अयोध्या मामले में निर्मोही अखाड़ा से बोले CJI: अपनी बात पूरी करें, हम जल्दबाजी में नहीं

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अभिनय आकाश । Aug 6 2019 7:58PM

पीठ ने तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट पर दो अगस्त को संज्ञान लिया था कि करीब चार महीने तक चली मध्यस्थता की कार्यवाही में कोई अंतिम समाधान नहीं निकला। मध्यस्थता पैनल की अध्यक्षता शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला कर रहे थे।

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले में मंगलवार को सुनवाई शुरू की।  इस मामले को मध्यस्थता के जरिए सुलझाने के प्रयास विफल रहने के बाद अब इसमें रोजाना सुनवाई होगी।  प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा, “चलिए हम सुनवाई शुरू करते हैं।” इस पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं।

पीठ ने तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट पर दो अगस्त को संज्ञान लिया था कि करीब चार महीने तक चली मध्यस्थता की कार्यवाही में कोई अंतिम समाधान नहीं निकला।  मध्यस्थता पैनल की अध्यक्षता शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला कर रहे थे।चीफ जस्टिस ने बहस शुरू होते ही कहा कि सबसे पहले स्टेटस और लोकस पर दलीलें रखी जाएं. जिसके बाद सुशील जैन ने अपनी बात कहनी शुरू की। निर्मोही अखाड़े की तरफ से सुशील जैन ने आंतरिक कोर्ट यार्ड पर मालिकाना हक का दावा किया. उन्होंने कहा कि सैकड़ों वर्षों से इस जमीन और मन्दिर पर अखाड़े का ही अधिकार और कब्ज़ा रहा है, इस अखाड़े के रजिस्ट्रेशन से भी पहले से ही है। निर्मोही अखाड़े की तरफ से कहा गया है कि सदियों पुराने रामलला की सेवा पूजा और मन्दिर प्रबंधन के अधिकार को छीन लिया गया है।

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निर्मोही अखाड़े ने अदालत को बताया कि 1961 में वक्फ बोर्ड ने इस पर दावा ठोका था. लेकिन हम ही वहां पर सदियों से पूजा करते आ रहे हैं, हमारे पुजारी ही प्रबंधन को संभाल रहे थे। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि हमारे सामने वहां के स्ट्रक्चर पर स्थिति को साफ करें. चीफ जस्टिस ने पूछा कि वहां पर एंट्री कहां से होती है? सीता रसोई से या फिर हनुमान द्वार से? इसके अलावा CJI ने पूछा कि निर्मोही अखाड़ा कैसे रजिस्टर किया हुआ? 

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निर्मोही अखाड़े ने कहा कि 16 दिसंबर 1949  को आखिरी बार जन्मभूमि पर बनाई गई मस्जिद में नमाज़ पढ़ी गई थी। जिसके बाद 1961 में वक्फ बोर्ड ने अपना दावा दाखिल किया था। चीफ जस्टिस ने कहा कि ट्रायल कोर्ट में जज ने कहा है कि मस्जिद से पहले किसी तरह के ढांचे का कोई सबूत नहीं है। इस पर जवाब देते हुए निर्मोही अखाड़े के वकील ने कहा कि अगर उन्होंने इसे ढहा दिया तो इसका मतलब ये नहीं है कि वहां पर कोई निर्माण नहीं था। निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि पूरी जमीन अखाड़े के पास ही है, इस पर मुस्लिम पक्ष का दावा गलत है। निर्मोही अखाड़ा के वकील ने 1850 से ही हिंदू पक्ष द्वारा उस स्थान पर पूजा किए जाने की बात अदालत के समक्ष कही। जिसके बाद निर्मोही अखाड़े की तरफ से इलाहाबाद हाईकोर्ट के कुछ जवाबों को रखा जा रहा था, वकील ने कहा था कि वह पहले उनका पक्ष बताएंगे फिर अपनी बात को आगे रखेंगे। जिसपर चीफ जस्टिस ने कहा कि ये आपका केस है, अपनी बात पूरी करें। हम जल्दबाजी में नहीं हैं।

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