लोकसभा में भारतीय वन संशोधन विधेयक 2017 पेश

Bill to amend Indian Forest Act tabled in Lok Sabha

लोकसभा में भारतीय वन संशोधन विधेयक 2017 पेश किया गया जिसमें कटाई और एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिये गैर वन क्षेत्र में उगे हुए बांस को छूट प्रदान करने के वास्ते कानून में वृक्ष की परिभाषा से ‘‘बांस’’ शब्द का लोप किया जाने का प्रस्ताव किया गया है।

नयी दिल्ली। लोकसभा में भारतीय वन संशोधन विधेयक 2017 पेश किया गया जिसमें कटाई और एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिये गैर वन क्षेत्र में उगे हुए बांस को छूट प्रदान करने के वास्ते कानून में वृक्ष की परिभाषा से ‘‘बांस’’ शब्द का लोप किया जाने का प्रस्ताव किया गया है। लोकसभा में भारतीय वन संशोधन विधेयक 2017 को वन एवं पर्यावरण मंत्री डा. हर्षवर्द्धन ने रखा। बीजद सदस्य भतृहरि माहताब ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इस विधेयक के माध्यम से वन अधिनियम में संशोधन किया गया है जो बासों के अंतरराज्यीय परिवहन के विषय से जुड़ा हुआ है। इस विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि बांस को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाने के लिये अब राज्य सरकार के परमिट की जरूरत नहीं पड़ेगी।

माहताब ने कहा कि इस विधेयक में ऐसे प्रस्ताव हैं जो किसानों हितों के प्रतिकूल हैं। इससे पूर्वोत्तर और ओडिशा जैसे राज्य प्रभावित होंगे। केंद्रीय मंत्री डा. हर्षवर्द्धन ने कहा कि ऐसा लगता है कि विधेयक के तथ्यों को नहीं समझा गया। ‘‘मैं इस बारे में हर तरह की आशंकाओं को दूर करना चाहता हूं। यह किसानों के हित में हैं और किसी भी रूप में जन विरोधी नहीं है। देश को इस विधेयक को लाने के लिये 90 वर्ष तक इंतजार करना पड़ा और मोदी सरकार ने ऐसी किसान हितैषी पहल की है। इसके तहत भारतीय वन अधिनियम 1927 का और संशोधन किया गया है। इस अधिनियम में धारा 2 के खंड 7 में वृक्ष को परिभाषित किया है जिसमें ताड़, बांस, ठूंठ, झाड़ और बेंत शामिल हैं।

यद्यपि बांस जो वर्गीकरण की दृष्टि से घास है और उक्त अधिनियम के प्रयोजन के लिये वृक्ष माना गया है। कई राज्यों ने राज्यों के भीतर बांसों की विभिन्न प्रजातियों की कटाई और अभिवहन को छूट प्रदान की है। बासों के अंतर राज्यीय परिवहन में अन्य राज्यों से होकर ले जाने के लिये अनुज्ञापत्र (परमिट) की जरूरत होती है। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि कृषक, राज्य के भीतर एवं राज्यों के बाहर भी बांसों की कटाई और उनके परिवहन के लिये अनुज्ञा पत्र (परमिट) प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, जिसकी पहचान कृषकों द्वारा उनकी भूमि पर बांसों की खेती करने में एक मुख्य बाधा के रूप में की गई है।

इसमें कहा गया है कि उक्त अधिनियम की धारा 2 के खंड 7 का संशोधन करने का विनिश्चय किया गया था जिससे उक्त अधिनियम के अधीन कटाई या अभिवहन के लिये अनुज्ञा पत्र की अपेक्षा से गैर वन क्षेत्र पर उगे हुए बांसों को छूट प्रदान करने के लिये वृक्ष की परिभाषा से बांस शब्द का लोप किया जा सके। इससे कृषकों द्वारा बांस की खेती को प्रोत्साहन मिलेगा जिसके परिणामस्वरूप खेती से उनकी आय में वृद्धि होगी। चूंकि संसद सत्र में नहीं थी और तुरंत कार्रवाई करना अपेक्षित था, इसलिये भारत के राष्ट्रपति द्वारा वन संशोधन अध्यादेश 2017 को 23 नवंबर को जारी किया गया था।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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