अंतिम चरण की लड़ाई ईश्वर चंद्र विद्यासागर पर आई, जानिए आखिर हैं कौन?

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अभिनय आकाश । May 15 2019 1:34PM

ईश्वरचंद्र विद्यासागर का नाम बंगाल के समाज सुधारकों में अग्रणी रूप से लिया जाता है। नौकरी से अवकाश लेने के बाद भी उन्होंने महिलाओं की स्थिति सुधारने की ओर विशेष ध्यान दिया।

एक नाम एक किरदार में तब्दील में हो जाता है तो कहानी बन जाती है। कुछ कहानी कुछ सेंकेड जीती है तो कुछ महीनों कुछ साल और कुछ मिसाल बनकर लोगों को प्रेरणा देती है। ऐसा ही एक कहानी की इबादत आज से 153 साल पूर्व लिखी गई थी और जिसके शिल्पकार बने थे महान दार्शनिक, समाज सुधारक और लेखक ईश्वर चंद्र विद्यासागर। वही ईश्वर चंद्र विद्यासागर जिनको लेकर वर्तमान दौर में बंगाल से दिल्ली दरबार तक युद्ध का एक मचान तन गया है। कोलकाता में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान हुई हिंसा के दौरान दार्शनिक और लेखक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने से सियासी गलियारों में बवाल मचा है। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने विद्यासागर की फोटो को अपने फेसबुक और ट्विटर का प्रोफाइल पिक्चर बनाया है। टीएमसी ने इस मूर्ति को तोड़ने का आरोप भाजपा पर लगाया है।

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शाह की रैली से पहले हुई इस हिंसा के लिए टीएमसी और भाजपा एक-दूसरे पर लगातार आरोप लगा रहे हैं। भाजपा ने इस मामले की शिकायत चुनाव आयोग से की है और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी प्रेस कांफ्रेस कर ममता सरकार पर निशाना भी साधा है। जिस ईश्वर चंद्र विद्यायागर को लेकर राजनीतिक पार्टियों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है आइए भारतीय इतिहास में ईश्वर चंद्र विद्यासागर के स्थान पर एक नजर डालते हैं।

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कौन हैं ईश्वर चंद्र विद्यासागर

एक महिला का जीवन जद्दोजहद और संघर्ष से भरा होता है। आज भी समाज में विधवाओं को वो दर्जा नहीं मिल पाता जिसकी वह हकदार हैं। सामान्य औरतों की तरह वह समाज में चैन नहीं रह पाती हैं। जैसे मानों पति के मृत्यू की जिम्मेदार वह ही हो। लेकिन समाज की मानसिकता को बदलने और विधवाओं के दर्द की आवाज बनकर उभरे ईश्वर चंद्र विद्यासागर। जिनकी तमाम कोशिशों के बाद विधवा-पुनर्विवाह कानून बना। मेधावी बुद्धि के ईश्वर चंद्र विद्यासागर के बारे में कहा जाता है कि एक बार जो चीज वे पढ़ लेते थे, उसे कभी भूलते नहीं थे। पिछले करीब दो सौ वर्षों से बंगाल में बच्चों को ईश्वरचंद्र विद्यासागर की लिखी पुस्तक ‘वर्ण परिचय’ से ही अक्षर ज्ञान मिल रहा है। उनकी विधिवत शिक्षा संस्कृत में हुई थी, लेकिन अंग्रेजी विषय पर भी उनकी पकड़ गहरी थी। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी में विभिन्न विषयों पर 50 पुस्तकों की रचना की। वर्ष 1880 में संस्कृत के विद्वानों ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें विद्यासागर की उपाधि से सम्मानित किया था। ईश्वरचंद्र विद्यासागर का अधिकांश समय शिक्षक के रूप में बीता। वे पहले फोर्ट विलियम कॉलेज और उसके बाद संस्कृत कॉलेज में शिक्षक रहे। इस कॉलेज में वे लंबे अर्से तक प्रिंसिपल भी रहे। ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने  बंगाल में कुछ समय के लिए स्कूल इंस्पेक्टर के पद पर भी काम किया था। इस दौरान राज्य में स्कूलों का बहुत प्रसार हुआ। खासकर महिलाओं के लिए अलग से स्कूल खोले गए।

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ईश्वरचंद्र विद्यासागर का नाम बंगाल के समाज सुधारकों में अग्रणी रूप से लिया जाता है। नौकरी से अवकाश लेने के बाद भी उन्होंने महिलाओं की स्थिति सुधारने की ओर विशेष ध्यान दिया। बंगाल में उस समय विधवाओं की स्थिति बड़ी खराब थी। ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने शास्त्रों के प्रमाण देकर विधवा विवाह का समर्थन किया। यह तत्कालीन समाज के लिए क्रांतिकारी कदम कहा गया। विधवा विवाह का समर्थन करने पर जब कुछ लोगों ने विद्यासागर का विरोध किया तो उन्होंने अपने एकमात्र बेटे का विवाह एक विधवा से कराकर समाज के सामने नजीर पेश की। महिलाओं को दूसरा जीवन देने वाले ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने 29 जुलाई 1891 में दुनिया को अलविदा कह दिया हो लेकिन वर्तमान दौर में भी हर विधवा महिला के चेहरे की मुस्कान को देखकर उन्हें स्मरण किया जा सकता है। 

 

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