ओबीसी वोट पर है बीजेपी की भी नजर, जाति आधारित जनगणना की मांग पर बढ़ सकती है आगे

भाजपा को भी ओबीसी वोटों का शानदार समर्थन मिला है तभी तो लोकसभा के 2 चुनाव में तथा कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में पार्टी विजयी हुई है। इसके साथ ही भाजपा अगड़ी जातियों के साथ इसे संतुलित करने की कोशिश में भी है ताकि उसका आधार लगातार बढ़ता रहे।
जाति आधारित जनगणना की मांग के बीच भाजपा ने इस बात के संकेत दिए हैं कि वह इसके लिए अपने विचार खुले रखे है। इसके साथ ही भाजपा अपने सहयोगी नीतीश कुमार के जाति गणना के लिए ओबीसी पर राजनीति दांव लगाने के प्रयासों पर भी नजर बनाए हुए है। जाति आधारित जनगणना के मांग के पीछे क्षेत्रीय दलों का एकमात्र उद्देश्य ओबीसी समूहों की ताकत हासिल करने का है। भाजपा को भी ओबीसी वोटों का शानदार समर्थन मिला है तभी तो लोकसभा के 2 चुनाव में तथा कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में पार्टी विजयी हुई है। इसके साथ ही भाजपा अगड़ी जातियों के साथ इसे संतुलित करने की कोशिश में भी है ताकि उसका आधार लगातार बढ़ता रहे।
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हालांकि यह बात भी साफ है कि केंद्र जल्दबाजी में जाति आधारित जनगणना की घोषणा नहीं करने वाला है। वर्तमान में रूकी हई नियमित जनगणना में फेरबदल नहीं किया जा सकता है क्योंकि अधिकांश प्रक्रिया ऑनलाइन है और कोड बदलना आसान नहीं है। हालांकि पार्टी की ओर से यह संकेत मिलने जरूर शुरू हो गए हैं कि नियमित जनगणना के बाद इस प्रस्ताव पर विचार किया जा सकता है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला था जिसमें भाजपा भी शामिल थी। हालांकि, जाति आधारित जनगणना की मांग को राजनीतिक रूप से ज्यादा महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह भी माना जा रहा है कि क्षेत्रीय दल ओबीसी में बढ़ती बीजेपी के लोकप्रियता को कहीं ना कहीं ब्रेक लगाना चाहती है।
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हालांकि यह पहले से ही पता था कि जाति आधारित जनगणना के लिए भाजपा की ओर से विरोध नहीं किया जाएगा। बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि पार्टी को इस मामले में कोई आपत्ति नहीं है। हालांकि नीतीश कुमार द्वारा यह मांग ऐसे समय में उठाई जा रही है जब भाजपा खुद पेगासस विवादों के इर्द-गिर्द फंसी हुई है। भाजपा नीतीश कुमार के उस बयान को भी गौर कर रही है जिसमें उन्होंने आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की तारीफ करते हुए कहा था कि यह उन्हीं का आईडिया था कि एक प्रतिनिधिमंडल इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करें। विशेषज्ञ मानते हैं कि राजद और जदयू के बीच आरोप-प्रत्यारोप के दौर के बावजूद नीतीश कुमार का यह बयान भाजपा को परेशान कर सकता है और यह भी उसे संकेत दे रहा है NDA के बाहर भी उनके लिए विकल्प है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कदमों को भाजपा भी पढ़ने की कोशिश कर रही है क्योंकि पिछले साल विधानसभा चुनाव में जदयू बड़े भाई की भूमिका से छोटे भाई की भूमिका में जा चुकी है।
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