बिहार आश्रयगृह: कोर्ट ने सरकार के आचरण को शर्मनाक कहा, CBI जांच की हिमायत की
पीठ ने कहा, ‘‘हमारा यही मानना है कि राज्य पुलिस अपेक्षा के अनुरूप अपना काम नहीं कर रही है। हम चाहेंगे कि सीबीआई इन आरोपों की जांच करे।
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बिहार के कई आश्रय गृहों में बच्चों के शारीरिक और यौन शोषण के आरोपों के बावजूद उचित कार्रवाई नहीं करने पर राज्य सरकार के आचरण को मंगलवार को ‘बहुत ही शर्मनाक’ और ‘अमानवीय’ करार दिया। न्यायालय ने ऐसे मामलों में केन्द्रीय जांच ब्यूरो से जांच कराने की हिमायत की है। न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने तल्ख शब्दों में कहा कि ऐसे अपराध करने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के मामले में सरकार का रवैया ‘बहुत ही नरम’ और ‘पक्षपातपूर्ण’ रहा है। पीठ ने बिहार सरकार से सवाल किया कि क्या ये बच्चे इस देश के नागरिक नहीं हैं?
Supreme Court says, “What are you (Bihar govt) doing? It’s shameful. If the child is sodomised you say it’s nothing? How can you do this? It’s inhuman. We were told that matter will be looked with great seriousness, this is seriousness? Every time I read this file it’s tragic.” https://t.co/jRTxusLQfK
— ANI (@ANI) November 27, 2018
शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार की ओर से पेश वकील से सवाल किया कि आश्रय गृहों में बच्चों के साथ अप्राकृतिक अपराध के आरोपों के बावजूद ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं की गयीं? पीठ ने राज्य सरकार के वकील से कहा, ‘‘आप क्या कर रहे हैं? यह बहुत ही शर्मनाक है। आपने विस्तृत हलफनामा (न्यायालय में) दाखिल किया होगा परंतु यदि किसी बच्चे के साथ अप्राकृतिक अपराध किया गया है तो आप यह नहीं कह सकते कि यह कुछ नहीं है। आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? यह अमानवीय है।’’।इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति गुप्ता ने आरोपों और उनसे निबटने की पुलिस की कार्यशैली पर टिप्पणी करते हुये कहा , ‘‘हर बार जब मैं यह फाइल पढ़ता हूं, मैं मामले की त्रासदी से रूबरू होता हूं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘हमारा यही मानना है कि राज्य पुलिस अपेक्षा के अनुरूप अपना काम नहीं कर रही है। हम चाहेंगे कि सीबीआई इन आरोपों की जांच करे। मुजफ्फरपुर आश्रय गृह कांड की जांच कर रही सीबीआई का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने कहा कि वह बुधवार तक इस बारे में आवश्यक निर्देश प्राप्त करेंगे। इस आश्रय गृह में अनेक महिलाओं और लड़कियों का कथित रूप से बलात्कार और यौन शोषण हुआ था। सीबीआई इस प्रकरण की जांच कर रही है।पीठ ने जांच ब्यूरो के वकील से कहा, ‘‘आप निर्देश प्राप्त कर लीजिये। आपको (सीबीआई) इन सबकी जांच करनी हेगी। ऐसा लगता है कि इसमें और भी बहुत कुछ है। इसके साथ ही न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई बुधवार के लिये सूचीबद्ध कर दी।
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बिहार सरकार के वकील ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि सरकार इस मामले में सभी उचित कदम उठायेगी और वह अपनी सभी गलतियों को सुधारेगी।याचिकाकर्ता फौजिया शकील की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफडे ने दावा किया कि राज्य सरकार इन मामलों में ‘नरम’ रूख अपना रही है और इन मामलों में कम गंभीर अपराध के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी हैं। ।नफडे ने टिस की रिपोर्ट का जिक्र करते हुये कहा कि आश्रय गृहों में कई बच्चों के साथ दुराचार किया गया है और इनमें भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत मामला बनता है।बिहार के वकील ने जब यह कहा कि प्राथमिकी में पोक्सो के प्रावधानों को शामिल किया गया है तो पीठ ने कहा, ‘‘यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गयी हो और प्राथमिकी सिर्फ मामूली चोट का जिक्र करे तो आपको क्या लगता है कि इसे हम स्वीकार करेंगे।’’
इस पर राज्य सरकार के वकील ने कहा कि वह सुनिश्चित करेंगे की दर्ज प्राथमिकी में धारा 377 भी जोड़ी जाये।पीठ ने सरकार के वकील से कहा, ‘‘अपने मुख्य सचिव (जो न्यायालय में मौजूद थे) से पूछिये। हमें पहले बताया गया था कि सरकार पूरी गंभीरता से मामलों पर गौर करेगी और यह गंभीरता आप दिखा रहे हैं। यह विडंबना है।’’।पीठ ने कहा, ‘‘बिहार सरकार का यह रवैया है।’’ पीठ ने शुरू में राज्य सरकार के वकील से कहा कि 24 घंटे के भीतर इन मुद्दों को ठीक किया जाये। बाद में, पीठ की राय थी कि इन सभी मामलों की जांच सीबीआई को करनी चाहिए क्योंकि यदि राज्य पुलिस इनकी जांच करती रहेगी तो सच्चाई कभी भी सामने नहीं आयेगी।
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न्यायालय ने कहा कि टिस की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 17 आश्रय गृहों में गंभीर किस्म के आरोप लगे हैं। राज्य सरकार के वकील ने जब यह कहा कि सात आश्रय गृह बेहतर स्थिति में मिले हैं तो पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘करीब 110 आश्रय गृहों में से सात आश्रय गृह। क्या आप बच्चों के प्रति कोई उपकार कर रहे हैं? सभी आश्रय गृह बेहतर क्यों नहीं हो सकते? आपको ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए? क्या ये बच्चे इस देश के नागरिक नहीं हैं?’’ राज्य सरकार के हलफनामे का अवलोकन करने के बाद पीठ ने सवाल किया कि सिर्फ पांच बाल देखभाल संस्थानों से संबंधित मामलों में ही प्राथमिकी क्यों दायर की गयी जबकि ऐसी नौ संस्थायें थीं। पीठ ने कहा कि राज्य सरकार का रवैया पक्षपातपूर्ण है।
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