दिया वह गवाह सुन्नी था। रामलला के वकील CS वैद्यनाथन ने कहा- एक मुस्लिम गवाह ने कहा था कि अगर मंदिर गिराकर मस्जिद बनाया गया होता तो मुस्लिम उसको मस्जिद नही मानेंगे. मस्जिद ज़बरदस्ती कब्ज़े में ली गई जमीन पर नही बनाई जा सकती है। दिगंबर अखाड़ा के महंत रामचंद्र दास के बयान में कहा गया कि 1934 में जब अयोध्या आए तब वहां दंगे हो रहे थे।

इससे पहले सोमवार को सुनवाई का आठवां दिन था। लेकिन सुनवाई शुरू होने से कुछ मिनट पहले अदालत के कर्मचारियों ने दोनों पक्षों के वकीलों को बताया कि न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे आज मौजूद नहीं हैं। इसलिए मंगलवार को मामला आगे बढ़ा दिया गया। आज रामलला विराजमान के वकील सीएस. वैद्यनाथन एक बार फिर अदालत में अपनी दलील पेश करेंगे। बता दें कि 6 अगस्त से इस मामले को सर्वोच्च अदालत में रोजाना यानी हफ्ते में पांच दिन सुना जा रहा है। 

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अयोध्या केस में अब तक पहले और दूसरे दिन सर्वोच्च अदालत में निर्मोही अखाड़ा और रामलला के वकीलों ने अपने दलील रखी थी। जबकि तीसरे दिन राम लला की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरन ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष दलीलें पेश की थी।चौथे दिन मुस्लिम पक्षकारों में से एक की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने हफ्ते में 5 दिन सुनवाई का किया विरोध किया। सीनियर एडवोकेट आर धवन का कहना है कि अगर हफ्ते में 5 दिन सुनवाई होती है तो यह अमानवीय है और हम अदालत की सहायता नहीं कर पाएंगे। सुनवाई के माध्यम से नहीं पहुँचा जा सकता और मुझे यह केस छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। जबकि छठे दिन सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान से जमीन पर कब्जे के सबूत पेश करने को कहा है। संविधान पीठ ने कहा कि आप सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे को नकार रहे हैं, आप अपने दावे को कैसे साबित करेंगे। इस पर रामलला के वकील वैद्यनाथन ने कहा कि ये हमारा नजरिया है, अगर कोई दूसरा पक्ष उसपर दावा करता है तो हम डील कर लेंगे।

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लेकिन हमारा मानना है कि स्थान देवता है और देवता का दो पक्षों में सामूहिक कब्जा नहीं दिया जा सकता। वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने हिंदू पक्ष की दलील पर ऑब्जेक्शन करते हुए हुए कहा कि अभी तक अदालत में कोई साक्ष्य पेश नहीं किया गया। सभी दलीलें केवल इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय पर आधारित हैं। जिस पर सीजेआई ने नाराजगी जताते हुए कहा कि वह मुस्लिम पक्षों का प्रतिनिधित्व करें. दूसरे पक्ष की बहस में बाधा न डालें। सीजेआई ने कहा- हम यह साफ कर देने चाहते है कि हमे कोई जल्दी नहीं है, इस मामले में सभी पक्षों को जिरह का पूरा मौका मिलेगा। वैद्यनाथन ने कहा कि हाई कोर्ट के तीनों जज भी इसको लेकर एक राय थे कि विवादित जमीन पर कभी भी मुस्लिम पक्ष का एकाधिकार नहीं रहा और तीनों ने वहां मंदिर की मौजूदगी को माना था। हालांकि जस्टिस एस यू खान की राय थोड़ा अलग थी, पर उन्होंने भी पूरी तरह से मंदिर की बात को खारिज नहीं किया था।

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