असम की राजनीति में चाय बागान का खास योगदान, भाजपा और कांग्रेस मजदूरों को लुभाने में जुटे

Priyanka Gandhi

चीन के बाद दुनिया को चाय की आपूर्ति असम ही करता है। ऐसे में यहां लगभग हर पांच लोगों में एक लोग चाय के क्षेत्र में काम करते हैं। ऐसे में राजनीतिक दल चाय बागानों से जुड़े हुए मजदूरों को लुभाने में जुटे हुए हैं।

गुवाहाटी। देश का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य असम में तीन चरण में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा अपनी सरकार फिर से बनाने की तो कांग्रेस सत्ता में आने कवायद में जुटी हुई हैं। तभी तो उत्तर प्रदेश को छोड़कर अब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा असम में पार्टी को मजबूत कर रही हैं। उन्होंने तरूण गोगोई की राह को पकड़ते हुए चाय बागान पर ध्यान देना शुरू किया है। 

इसे भी पढ़ें: बंगाल में ममता की वापसी तो तमिलनाडु में कांग्रेस गठबंधन की बल्ले-बल्ले, जानें 5 राज्यों के ताजा सर्वे का अनुमान 

चीन के बाद दुनिया को चाय की आपूर्ति असम ही करता है। ऐसे में यहां लगभग हर पांच लोगों में एक लोग चाय के क्षेत्र में काम करते हैं। ऐसे में राजनीतिक दल चाय बागानों से जुड़े हुए मजदूरों को लुभाने में जुटे हुए हैं। तभी तो गांधी परिवार के वारिस असम में आजकल दिखाई दे रहे हैं। प्रियंका गांधी की महिला मजदूरों के साथ तस्वीरें सामने आ रही हैं। यहां पर उन्होंने महिला मजदूरों की तरह चाय की पत्तियां तोड़ी।

वहीं, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों की न्यूनतम दिहाड़ी का मुद्दा उठाया तो भाजपा ने तुरंत इसे लपक लिया और प्रदेश सरकार ने दिहाड़ी बढ़ाकर 318 रुपए करने का ऐलान कर दिया। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो यहां तक कहा कि हम चाय को उसके सही मुकाम तक पहुंचाएंगे। चुनाव में चाय बागान के मजदूरों का मुद्दा हमेशा से अहम रहा है। क्योंकि यहां की करीब 30 विधानसभा सीटों पर चाय बागान के मजदूर ही उम्मीदवारों की जीत या हार तय करते आए हैं। 

इसे भी पढ़ें: असम में महिला मतदाताओं को लुभाने में लगी पार्टियां, 223 उम्मीदवारों में सिर्फ 19 महिलाओं को टिकट 

तरूण गोगोई ने लगाई थी हैट्रिक

प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दिवंगत नेता तरुण गोगोई ने असम में जीत की हैट्रिक लगाई है। दरअसल, साल 2011 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ माहौल देखने को मिल रहा था लेकिन चाय बागानों के मजदूरों ने तरुण गोगोई पर भरोसा जताया था और उन्हें तीसरी बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था। इतना ही नहीं चाय बागान वाले इलाकों की ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस का ही कब्जा था। मगर फिर गोगोई का जो कुली, बंगाली और अली वाला वोटबैंक था वह धीरे-धीरे खिसकने लगा और साल 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चाय बागानों को मुद्दा बनाया और उनके लिए कई सारी घोषणाएं की। जिसका नतीजा है कि भाजपा ने 15 साल से सत्ता में विराजमान तरुण गोगोई सरकार को उखाड़ फेंका।

चाय बागान का महत्व जानती है कांग्रेस

देश की सबसे पुरानी पार्टी असम में चाय बागानों के मजदूरों की महत्वता को समझती है। तभी तो प्रियंका गांधी ने तेजपुर में जनसभा को संबोधित करते हुए वादे नहीं किए बल्कि वहां की जनता को गारंटी दी। उन्होंने कहा कि अगर प्रदेश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार बनती है तो चाय बागान के मजदूरों की दिहाड़ी बढ़ाकर 365 रुपए कर दी जाएगी। इस गारंटी के साथ ही उन्होंने कुल पांच गारंटी दी। जिनमें नागरिकता संशोधन कानून को निरस्त करना, 200 यूनिट तक बिजली बिल मुफ्त, गृहिणी सम्मान योजना और 5 लाख सरकारी नौकरियां देने की गारंटी शामिल है। 

इसे भी पढ़ें: सर्बानंद सोनोवाल का दावा, भाजपा की अगुवाई वाली सरकार को लोग असम में लाना चाहते हैं वापस 

भाजपा की राह में रोड़े !

चाय बागान के मजदूरों को लुभाने में तो राजनीतिक दल लगे हुए हैं लेकिन वहां की जनता असल में क्या चाहती है ? यह जानना भी जरूरी है। इस प्रश्न का जवाब हमें टाइम्स नाउ के सर्वे में मिला। टाइम्स नाउ और सी वोटर द्वारा कराए गए साझा सर्वे में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए और कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए में जबरदस्त मुकाबला होने वाला है। प्रदेश की 126 विधानसभा सीटों में से भाजपा प्लस को 67 जबकि कांग्रेस प्लस को 57 सीटें मिल सकती हैं। वहीं 2 सीटें अन्य के खाते में भी जाती हुई दिखाई दे रही हैं।

साल 2011 में तरुण गोगोई तीसरी बार मुख्यमंत्री बने थे लेकिन 2016 के चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा को 86 सीटें मिली थीं। जबकि कांग्रेस के खाते में महज 26 सीटें ही आई थी। अब इस बार देखना होगा कि क्या सर्वे के नतीजे चुनावी नतीजों में तब्दील होते हैं या फिर प्रदेश की जनता का मन इसके उलट रहता है।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़